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Draft:Aacharya Swami Mithilesh Nandini Sharan

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आध्यात्मिक विचारक (Spiritual Thinker) | दार्शनिक (Philosophy) | महान्त - श्रीहनुमन्निवास, अयोध्या (Head - Shri Hanumat Nivas, Ayodhya) | अध्यात्म (Spirituality)

सन्क्षिप्त परिचय

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स्वामी मिथिलेशनन्दिनीशरण सिद्धपीठ श्रीहनुमत्-निवास के महान्त हैं। वे सन् 2022 में इस पद के लिये आश्रम के वरिष्ठ महान्त श्रीसियाशरण जी एवं अयोध्या के सन्त-महान्तों के द्वारा श्रीरामानन्दीय बैरागी परम्परा के अनुसार चुने गये हैं।[1] श्रीरामानन्दीय रसिक उपासना में सिद्धपीठ श्रीहनुमत्-निवास श्रीहनुमान् जी की आराधना के आचार्यपीठ के रूप में प्रतिष्ठित है। परम तपस्वी सन्त पूज्य स्वामी श्रीगोमतीदास जी महाराज के द्वारा यहाँ श्रीहनुमान् जी महाराज की प्रतिष्ठा की गयी। यह आश्रम उत्तर प्रदेश के प्रमुखतम हनुमान मन्दिरों में श्रीहनुमान गढ़ी के बाद आता है। स्वामी मिथिलेशनन्दिनीशरण को इस आश्रम की उपासना परम्परा और ऐतिहासिक गौरव के संरक्षण हेतु महान्त के रूप में स्थापित किया गया। वे संस्कृत विद्या के अध्यवसायी विद्वान्, धर्मशास्त्र के आचार्य और हिन्दी साहित्य के ख्यातिलब्ध मनीषी हैं। अपने बाल्यकाल से अयोध्या आकर गुरुकुल पद्धति की शिक्षा ग्रहण करते हुये स्वामी मिथिलेशनन्दिनीशरण ने काशी से आचार्य और प्रयाग से अपना शोधकार्य किया है। भारतीय ज्ञान-परम्परा के अधिकृत वक्ता के रूप में वे राष्ट्रीय स्तर पर अपने व्याख्यानों के लिये प्रसिद्ध हैं।[2] Siddha sadhu (talk) 05:22, 26 September 2024 (UTC)[reply]

आरम्भिक जीवन

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स्वामी मिथिलेशनन्दिनीशरण का जन्म अयोध्या के समीप गोण्डा ज़िले में हुआ। एक धर्मनिष्ठ परिवार में जन्म लेकर उन्होंने सदाचार और ईश्वरनिष्ठा का स्वाभाविक संस्कार प्राप्त किया, जो आगे चलकर उनके विद्वान् और विरक्त होने में प्रतिफलित हुआ। अपने माता-पिता की पाँच सन्तानों में सबसे छोटे स्वामीजी में भक्ति के संस्कार उनके परम शिवभक्त पितामह के प्रभाव से जागृत हुये। सन् 1993 से अयोध्या में रहते हुये अपनी शिक्षा पूरी करने वाले स्वामी मिथिलेशनन्दिनीशरण ने वर्ष 2012 में श्रीरामानन्दीय वैष्णव परम्परा में विरक्त-दीक्षा ग्रहण की और उपासना के अनुरूप 'मिथिलेशनन्दिनीशरण' इस नाम से प्रसिद्ध हुये। आपने अयोध्या-वास का सर्वाधिक समय आचार्यपीठ श्रीलक्ष्मण क़िले में बिताया। विरक्त दीक्षा के उपरान्त गोप्रतार घाट पर स्थित श्रीअनादि पञ्चमुखी महादेव मन्दिर का प्रबन्ध संचालन करने हेतु स्वामी जी ने वहाँ रहना प्रारम्भ किया। भगवान् श्रीराम के धाम-गमन लीला एवं भगवान् गुप्तहरि के माहात्म्य से युक्त गोप्रतार घाट में उन्होंने श्रीपञ्चमुखी महादेव मन्दिर को सुन्दरतम रूप में विकसित किया।

Siddha sadhu (talk) 05:22, 26 September 2024 (UTC)[reply]

शिक्षा

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स्वामी मिथिलेशनन्दिनीशरण ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा अपनी जन्मभूमि पर अर्जित की। आठवीं कक्षा उत्तीर्ण करने के उपरान्त उनके पिता उनको संस्कृत का अध्ययन कराने अयोध्या ले आये। यहाँ उन्होंने सद्धर्म विवर्धिनी संस्कृत पाठशाला में प्रवेश लेकर विद्याध्ययन किया। अयोध्या के आश्रमीय जीवन में रहते हुये उन्होंने नव्य व्याकरण से शास्त्री की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। तदुपरान्त अपने हिन्दी काव्यलेखन की प्रवृत्ति को देखते हुये स्वामीजी ने स्थानीय साकेत महाविद्यालय से हिन्दी विभाग में परास्नातक किया। पुनः सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय से उन्होंने धर्मशास्त्र विषय में आचार्य किया। इस परीक्षा में विश्वविद्यालय में सर्वाधिक अंक प्राप्त करने के कारण उनको तीन स्वर्णपदकों से अलंकृत किया गया। स्वामी मिथिलेशनन्दिनीशरण अपने छात्र जीवन से ही गोस्वामी तुलसीदास जी के साहित्य के प्रति विशेष आकृष्ट थे अतः दो विषयों से परास्नातक करने के उपरान्त उन्होंने तुलसी-साहित्य में ही अवध विश्वविद्यालय से शोध कार्य प्रारम्भ किया। दुर्भाग्यवश आपके विशेष आदरणीय शोधनिदेशक के दिवंगत हो जाने से आपने वह शोधकार्य त्याग दिया। पुनः संयुक्त शोध प्रवेश परीक्षा (CRET) के अन्तर्गत शोधवृत्ति प्राप्त करके आपने इलाहाबाद विश्विद्यालय के हिन्दी विभाग से शोधकार्य किया।

आध्यात्मिक उद्यम

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भारतीय ज्ञान परम्परा के ग्रंथों का गहन अध्ययन करते हुए, स्वामी जी ने विरक्ति ग्रहण की और सन्यास ले लिया। अपने शोधकार्य को पूरा करने के बाद भी "Doctorate" की उपाधि नहीं ली। उन्होंने अयोध्या के प्रतिष्ठित संत (साकेतवासी) पूज्य महान्त श्री कौशलकिशोरशरण, "फलाहारी बाबा" से 2012 में दीक्षा प्राप्त की।[3] तदनन्तर उन्होंने रामभक्ति और युवा समाज को उत्तिष्ठ करने में स्वयं को सतत सक्रिय रखा है।

सिद्धान्त और दर्शन

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आचार्य स्वामी मिथिलेशनन्दिनीशरण अयोध्या के प्रमुख महान्त हैं। मानसिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक तरीकों का समन्वय करते हुए अपने स्वरुप को समझना और उसमे स्थिर रहना ही उनका मूल सिद्धांत है। वे भारतीय धर्म-दर्शन के मान्य व्याख्याता हैं। श्रीराम चरित के सामाजिक सन्दर्भ एवं उससे व्यक्तित्व विकास के विविध आयामों पर उनकी स्थापनायेँ उल्लेखनीय हैं। अयोध्या-पर्व श्रृंखला में उनके द्वारा दिये गये वक्तव्य देश भर में चर्चा का विषय बने हैं।[4] वे वस्तुतः अयोध्या आयाम के प्रशस्त व्याख्याता हैं। श्रीरामजन्म भूमि पर श्रीरामलला के विराजमान होने के क्रम में स्वामी मिथिलेशनन्दिनीशरण मन्दिर के अर्चकों के चयन और प्रशिक्षण समिति के सक्रिय सदस्य रहे हैं। प्रतिष्ठा पर्व पर आपके महत्त्वपूर्ण आलेख प्रायः सभी संचार-माध्यमों पर इस अवसर की आध्यात्मिक-सांस्कृतिकऔर ऐतिहासिक गरिमा का निरूपण करने वाले रहे हैं। दैनिक जागरण के अपने एक सम्पादकीय में भारत देश को लेकर उनका यह द्रष्टव्य है[5] -

    "भारत धर्मप्राण देश है इस कथन को इसके दार्शनिक विस्तार में समझा जाना चाहिये। जैसे मानव शरीर में नाखून और केश जैसे अवयव निष्प्राण प्रतीत होते हैं, किन्तु वे भी शरीर में विद्यमान प्राणशक्ति के सहारे ही रहते हैं, वैसे ही विचार और व्यवहार के स्तर पर धर्मभिन्न प्रतीत होती अवधारणायें भी तात्त्विक दृष्टि से धर्ममूलक ही हैं। प्रायः भारतीय समाज की रुचियाँ और आकांक्षायें नैसर्गिक धर्मनिष्ठा का प्रतिफलन होती हैं।"

अपने एक अन्य आलेख में स्वामी मिथिलेशनन्दिनीशरण भारत और श्रीराम के ऐक्य को परिभाषित करते हुये जो कहते हैम वह इस प्रकार है-

   "देश के इतिहास-भूगोल-संस्कृति और विश्वास में निहित जीवन-बोध को श्रीराम अभिव्यक्त करते हैं। यही कारण है कि यह देश उन्हें परमार्थरूप ब्रह्म स्वीकारने के साथ ही मर्यादा पुरुषोत्तम भी मानता है। वेदों के मंत्र, रामायण से लेकर वाल्मीकि, वेदव्यास और गोस्वामी तुलसीदास तक साधुवाद की कसौटी श्रीराम हैं। कालचक्र के साथ धर्म की जटिल होती गई परिभाषाओं को श्रीराम के बिना समझना दुरूह है। भारतीयता के नाम पर यह देश पीढ़ियों से चरित्र के जिन मूल्यों को सामने रखता आया है, श्रीराम उसके प्रतिनिधि-पुरुष हैं।"

कृतियाँ

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आचार्य स्वामी मिथिलेशनन्दिनीशरण जी देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में व्यख्यान देने के लिए आमंत्रित किये जाते हैं जिससे युवाओं को भारतीय संस्कृति, भाषा और जीवन जीने के मौलिक आधार पर बोध कराने पर वे अपने मन्तव्य रखते हैं।[6] उनके द्वारा रूपायित युवा धर्म संसद देश में युवाओं के साथ संवाद पर केन्द्रित राष्ट्रीय संगोष्ठी के रूप में महत्त्वपूर्ण है। इसका चौथा आयोजन सितम्बर 2024 में हरिद्वार में सम्पन्न हुआ है।[7] उन्होंने अपने साहित्य लेखन से विविध पद्धतियों और परिस्थिति अनुसार मानव के मनोभाव का विश्लेषण किया है। [8] [9]

सिद्धपीठ श्री हनुमत्-निवास के पीठाधीश्वर के रूप में, वे रसिक उपासना को आधार बनाते हुए भगवान् श्रीसीताराम एवं हनुमान् जी विविध उत्सव आयोजित करते हैं। इन उत्सवों में श्रीरामनवमी, श्रावण झूला, श्रीरामविवाह आदि मुख्य है। श्रीहनुमत् उपासना का केन्द्र होने के कारण श्रीहनुमज्जयन्ती यहाँ विशेष रूप से मनाई जाती है। पूरे पखवाड़े तक चलने वाले इस आयोजन में जन्म बधाई, कथा, सन्त-सम्मेलन और भण्डारे समेत श्रीहनुमान् जी की विशेष आराधना होती है। [10] अयोध्या में पंचमुखी महादेव के संचालक के तौर में स्वामी मिथिलेशनन्दिनीशरण प्रति वर्ष शिवरात्रि का महा आयोजन करते हैं जिसमे गान और वार्षिक भोज सम्मिलित है।[11]

Siddha sadhu (talk) 05:23, 26 September 2024 (UTC)[reply]

बाहरी लिन्क

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Official website

References

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