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Talk:Amat

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Amat

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History of amat Source-www.jagoindia247.blogspot.com

अमात समाज के ज्यादातर पढ़े-लिखे लोग जो अमात जात के इतिहास पर शोध कर रहे हैं, उनके अनुसार अमात शब्द अमात्य का अपभ्रंश है। इस मत को नकारा भी नहीं जा सकता। योग्य होने पर किसी भी जात का व्यक्ति अमात्य बन सकता था। लेकिन इतिहास देखे तो ज्ञात होता है कि कुछ अवसरों को छोड़ दिया जाए तो अमात्य पद के लिए सामान्यतः ब्राह्मण और क्षत्रिय को ही प्राथमिकता दी जाती थी। अतः कालांतर में यह एक जात/वर्ग के रूप में विकसित हुआ। जिसके सदस्य सामान्यतः अपने वर्ग में ही वैवाहिक संबंध स्थापित करते थे।

                          चाणक्य और उनके द्वारा उद्घृत चिंतकों ने अमात्यों के लिए अनेक गुण विहित किए हैं। किंतु सभी ने अभिजात्य गुण को आवश्यक बताया है। जैसे जिसके पिता और दादा अमात्य रहे हों। यह संदेहास्पद है कि प्रथम दो वर्णों के सिवा किसी अन्य वर्ण में अभिजात्य की योग्यता मिल सकती है। मेगास्थनीज के अनुसार निम्न वर्णों के लिए उच्च पदों पर पहुंचने के द्वार बंद थे। उन्होंने कहा है कि न्यायपालिका और कार्यपालिका पर एक पेशेवर वर्ग के लोग ही नियुक्त किए जाते थे। कात्यायन जोर देते हैं कि अमात्य को ब्राह्मण जात का ही होना चाहिए। अमात्य का अर्थ मंत्री होता है, जो मंत्रिण से बना है। मंत्रिण का अर्थ मंत्र-तंत्र से युक्त होता है, जिसका अर्थ ब्राह्मण ही हुआ।
                                   अमात को "अमात्र" का अपभ्रंश भी कहा जा सकता है। मुंडकोपनिषद के अनुसार अमात्र ध्यान की चौथी अवस्था है, जिसे समाधी भी कहा जाता है। सीधे शब्दों में कहें तो निर्गुण या अद्वैत ईश्वर को पूजने वाले "अमात्र ब्राह्मण" कहलाते हैं। 'बिहार और उड़ीसा रिसर्च सोसायटी' की ओर से  साल 1919 में छपी जर्नल में अमात को राजा का शुद्ध पुरोहित बताया जाना इस धारणा को और भी ज्यादा बल देता है। इससे पहले 1909 में जात के संबंध में लिखे अपनी पुस्तक में एडगर थर्सटन और के. रंगचारी ने लिखा है कि अमानत(अमात) उच्च ब्राह्मणों का भी छुआ नहीं खाते। वे आगे लिखते हैं, अमात शैव संप्रदाय के होते हैं और जिस मंदिर में जंगम ब्राह्मण(जंगम शैव संप्रदाय से ताल्लुक रखते हैं और  उच्चतम कोटी के ब्राह्मण हैं) को शिव लिंग के पुजारी के तौर पर रखा गया है, उसी मंदिर में अमात को भैरव के पुजारी के तौर पर रखा गया है।
                                        प्रख्यात इतिहासकार के पी जायसवाल के अनुसार 12वीं शताब्दी के दौरान अर्थनीति और दंडनीति की परंपरा धीरे-धीरे क्षीण और धर्म शास्त्र का वर्चस्व हो गया और समाज पाखंड के गिरफ्त में आ चुका था।

अतः बहुमत से अलग होने के कारण अमात्र को अमत(असम्मति) कहा जाने लगा होगा, जो बाद में अमात हो गया होगा।

-बिना जनेऊ के ब्राह्मण कैसे? शंकराचार्य जनेऊ नहीं पहनते। वह निर्गुण ईश्वर के उपासक थे। अतः यह कहना कि जनेऊधारी ही ब्राह्मण हो सकते हैं बिल्कुल गलत है। जनेऊ के प्रमाणिकता पर इतिहासकारों को संदेह है। हर्मण ओल्डन के अनुसार जनेऊ के अस्तित्व को धर्मशास्त्रों में मध्यकाल के दौरान घुसाया गया है। इस संबंध में उन्होंने शतपथ ब्राह्मण का जिक्र किया है। उनके अनुसार जिस वाक्य में जनेऊ का उल्लेख है उसका शैली उसके पहले और बाद वाले वाक्य के लिखने की शैली से बिल्कुल अलग है।

-राउत

राउत शब्द राजपुत्र से बना है। रावत शब्द भी राजपुत्र से बना है। इनदोनों टाइटल का प्रयोग ब्राह्मण और राजपूत उत्तर, मध्य और पश्चिम भारत में करते हैं।

मिथिला की बात करे तो विद्यापति की रचनाओं में राउत का जिक्र है। राउत की पद्वि सूरवीर योद्धाओं को दिया जाता था। 

मिथिला की पंजी में "कर्ण कायस्थों" के द्वारा राउत टाइटल का प्रयोग देखा गया है।

लेकिन मौजूदा समय की बात करें तो अमात को छोड़कर बिहार में मुझे दूसरे जात का कोई भी व्यक्ति नहीं मिला जो राउत टाइटल लगाता हो। 
                इसके अलावा उड़ीसा के अमात देहुरी, नायक जैसे टाइटल का भी प्रयोग करते हैं जो कि राज-काज से जुड़ा है।

- एच. एच रिजली की पुस्तक साल 1891 में प्रकाशित पुस्तक दि ट्राइब्स एंड कास्ट ऑफ बंगाल में रिजली ने लिखा है अमातों का उपयोग घरेलू नौकर के तौर पर होता है। इस कारण कुछ लोग अमात को ब्राह्मण कहे जाने का विरोध करते हैं। लेकिन ऐसा सोचने से पहले उन्हें उक्त पुस्तक का प्रस्तावना पढ़ना चाहिए जिसमें उन्होंने साफ-साफ लिखा है कि ज्यादा काम और समय के अभाव के कारण कुछ जातियों के ब्यौरा में त्रुटि हो सकती है। ब्राह्मण और भूमिहारों का उपयोग भी घरेलू नौकर के तौर पर होता रहा है, इसका यह मतलब तो नहीं की वे ब्राह्मण या भूमिहार नहीं रहे।

आरक्षित हैं अतः ब्राह्मण नहीं? ऐसा सोचना पूर्णतः गलत है। ब्राह्मणों के कई संप्रदाय ओबीसी लिस्ट में हैं। उत्तरप्रदेश के नौटियाल ब्राह्मणों को तो अनुसूचित जनजाति की लिस्ट में डाल दिया गया है।


.राम से संबंध थर्सटन और रंगचारी ने लिखा है कि मान्यता के अनुसार अमात लोगों के पूर्वज अयोध्या के राजा श्री राम के अमात्य के वंशज हैं।

-क्षत्रिय का पेशा अमात, अमानत, अमौत, अमातिया और अमायत सभी एक ही जाती है। जगह और भाषा के प्रभाव के कारण इनका उच्चारण थोड़ा अलग-अलग हो रहा है। क्षत्रिय के पेशा से जुड़े होने के कारण अमातिया लोगों ने खुद को राजपूतों की एक शाखा बताना शुरु कर दिया है। अमौत खुद को खंडायत भी कहते हैं। अमौत(अ+मौत) अर्थात जिसकी मौत न हो। अपनी बहादुरी के कारण इन्हें युद्ध में हराना काफी मुश्किल रहा होगा, अतः इन लोगों को अमौत कहा जाने लगा होगा।

                                                          हो सकता है कि कुछ लोग अमात को अमात्य/अमात्र का अपभ्रंश मानने से इंकार करें। वैसे लोगों के लिए एक तीसरा मार्ग है, जो कि उन्हें मानना ही होगा। अमात को अ और मात(अ+मात) के मेल से बना कहा जा सकता है, जिसका अर्थ हुआ जिसे मात न दिया जा सके, अर्थात क्षत्रिय।

निष्कर्ष- अगर अमात, अमात्य का अपभ्रंश है तो वह ब्राह्मण या क्षत्रिय हुए। अमात्र का अपभ्रंश है तो उच्च कोटि के ब्राह्मण हुए। इन दोनों थ्योरी के गलत होने की सूरत में भी जो तीसरी संभावना है वह अमात को क्षत्रिय ही सिद्ध करती है। लेकिन कई किताबों में अमात को पुरोहित बताया गया है, जिससे उनके ब्राह्मण होने संभावना ज्यादा है।

                              प्रमाण और उदाहरणों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि अमात मूलतः ब्राह्मण हैं, राज-काज से जुड़े रहे हैं और भूतकाल में श्रेष्ठ लड़ाका रहे हैं। ब्राह्मणों के जिस लड़ाका कौम की बात भूमिहार खुद के लिए करते हैं, वास्तव में उस कौम से संबंध अमातों का है।

नोट:- सन 1920 में अमातों की जनसंख्या(बिहार+उड़ीसा) मिलाकर 65 हजार के करीब थी।

Amat caste

source www.theexposeexpress.blogspot.com

अमात जात का इतिहास

अमात समाज के ज्यादातर पढ़े-लिखे लोग जो अमात जात के इतिहास पर शोध कर रहे हैं, उनके अनुसार अमात शब्द अमात्य का अपभ्रंश है। इस मत को नकारा भी नहीं जा सकता। योग्य होने पर किसी भी जात का व्यक्ति अमात्य बन सकता था। लेकिन इतिहास देखे तो ज्ञात होता है कि कुछ अवसरों को छोड़ दिया जाए तो अमात्य पद के लिए सामान्यतः ब्राह्मण और क्षत्रिय को ही प्राथमिकता दी जाती थी। अतः कालांतर में यह एक जात/वर्ग के रूप में विकसित हुआ। जिसके सदस्य सामान्यतः अपने वर्ग में ही वैवाहिक संबंध स्थापित करते थे। चाणक्य और उनके द्वारा उद्घृत चिंतकों ने अमात्यों के लिए अनेक गुण विहित किए हैं। किंतु सभी ने अभिजात्य गुण को आवश्यक बताया है। जैसे जिसके पिता और दादा अमात्य रहे हों। यह संदेहास्पद है कि प्रथम दो वर्णों के सिवा किसी अन्य वर्ण में अभिजात्य की योग्यता मिल सकती है। मेगास्थनीज के अनुसार निम्न वर्णों के लिए उच्च पदों पर पहुंचने के द्वार बंद थे। उन्होंने कहा है कि न्यायपालिका और कार्यपालिका पर एक पेशेवर वर्ग के लोग ही नियुक्त किए जाते थे। कात्यायन जोर देते हैं कि अमात्य को ब्राह्मण जात का ही होना चाहिए। अमात्य का अर्थ मंत्री होता है, जो मंत्रिण से बना है। मंत्रिण का अर्थ मंत्र-तंत्र से युक्त होता है, जिसका अर्थ ब्राह्मण ही हुआ। अमात को अमात्र का अपभ्रंश भी कहा जा सकता है। मुंडकोपनिषद के अनुसार अमात्र ध्यान की चौथी अवस्था है, जिसे समाधी भी कहा जाता है। सीधे शब्दों में कहें तो निर्गुण या अद्वैत ईश्वर को पूजने वाले अमात्र ब्राह्मण कहलाते हैं। बिहार और उड़ीसा रिसर्च सोसायटी की ओर से साल 1919 में छपी जर्नल में अमात को राजा का शुद्ध पुरोहित बताया जाना इस धारणा को और भी ज्यादा बल देता है। इससे पहले 1909 में जात के संबंध में लिखे अपनी पुस्तक में एडगर थर्सटन और के. रंगचारी ने लिखा है कि अमानत(अमात) उच्च ब्राह्मणों का भी छुआ नहीं खाते। वे आगे लिखते हैं, अमात शैव संप्रदाय के होते हैं और जिस मंदिर में जंगम ब्राह्मण(जंगम शैव संप्रदाय से ताल्लुक रखते हैं और उच्चतम कोटी के ब्राह्मण हैं) को शिव लिंग के पुजारी के तौर पर रखा गया है, उसी मंदिर में अमात को भैरव के पुजारी के तौर पर रखा गया है।प्रख्यात इतिहासकार के पी जायसवाल के अनुसार 12वीं शताब्दी के दौरान अर्थनीति और दंडनीति की परंपरा धीरे-धीरे क्षीण और धर्म शास्त्र का वर्चस्व हो गया और समाज पाखंड के गिरफ्त में आ चुका था। अतः बहुमत से अलग होने के कारण अमात्र को अमत(असम्मति) कहा जाने लगा होगा, जो बाद में अमात हो गया होगा।

-बिना जनेऊ के ब्राह्मण कैसे? शंकराचार्य जनेऊ नहीं पहनते। वह निर्गुण ईश्वर के उपासक थे। अतः यह कहना कि जनेऊधारी ही ब्राह्मण हो सकते हैं बिल्कुल गलत है। जनेऊ के प्रमाणिकता पर इतिहासकारों को संदेह है। हर्मण ओल्डन के अनुसार जनेऊ के अस्तित्व को धर्मशास्त्रों में मध्यकाल के दौरान घुसाया गया है। इस संबंध में उन्होंने शतपथ ब्राह्मण का जिक्र किया है। उनके अनुसार जिस वाक्य में जनेऊ का उल्लेख है उसका शैली उसके पहले और बाद वाले वाक्य के लिखने की शैली से बिल्कुल अलग है।

-राउत राउत शब्द राजपुत्र से बना है। रावत शब्द भी राजपुत्र से बना है। इनदोनों टाइटल का प्रयोग ब्राह्मण और राजपूत उत्तर, मध्य और पश्चिम भारत में करते हैं। मिथिला की बात करे तो विद्यापति की रचनाओं में राउत का जिक्र है। राउत की पद्वि सूरवीर योद्धाओं को दिया जाता था। मिथिला की पंजी में कर्ण कायस्थ के द्वारा राउत टाइटल का प्रयोग देखा गया है।  लेकिन मौजूदा समय की बात करें तो अमात को छोड़कर बिहार में मुझे दूसरे जात का कोई भी व्यक्ति नहीं मिला जो राउत टाइटल लगाता हो। इसके अलावा उड़ीसा के अमात देहुरी, नायक जैसे टाइटल का भी प्रयोग करते हैं जो कि राज-काज से जुड़ा है।

- एच. एच रिजली की पुस्तक साल 1891 में प्रकाशित पुस्तक दि ट्राइब्स एंड कास्ट ऑफ बंगाल में रिजली ने लिखा है अमातों का उपयोग घरेलू नौकर के तौर पर होता है। इस कारण कुछ लोग अमात को ब्राह्मण कहे जाने का विरोध करते हैं। लेकिन ऐसा सोचने से पहले उन्हें उक्त पुस्तक का प्रस्तावना पढ़ना चाहिए जिसमें उन्होंने साफ-साफ लिखा है कि ज्यादा काम और समय के अभाव के कारण कुछ जातियों के ब्यौरा में त्रुटि हो सकती है। ब्राह्मण और भूमिहारों का उपयोग भी घरेलू नौकर के तौर पर होता रहा है, इसका यह मतलब तो नहीं की वे ब्राह्मण या भूमिहार नहीं रहे।

आरक्षित हैं अतः ब्राह्मण नहीं? ऐसा सोचना पूर्णतः गलत है। ब्राह्मणों के कई संप्रदाय ओबीसी लिस्ट में हैं। उत्तरप्रदेश के नौटियाल ब्राह्मणों को तो अनुसूचित जनजाति की लिस्ट में डाल दिया गया है।

.राम से संबंध थर्सटन और रंगचारी ने लिखा है कि मान्यता के अनुसार अमात लोगों के पूर्वज अयोध्या के राजा श्री राम के अमात्य के वंशज हैं।

-क्षत्रिय का पेशा अमात, अमानत, अमौत, अमातिया और अमायत सभी एक ही जाती है। जगह और भाषा के प्रभाव के कारण इनका उच्चारण थोड़ा अलग-अलग हो रहा है। क्षत्रिय के पेशा से जुड़े होने के कारण अमातिया लोगों ने खुद को राजपूतों की एक शाखा बताना शुरु कर दिया है। अमौत खुद को खंडायत भी कहते हैं। अमौत(अ+मौत) अर्थात जिसकी मौत न हो। अपनी बहादुरी के कारण इन्हें युद्ध में हराना काफी मुश्किल रहा होगा, अतः इन लोगों को अमौत कहा जाने लगा होगा। हो सकता है कि कुछ लोग अमात को अमात्य/अमात्र का अपभ्रंश मानने से इंकार करें। वैसे लोगों के लिए एक तीसरा मार्ग है, जो कि उन्हें मानना ही होगा। अमात को अ और मात(अ+मात) के मेल से बना कहा जा सकता है, जिसका अर्थ हुआ जिसे मात न दिया जा सके, अर्थात क्षत्रिय।

निष्कर्ष- अगर अमात, अमात्य का अपभ्रंश है तो वह ब्राह्मण या क्षत्रिय हुए। अमात्र का अपभ्रंश है तो उच्च कोटि के ब्राह्मण हुए। इन दोनों थ्योरी के गलत होने की सूरत में भी जो तीसरी संभावना है वह अमात को क्षत्रिय ही सिद्ध करती है। लेकिन कई किताबों में अमात को पुरोहित बताया गया है, जिससे उनके ब्राह्मण होने संभावना ज्यादा है। प्रमाण और उदाहरणों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि अमात मूलतः ब्राह्मण हैं, राज-काज से जुड़े रहे हैं और भूतकाल में श्रेष्ठ लड़ाका रहे हैं। ब्राह्मणों के जिस लड़ाका कौम की बात भूमिहार खुद के लिए करते हैं, वास्तव में उस कौम से संबंध अमातों का है।

नोट:- सन 1920 में अमातों की जनसंख्या(बिहार+उड़ीसा) मिलाकर 65 हजार के करीब थी।

-शशि कुमार कमेंट में अपनी राय जरूर दें Andyamaty (talk) 04:25, 2 July 2019 (UTC)[reply]