User talk:Kalanath
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We're so glad you're here! —The-thing (Talk) (Stuff I did) 12:38, 4 March 2006 (UTC)
- Hi. Regarding the article Dr.kalanath Mishra, I assume that the first paragraph (the one that is not in English) can now be deleted. Is this correct? Incidentally, you shouldn't have removed the "speedy delete" tag, as you are the author of the article. This was explicitely written in the tag itself. - Liberatore(T) 17:16, 4 March 2006 (UTC)
Hello, and welcome to Wikipedia! We appreciate your contributions to the Dr.kalanath Mishra article, but we cannot accept copyrighted text or images borrowed from other web sites or printed material. Perhaps you would like to rewrite the article in your own words. For more information, take a look at Wikipedia's policies and guidelines. Happy editing! Skoorb 22:44, 11 March 2006 (UTC)
Image tagging for Image:Kalanath with Mark Tully.jpg
[edit]Thanks for uploading Image:Kalanath with Mark Tully.jpg. The image has been identified as not specifying the source and creator of the image, which is required by Wikipedia's policy on images. If you don't indicate the source and creator of the image on the image's description page, it may be deleted some time in the next seven days. If you have uploaded other images, please verify that you have provided source information for them as well.
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भारतीय संस्क्रति कर्म को गहरा आघात
[edit]== अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति आर्जित कर चुके रगकर्मी हबीब तन्वीर जी के निधन से भारत के सम्पूर्ण संस्क्रिति जगत को गहरा झट्का लगा है। विषेश रूप से भोपाल के रंग कर्म के लिये यह अपूर्णीय क्षति है। एक सितंबर, 1923 को छत्तीसगढ़ के रायपुर में जन्मे हबीब को उनके बहुचर्चित नाटकों 'चरणदास चोर' और 'आगरा बाजार' के लिए हमेशा याद किया जाएगा। 'चरनदास चोर' नाम का नाटक लिखा, जो कि 18वीं सदी के शायर नज़ीर अकबराबादी पर आधारित था। नजीर मिर्जा गालिब की पीढ़ी के शायर थे।
हबीब ने एक पत्रकार की हैसियत से अपने करियर की शुरूआत की और रंगकर्म तथा साहित्य के क्षेत्र मे निरंतर योगदान देते रहे। अपनी यात्रा के दौरान उअन्होंने कुछ फिल्मों की पटकथाएं भी लिखीं तथा उनमें काम भी किया। रिचर्ड एटनबरो की फिल्म 'गांधी' में भी उन्होंने एक छोटी सी भूमिका निभाई थी।
हबीब तन्वीर जी के निधन से भारत के सम्पूर्ण संस्क्रिति जगत को गहरा झट्का लगा है।
१९४५-४६ मे हबीब साहब रेडिओ मे भी काम किया। उन्होंने भोपाल में नए थिएटर की भी स्थापना की। भोपाल गैस त्रासदी पर बनी एक फिल्म में भी उनकी भूमिका है।
वे बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न कलाकार थे। थिएटर की दुनिया पर उअन्हों ने एक अमिट छाप छोडी । ==
कोच्चि विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में राष्टघीय संगोष्ठी == Headline text ==
[edit]'औपनिवेशिक साहित्य भारतीय मनीषा का साहित्य नहीं है` -चित्रा मुद्गल
तमाम भौगोलिक विविधता के बावजूद भारतीयता का भाव प्रकृति से मिलता है, जो बच्चों के मन में गहरे
पैठता है। ये कहना है प्रख्यात कथा लेखिका चित्राा मुद्गल का। वह कोच्चि विज्ञान एवं प्रावैध्किी विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में यू.जी.सी. के डी.आर.सी. प्रोजेक्ट के तहत द्विदिवसीय १ध्४२४-२५ मार्च, २००९१ध्२ राष्टघीय संगोष्ठी का उद्घाटन कर रही थीं, जिसका विषय था 'भारतीयता और समकालीन हिन्दी कथा साहित्य।` हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ० एन. मोहनन की अध्यक्षता में आरंभ हुई संगोष्ठी का उद्घाटन करती हुई चित्राा मुद्गल ने कहा कि औपनिवेशिक साहित्य भारतीय मनीषा का साहित्य नहीं है, बल्कि औपनिवेशिक मानसिकता ने ही मिट्टी-पानी डालकर उसे सींचा है। लगभग दो घंटे तक दिए अपने धराप्रवाह बीज भाषण के बीच श्रीमती मुद्गल ने कहा कि समाज जितना कठिन होगा, उसका जीवन और साहित्य भी उतना ही जटिल होगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि इस देश का बौ१ध्४त्व, महावीरत्व, शंकराचार्यत्व, इस्लामत्व, ईसाइत्व आदि सब का सब केवल इस देश की मिट्टी-पानी में सना-पगा है और हमारी भारतीयता का हिस्सा है। उद्घाटन सत्रा में अतिथियों का स्वागत संगोष्ठी की संयोजक डॉ० के. वनजा ने किया, जबकि डॉ० पी.ए.शमीम अलियार एवं डॉ० एन.मोहनन द्वारा चित्राा मुद्गल को शॉल एवं स्मृतिचिघ् प्रदान कर उनका सम्मान किया। इस अवसर पर प्रसि१ध्४ कवि-समालोचक एवं 'नई धरा` के संपादक डॉ० शिवनारायण ने विभाग द्वारा प्रकाशित पत्रिाका 'अनुशीलन` के 'दिनकर विशेषांक` का लोकार्पण किया, जबकि 'अनुशीलन` के 'महादेवी वर्मा विशेषांक` का लोकार्पण कथाकार डॉ० कलानाथ मिश्र को समर्पित करते हुए चित्राा मुद्गल ने किया। चर्चित कथाकार डॉ० कलानाथ मिश्र ने कहा कि अुिनाध्कता के भीतर भी अपने संस्कारों को जीवित रखना चाहिए, जिससे भारतीयता अपने चैतन्य रुप में परिपुष्ट रहेगा।
Italic text
[edit]दूसरे सत्रा में मुख्य वक्ता के रुप में 'नई धरा` के संपादक डॉ० शिवनारायण ने 'समकालीन हिन्दी कथा साहित्य में भारतीयता` विषयक भाषण करते हुए कहा कि समकालीन कथा साहित्य में भारत का भौगोलिक रुप उसका मृण्मयी रुप है, जबकि उसका आध्यात्मिक-सामाजिक रुप ही उसका चिण्मयी रुप है। आत्मवादी रुप बहुत महत्वपूर्ण होता है, जिस कारण मनुष्य के इस जनसंघर्षी रुप की अभिव्यक्ति हिन्दी कहानियों में हुई है। डॉ० शिवनारायण ने चित्राा मुद्गल सहित नासिरा शर्मा, कमल कुमार, मृदुला गर्ग, मैत्रोयी पुष्पा, उदय प्रकाश, शरद सिंह, वीरेन्द्र जैन, दूध्नाथ सिंह, मध्ुकर सिंह, कमलेश्वर, काशीनाथ सिंह आदि की कहानियों की विशद चर्चा करते हुए कहा कि पीड़ा की तपस्या की तरह जीने से ही दृष्टि को विस्तार मिलता है या कि अंदर का नर्क जितना बड़ा होगा, उतना ही बड़ा स्वर्ग बाहर रचा जाएगा। चित्राा मुद्गल की अध्यक्षता में सम्पन्न इसी सत्रा में डॉ० शशिध्र ;बंगलूरद्ध और डॉ० वेलायुध्न
- कालड़ीद्ध ने भी अपने-अपने पत्रा प्रस्तुत करते हुए कथा साहित्य में भारतीयता की चेतना को पुष्ट किया।
अंत में चित्राा मुद्गल ने डॉ० शिवनाराण के विद्वतापूर्ण व्याख्यान की प्रशंसा करते हुए कहा कि भारतीय पारिवारिक सम्बन्धें एवं परिकल्पनाओं में भारतीयता का महान रुप निहित है। उन्होंने आत्मचिंतन पर बल देते हुए सेवा, त्याग, भाईचारा, विश्वास जैसे मूल्यों को बरकरार रखने की बात कही। २५ मार्च को संगोष्ठी का तीसरा सत्रा डॉघ् शिवनारायण की अध्यक्षता में आरंभ हुआ, जिसमंे मुख्य वक्ता के रुप में चर्चित कथाकार डॉ० कलानाथ मिश्र ने कहा कि अुिनाध्कता के भीतर भी अपने संस्कारों को जीवित रखना चाहिए, जिससे भारतीयता अपने चैतन्य रुप में परिपुष्ट रहेगा। उन्होंने कहा कि आज अध्कितर सम्बन्ध् जिये नहीं जा रहे ढोये जाते हैं, लेकिन हमारे ढोने और पश्चिम के ढोने में जो अंतर है, उसे उघारने का प्रयास समकालीन कहानियों में चित्रिात हुआ है। अपनी सांस्कृतिक मूल्यों में हुए परिवर्तन को चित्रात करते हुए भी उसके प्रति एक आग्रह का भाव भी समकालीन कथा साहित्य में है। इस घ्म में डॉघ् मिश्र ने कई महत्वपूर्ण समकालीन कहानियों की चर्चा की।इस अवसर पर पंजाब विश्वविद्यालय के डॉ० बैजनाथ प्रसाद ने शिवप्रसाद सिंह के उपन्यास 'वैश्वानर` के विशेष संदर्भ में भारतीयता को उद्घाटित किया, जबकि डॉ० सुमा ने महिला कथा लेखिकाओं के उपन्यासों में भारतीयता को प्रस्तुत किया। डॉघ् अनीता ने समकालीन आंचलिक उपन्यासों में भारतीयता पर प्रकाश डालते हुए अंचलों में भारतीयता के जीवंत होने का मिशाल पेश किया। इस सत्रा के अपने अध्यक्षीय भाषण में डॉ० शिवनारायण ने कहा कि भारतीयता को समय सापेक्ष मूल्यों के संदर्भ में विश्लेषित करते हुए उसके उदान्त सौन्दर्य की परख होनी चाहिए, तभी उसकी चेतना का विकास दिखाई पड़ेगा। इसके साथ ही उन्होंने साध्ुमत की अभिव्यक्ति के संरक्षण को ही साहित्य का मूल र्ध्म बताया और साहित्य को उसके चैतन्य रुप में समझने की हिदायत दी, न कि उसके स्थूल रुप में। अंतिम सत्रा डॉ० कलानाथ मिश्र की अध्यक्षता में आरंभ हुआ, जिसमें डॉ० रामप्रकाश, डॉ० जयकृष्णन्, सुश्री शीना, सुश्री टेरेसा आदि ने अपने शोध् प्रपत्रा प्रस्तुत किए। कोच्चि विज्ञान एवं प्रावैध्किी विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में पहली बार प्रो० एन. मेहनन एवं डॉ० के. वनजा के प्रयास से सम्पन्न इस राष्टघीय संगोष्ठी को सपफल बनाने में सभी विभागीय शिक्षकों एवं छात्रा-छात्रााओं के साथ-साथ स्थानीय कॉलेजों के हिन्दी शिक्षकों ने भी भारी संख्या में अपनी सघ्यि उपस्थिति से सहयोग किया। प्रस्तुति: डा० शशिधरण
- रीडर हिन्दी विभागद्ध
कोच्चि विश्वविद्यालय, कोच्चिा;केरलद्ध