User:Shadab saifni

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Saifni Rampur शादाब हुसैन अंसारी

अल्लाह ने अपने आखिरी नबी, मुह्म्मदुर्रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर अपना आखिरी पैगाम कुरआन शरीफ़ नाज़िल किया था। कुरआन शरीफ़ जो सारी इन्सानियत के लिये नाज़िल हुआ है, जो रहम और बरकत की किताब है। अगर आपको एक मुस्लमान की ज़िन्दगी क्या होती है देखनी है तो आप नबी करीम मुह्म्मदुर्रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी से अच्छी मिसाल दुनिया में कोई नही है।आज हम उनके जीवन का एक संक्षिप्त परिचय पढेंगे.....हसब-नसब (वंश) {पिता की तरफ़ से}:- मुह्म्मदुर्रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बिन(1)अब्दुल्लाह बिन(2)अब्दुल मुत्तलिब बिन(3)हाशम बिन(4)अब्दे मुनाफ़ बिन(5)कुसय्य बिन(6)किलाब बिन(7)मुर्रा बिन(8)क-अब बिन(9)लुवय्य बिन(10)गालिब बिन(11)फ़हर बिन(12)मालिक बिन(13)नज़्र बिन(14)कनाना बिन(15)खुज़ैमा बिन(16)मुदरिका बिन(17)इलयास बिन(18)मु-ज़र बिन(19)नज़ार बिन(20)मअद बिन(21)अदनान........................(51)शीस बिन(52)आदम अलैहिस्सल्लाम।{ यहां "बिन" का मतलब "सुपुत्र" या "Son Of" से है }अदनान से आगे के शजरा(हिस्से)में बडा इख्तिलाफ़(मतभेद)हैं। नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने आपको "अदनान" ही तक मन्सूब फ़रमाते थे।हसब-नसब (वंश) {मां की तरफ़ से}:- मुह्म्मदुर्रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बिन(1)आमिनाबिन्त(2)वहब बिन(3)हाशिमबिन(4)अब्दे मुनाफ़.....................। आपकी वालिदा का नसब नामा तीसरी पुश्त पर आपके वालिद के नसब नामा से मिल जाता है।बुज़ुर्गों के कुछ नाम :-वालिद(पिता)का नाम अब्दुल्लाह और वालिदा(मां)आमिना। चाचा का नाम अबूतालिब और चची का हाला। दादा का नाम अब्दुल मुत्तलिब, दादी का फ़ातिमा। नाना का नाम वहब, और नानी का बर्रा। परदादा का नाम हाशिम और परदादी का नाम सलमा।पैदाइश :-आप सल्लाहु अलैहि वसल्लम की पैदाइशनौ रबीउल अव्वल एक आमुल फ़ील(अब्रहा केखान-ए-काबा पर आक्रमण के एक वर्ष बाद)22 अप्रैल 571 ईसवीं, पीर (सोमवार)को बहार के मौसम में सुबह सादिक (Dawn) के बाद और सूरज निकलने से पहले (Before Sunrise) हुय़ी।(साहित्य की किताबों में पैदाइश की तिथि 12 रबीउल अव्वल लिखी है वह बिल्कुल गलत है, दुनिया भर में यही मशहूर है लेकिन उस तारीख के गलत होने में तनिक भर संदेह नही)मुबारक नाम :-आपके दादा अब्दुल मुत्तालिब पैदाइश ही के दिन आपको खान-ए-काबा ले गये और तवाफ़करा कर बडी दुआऐं मांगी। सातंवे दिन ऊंट की कुर्बानी कर के कुरैश वालों की दावत की और"मुह्म्मद"नाम रखा। आपकी वालिदा ने सपने में फ़रिश्ते के बताने के मुताबिक"अहमद"नाम रखा। हर शख्स का अस्ली नाम एक ही होता है, लेकिन यह आपकी खासियत है कि आपके दो अस्ली नाम हैं।"मुह्म्मद"नाम कासूर: फ़तह पारा: 26की आखिरी आयत में ज़िक्र है और"अहमद"का ज़िक्रसूर: सफ़्फ़ पारा: 28 आयत न० 6में है। सुबहानल्लाह क्या खूबी है।दूध पीने का ज़माना :-सीरत की किताबों में लिखा है कि आपने 8 महिलाओं का दूध पिया।(1)अपनीवालिदा आमिना(2)अबू लहब की नौकरानी सुवैबा(3)खौला(4)सादिया(5)आतिका(6)आतिका(7)आतिका(इन तीनों का एक ही नाम था)(8)दाई हलीमा सादिया । वालिदा मे लगभग एक सप्ताह और इतने ही समय सुवैबा ने दूध पिलाया । इसके बाद दाई हलीमा सादिया की गोद में चले गये । और बाकी 5 दूध पिलाने वालियों के बारे में तफ़्सील मालूम न हो सकी ।पालन--पोषण :-लग-भग एक माह की आयु में पालन-पोषण के लिये दाई हलीमा की देख-रेख में सौंप दियेगये । आप चार-पांच वर्ष तक उन्ही के पास रहे । दर्मियान में जब भी मज़दूरी लेने आती थी तो साथ में आपको भी लाती थीं और मां को दिखा-सुना कर वापस ले जाती थी।वालिद (पिता) का देहान्त :-जनाब अब्दुल्लाह निकाह के मुल्क शाम तिजारत(कारोबार)के लिये चले गयेवहां से वापसी में खजूरों का सौदा करने के लिये मदीना शरीफ़ में अपनी दादी सल्मा के खानदान में ठहर गये। और वही बीमार हो कर एक माह के बाद 26वर्ष की उम्र में इन्तिकाल(देहान्त)कर गये। और मदीना ही में दफ़न किये गये । बहुत खुबसुरत जवान थे। जितने खूबसूरत थे उतने ही अच्छी सीरत भी थी।"फ़ातिमा"नाम की एक महिला आप पर आशिक हो गयी और वह इतनी प्रेम दीवानी हो गयी कि खुद ही 100 ऊंट दे कर अपनी तरफ़ मायल(आशिक या संभोग)करना चाहा, लेकिन इन्हों ने यह कह कर ठुकरा दिया कि"हराम कारी करने से मर जाना बेहतर है"।जब वालिद का इन्तिकाल हुआ तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मां के पेट में ही थे।वालिदा (मां) का देहान्त :-वालिदा के इन्तिकाल की कहानी बडी अजीब है। जब अपने शौहर की जुदाई कागम सवार हुआ तो उनकी ज़ियारत के लिये मदीना चल पडीं और ज़ाहिर में लोगों से ये कहा कि मायके जा रही हूं। मायका मदीना के कबीला बनू नज्जार में था। अपनी नौकरानी उम्मे ऐमन और बेटे मुह्म्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को लेकर मदीना में बनू नज्जार के दारुन्नाबिगा में ठहरी और शौहर की कब्र की ज़ियारत की। वापसी में शौहर की कब्र की ज़ियारत के बाद जुदाई का गम इतना घर कर गया कि अबवा के स्थान तक पहुचंते-पहुचंते वहीं दम तोड दिया। बाद में उम्मे ऐमन आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को लेकर मक्का आयीं।दादा-चाचा की परवरिश में :-वालिदा के इन्तिकाल के बाद 74 वर्ष के बूढें दादा ने पाला पोसा। जब आपआठ वर्ष के हुये तो दादा भी 82 वर्ष की उम्रमें चल बसे। इसके बाद चचा"अबू तालिब"और चची"हाला"ने परवरिश का हक अदा कर दिया। नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सब से अधिक परवरिश(शादी होने तक)इन्ही दोनों ने की।यहां यह बात ज़िक्र के काबिल है कि मां"आमिना"और चची"हाला"दोनोपरस्पर चची जात बहनें हैं। वहब और वहैब दो सगे भाई थे। वहब की लडकी आमिना और वहैब की हाला(चची)हैं। वहब के इन्तिकाल के बाद आमिना की परवरिश चचा वहैब ने की। वहैब ने जब आमिना का निकाह अब्दुल्लाह से किया तो साथ ही अपनी लडकी हाला का निकाह अबू तालिब से कर दिया। मायके में दोनों चचा ज़ात बहनें थी और ससुराल में देवरानी-जेठानीं हो गयी। ज़ाहिर है हाला, उम्र में बडी थीं तो मायके में आमिना को संभाला और ससुराल में भी जेठानी की हैसियत से तालीम दी, फ़िर आमिना के देहान्त के बाद इन के लडकें मुह्म्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को पाला पोसा। आप अनुमान लगा सकते हैं कि चचा और विशेषकर चची ने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की परवरिश किस आन-बान और शान से की होगी एक तो बहन का बेटा समझ कर, दूसरे देवरानी का बेटा मानकर....।आपका बचपन :-आपने अपना बचपन और बच्चों से भिन्न गुज़ारा। आप बचपन ही से बहुत शर्मीले थे।आप में आम बच्चों वाली आदतें बिल्कुल ही नही थीं। शर्म और हया आपके अन्दर कूट-कूट कर भरी हुयी थी। काबा शरीफ़ की मरम्मत के ज़माने में आप भी दौड-दौड कर पत्थरलाते थे जिससे आपका कन्धा छिल गया। आपके चचा हज़रत अब्बास ने ज़बरदस्ती आपका तहबन्द खोलकर आपके कन्धे पर डाल दिया तो आप मारे शर्म के बेहोश हो गये। दायी हलीमा के बच्चों के साथ खूब घुल-मिल करखेलते थे, लेकिन कभी लडाई-झगडा नही किया। उनैसा नाम की बच्ची की अच्छी जमती थी, उसके साथ अधिक खेलते थे। दाई हलीमा की लडकी शैमा हुनैन की लडाई में बन्दी बनाकर आपके पास लाई गयी तो उन्होने अपने कन्धे पर दांत के निशान दिखाये, जो आपने बचपन में किसी बात पर गुस्से में आकर काट लिया था।तिजारत का आरंभ :-12 साल की उम्र में आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपना पहला तिजारती सफ़र(बिज़नेस टुर)आरंभ किया जब चचा अबू तालिब अपने साथ शाम के तिजारती सफ़र पर ले गये। इसके बाद आपने स्वंय यह सिलसिला जारी रखा। हज़रत खदीजा का माल बेचने के लिये शाम ले गये तो बहुत ज़्यादा लाभ हुआ। आस-पास के बाज़ारों में भी माल खरीदने और बेचने जाते थे।खदीजा से निकाह :-एक बार हज़रत खदीजा ने आपको माल देकर शाम भेजा और साथ में अपने गुलाममैसरा को भी लगा दिया। अल्लाह के फ़ज़्ल से तिजारत में खूब मुनाफ़ा हुआ। मैसरा ने भी आपकी ईमानदारी और अच्छे अखलाक की बडी प्रशंसा की। इससे प्रभावित होकर ह्ज़रत खदीजा ने खुद ही निकाह का पैगाम भेजा। आपने चचा अबू तालिब से ज़िक्र किया तो उन्होने अनुमति दे दी। आपके चचा हज़रत हम्ज़ा ने खदीजा के चचा अमर बिन सअद से रसुल अल्लाह के वली (बडे) की हैसियत से बातचीत की और 20 ऊंटनी महर(निकाह के वक्त औरत या पत्नी को दी जाने वाली राशि याजो आपकी हैसियत में हो)पर चचा अबू तालिब ने निकाह पढा। हज़रत खदीजा का यह तीसरा निकाह था, पहला निकाह अतीक नामी शख्स से हुआ था जिनसे 3 बच्चे हुये। उनके इन्तिकाल(देहान्त)के बाद अबू हाला से हुआ था। निकाह से समय आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आयु 25 वर्ष और खदीजा की उम्र 40 वर्ष थी।