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User:M C Srivastava 1976

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  • कायस्थ कौन हैं!*

  • गौडाश्च द्वादश प्रोक्ता: कायस्थास्तावदेवहि।*

संदर्भ-पद्मपुराण, उत्तरखण्ड, कायस्थानांसमुत्पत्ति। अर्थ-गौडब्राह्मण 12 प्रकार के बताये गये हैं। उन्हें ही कालान्तर में "कायस्थ" जानें।

कायस्थ ब्राह्मणों की सर्वश्रेष्ठ जाति है। ब्राह्मणों में केवल चित्रगुप्त वंशीय कायस्थों की ही उत्पत्ति और ऋषियों से संस्कार ग्रहण करके ब्राह्मण के रूप में स्थापित होने का वर्णन है। यह वर्णन पद्मपुराण, उत्तरखंड में विद्यमान है। कायस्थ लोकशासक महाकाल चित्रगुप्त के वंशज हैं। "महाकाल चित्रगुप्त भगवान् ब्रह्मा के 18 वें मानस सन्तान हैं।"

भगवान् विष्णु के नाभि से भगवान् ब्रह्मा प्रकट हुये थे। भगवान् ब्रह्मा से 18 मानस सन्तान का सृजन किया गया। इसका वर्णन पद्मपुराण के सृष्टिखंड एवं भागवतपुराण के स्कन्ध 3 में विद्यमान है। भगवान् ब्रह्मा ने सर्वप्रथम अपने दशांश शक्ति से 10 ऋषियों को उत्पन्न किया। इनमें गोद से नारद, अंगूठे से दक्ष, श्वास से वसिष्ठ, त्वचा से भृगु, हाथ से क्रतु, नाभि से पुलह, कानों से पुलस्त्य, मुख से अंगिरा, नेत्रों से अत्रि और मन से मरीचि ऋषि उत्पन्न हुये। भगवान् ब्रह्मा के 10 अलग-अलग अंगों से उत्पन्न होने के कारण प्रत्येक ऋषि भगवान् ब्रह्मा से "दशांश शक्ति" के हैं। ये ऋषि पुरुष होने के कारण संतान उत्पन्न करने में सक्षम नहीं हैं, इससे चिन्तित होकर भगवान् ब्रह्मा विचार कर रहे थे तभी उनके बायेंअंग से शतरूपा तथा दायेंअंग से स्वायंभुवमनु उत्पन्न हुये। भगवान् ब्रह्मा ने उनका विवाह कराया। शतरूपा से प्रसूति नामक कन्या उत्पन्न हुई। उसका विवाह दक्ष ऋषि से हुआ, प्रसूति से 24 कन्याओं का जन्म हुआ। उनमें से 8 कन्याओं का विवाह मरीचि इत्यादि 8 ऋषियों से हुआ, इनमें नारद वैरागी हो गये। 8 ऋषियों से उत्पन्न प्रजा का मृत्युलोक में विस्तार हुआ। स्वायंभुवमनु ने मनुस्मृति की रचना करके, 4 वर्णों में व्यवस्थित किया। ऋषियों से उत्पन्न प्रजा सत्-रज-तम से मिश्रित त्रिगुणात्मक थी। संदर्भ-भागवतपुराण, स्कन्ध : 3-4

तत्पश्चात भगवान् ब्रह्मा ने सतोगुणी प्रजा के विस्तार के लिये 4 सनकादि (सनक, सनन्दन, सनत्कुमार एवं सनातन) को उत्पन्न किया और ऋषियों की पुत्रियों से विवाह करके सतोगुणी प्रजा के विस्तार के लिये आदेश दिया, तब सनकादि ने ब्रह्मचर्य रहने की इच्छा व्यक्त की, इससे भगवान् ब्रह्मा को अत्यंत क्रोध आया, तब भगवान् ब्रह्मा के क्रोध से भगवान् रुद्र (शंकर) प्रकट हुये। इनका विवाह दक्ष की पुत्री सती से हुआ, जो शरीर त्याग कर पार्वती हुईं। संदर्भ-पद्मपुराण, सृष्टिखण्ड, अध्याय-3

भगवान् ब्रह्मा ने स्वर्ग के दक्षिण दिशा को सृष्टि का न्यायालय बनाया। जिसके संचालन हेतु मरीचि ऋषि के वंशज, सूर्यपुत्र यम को दिया। यमराज इसे नहीं कर सके।

महाकाल चित्रगुप्त के उत्पन्न होने का कारण--- एक बार यमराज माण्डव्य ऋषि को त्रुटिपूर्ण दण्ड दे दिया जिससे क्रोधित होकर माण्डव्य ने शूद्रा के गर्भ से उत्पन्न होने का शाप दे दिया। संदर्भ-पद्मपुराण, उत्तरखण्ड, अध्याय-141 माण्डव्य ऋषि के शाप से दुःखी होकर, शाप मुक्त होने का उपाय, भगवान् शंकर से पूछा भगवान् शंकर ने यमराज को बताया कि सभी को अपने कर्म का फल भोगना पड़ता है।

भगवान् चित्रगुप्त की उत्पत्ति-- यमराज माण्डव्य ऋषि के शाप से दुःखी होकर भगवान् ब्रह्मा के पास जाकर बोले! हे भग्वन् आपने मुझे 84 लाख योनि पर शासन करने हेतु आदेशित किया है, परन्तु मैं इसको करने में असहाय हूँ, क्योंकि ऋषि, देवता और दानव-ऋषि से उत्पन्न होने के कारण समान शक्ति के हैं। भगवान् ब्रह्मा ने यमराज से कहा तुम जाओ मैं व्यवस्था करता हूँ। यमराज के चले जाने पर भगवान् ब्रह्मा कठोर तपस्या करने लगे। तपस्या में उन्होंने भगवान् विष्णु का "पालन" अपना "जन्म" और शंकर का "संहार" करने की शक्ति को संचित किया। ये तीनों शक्ति संचित होते ही उनकी काया (सर्वांग शरीर) से उनके समान शक्ति के महाशक्तिशाली पुरुष प्रकट हुये, जो कलम, पत्रिका और दावात लिये हुये थे। भगवान् ब्रह्मा ने उनका नाम कायस्थ और चित्रगुप्त रखा। अपने पुत्र महाकाल चित्रगुप्त को सभी प्राणियों के भाग्य को लिखने का आदेश दिया। यथा---

  • ब्रह्मोवाच-*
  • धर्मराजगृहं गच्छ कार्यं मे कुरु सुव्रत।*
  • सत्-असत् सर्वजन्तूनां लेखकः सर्वदैव हि॥१५॥*

अर्थ-हे पुत्र यमलोक में जाकर मेरा कार्य करो, चराचर जगत के सभी प्राणियों का भाग्य लिखो॥१५॥

जन्म-पालन-संहार भाग्य का ही परिणाम है, जो भगवान् चित्रगुप्त के अधीन हैं। भगवान् चित्रगुप्त-यमराज सहित ऋषि, देव तथा दानवों के दण्डदाता हैं। इसका प्रमाण वाराहपुराण के अध्याय-204 के इस श्लोक से मिलता है। जिसमें नचिकेता ऋषि ने यमलोक में प्रत्यक्ष देखे प्रकरण में कहा है कि-

  • ऋषि उवाच-*
  • इदं चैवापरं तस्य वदतो हि मया श्रुतम्।*
  • चित्रगुप्तस्य विप्रेन्द्रा वचनं लोकशासिनः॥१॥*

अर्थ-नचिकेता ऋषि बोले-मैंने ब्राह्मणों के राजा एवं लोकशासक चित्रगुप्त को जो कहते हुये सुना वह मुझसे सुनें॥१॥

  • अभयं चत्र यक्ष्यामि ब्राह्मणेभ्यो न संशयः॥२२॥*
  • तस्माद्यात ऋषिभ्यश्च स्त्रीभ्यश्चैव महाबलाः।*
  • यातनाया न भेतव्यमहमाज्ञापयामि वः॥२३॥*

संदर्भ-वाराहपुराण, अध्याय-204 अर्थ-चित्रगुप्त जी ने यमदूतों से कहा कि मैंने ब्राह्मणों को अभय दिया है, इसमें संशय नहीं है॥२२॥ चाहे ऋषि, स्त्री या महाबली हों दण्ड देने में भेद मत करो, ये मेरा आदेश है॥२३॥

महाकाल चित्रगुप्त चराचर जगत के सभी प्राणियों के भाग्य विधाता हैं। यही ऋषि देव तथा दानवों के दण्डदाता हैं। यमराज के दण्डदाता भगवान् चित्रगुप्त ही हैं क्योंकि यमराज भी ऋषि वंशज हैं।

भगवान् चित्रगुप्त का विवाह वैवस्वतमनु की 4 तथा नागों (नागर ब्राह्मणों) की 8 कन्याओं से हुआ था। यथा-

  • वैवस्वतमनोः कन्याश्चतस्त्रः शुभलक्षणाः॥*
  • अष्टौ सुरुपा नागीया पितृभक्तिपरायणाः।*
  • तासां समभवान्पुत्रा द्वादशैव जगत्प्रिया॥*

अर्थ-महाकाल चित्रगुप्त का विवाह शुभलक्षणों वाली वैवस्वतमनु की 4 तथा पितृभक्तिपरायण 8 नागों (नागर ब्राह्मणों) की कन्याओं के साथ हुआ। उनसे जगत्प्रिय 12 पुत्र उत्पन्न हुये। संदर्भ-पद्मपुराण, उत्तर खण्ड, कायस्थानांसमुत्पत्ति।

ये लिखने में निपुण थे। भगवान् ब्रह्मा उनको लेकर भूलोक में आये, और 12 ऋषियों-माण्डव्य, गौतम, श्रीहर्ष, हारित, वाल्मीकी, वसिष्ठ, सौभर, दालभ्य, सुखसेन, भट्ट, सौरभ तथा माथुर को भूलोक की विधा सुनाने और पुत्र के समान पालन करने का आदेश दिया। यथा-

  • एवं दत्वा तु तान् पुत्रान् ब्रह्मा लोक पितामहः।*
  • उवाच वचनं श्लक्ष्णं ब्रह्मा मधुरया गिरा॥*
  • पुत्रत्वे पालनीयाश्च लेखकाः सर्वदैव हि।*
  • शिखासूत्रधरा ह्येते पटवः साधु संमता॥*

संदर्भ-पद्मपुराण, उत्तर खण्ड, कायस्थानांसमुत्पत्ति। अर्थ-भगवान् ब्रह्मा ने ऋषियों से कहा कि चित्रगुप्त के इन पुत्रों को अपने पुत्र के समान पालन करना, ये सभी के भाग्य को लिखने वाले, शिखा-सूत्र धारण करने वाले, बोलने में निपुण, साधु के समान होंगे। भगवान् ब्रह्मा की आज्ञा से 12 ऋषियों ने चित्रगुप्त के 12 पुत्रों को विधा सुना दिया। जिसे लिखकर कायस्थों ने स्थाई बना दिया। कायस्थों ने 12 ऋषि पुत्रों को लिखना सिखाया। इस कारण चित्रगुप्त वंशीय 12 कायस्थ गुरु के रूप में स्थापित हुये, जो इस प्रकार है- गुरु निगम, गुरु गौतम, गुरु श्रीवास्तव, गुरु श्रेणीपति, गुरु वाल्मीकी, गुरु वसिष्ठ, गुरु सौरभ, गुरु दालभ्य, गुरु सुखसेन, गुरु भट्टनागर, गुरु सूर्यध्वज तथा गुरु माथुर नाम के गौडब्राह्मण हुये। संदर्भ-पद्मपुराण, उत्तरखण्ड, कायस्थानांसमुत्पत्ति।

  • चित्रगुप्त वंशीय कायस्थ ब्राह्मणो का कर्म-*

चित्रगुप्त वंशीय कायस्थों को पढ़ना-पढ़ाना, यज्ञकरना- यज्ञकराना, दानदेना-दानलेना एवं वेद को लिखना ये 7 कर्म निर्धारित किया गया है। यथा-

  • द्विजातीनां यथादानं यजनाध्ययने तथा।*
  • कर्तव्यानीति कायस्थै: सदा तु निगमान् लिखेत्॥*

संदर्भ-पद्मपुराण, उत्तर खण्ड, कायस्थानांसमुत्पत्ति। अर्थ-कायस्थ द्विजों के लिये पढ़ना-पढ़ाना, यज्ञकरना-यज्ञकरना, दानदेना-दानलेना तथा वेद को लिखना ये 7 कर्म निर्धारित किया गया है।

  • ऋषि ब्राह्मणों का कर्म-*
  • अध्यापनमध्ययनं यजनं याजनं यथा।*
  • दानं प्रतिग्रहं चैव ब्राह्मणानामकल्पयत्॥*

संदर्भ-मनुस्मृति, अध्याय-1 ब्राह्मणों के लिये अध्ययन-अध्यापन, यज्ञकरना-यज्ञकरना तथा दानदेना-दानलेना, ये 6 कर्म निर्धारित किया गया है।