User:Rahulsavita
My Name is Rahul Savita S/O Mr.Ramdutt Savita S/O Nibhori Lal lives with whole family in Kripalpura Fatehabad Agra 283111.date 26-03-2017 Sunday.
Love doesn’t hurt, Loving the wrong person does.
Presented by RAHUL SAVITA
***फतेहाबाद का इतिहास***
आइये आज आपको ले चलते हैं आगरा ज़िले के एक नगर फतेहाबाद में और चर्चा करते हैं कि कैसे यह अनजाना सा शहर अपने आप में ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व को समेटे हुए है | फतेहाबाद की भूमि कथा है रानी पद्मावती की लाज की रक्षा की, भगवान् विष्णु के वचन की, औरंगज़ेब के अतृप्त, व अथाह सत्ता की लोलुपता की और दारा शिकोह के साहस की| फतेहाबाद कथा है शाहजहां की आँखो के सामने ही उसके दो बेटो के युद्ध की औरंगज़ेब की जीत और दारा शिकोह की हार की |
***पौराणिक तथ्य***
लेखक मनीष कुमार गुप्ता, के अनुसार, सामूगढ़ (वर्तमान में फतेहाबाद) का एक विशेष पौराणिक महत्व है उसकी कथा इस प्रकार है :
द्वापर युग की बात है| मथुरा में यदुवंशी राजा उग्रसेन राज्य करते थे जिनका विवाह विदर्भ के राजा सत्यकेतु की परम सुंदरी बेटी पद्मावती से हुआ| उग्रसेन पद्मावती से बेहद प्रेम करते थे|कुछ समय बाद रानी पद्मावती अपने पिता से मिलने अपने मायके विदर्भ गई और वहां पर एक दिन नैसगिॅक सुन्दरता का आंनद लेने के लिए पहाड़ों पर गई | वहां सुंदर वन और तालाब थे | वो वन और पहाड़ों की सुंदरता को देख कर बहुत खुश हुई और स्त्री सुलभ चंचलता से उसने एक सुंदर तालाब में प्रवेश किया और पानी में खेलना शुरू कर दिया। उसी समय गोभिल नाम का एक राक्षस उड़ते हुए कही जा रहा था| जब वह तालाब के ऊपर से गुजर रहा था तो उसने रानी पद्मावती को पानी में खेलते हुए देखा| उसने मायावी शक्ति से पता लगाया था कि वह विदर्भ के राजा की बेटी और मथुरा के राजा उग्रसेन की पतिव्रता पत्नी है |
उसने मायावी शक्ति द्वारा उग्रसेन का रूप बनाया और, उस पहाडी पर उतर गया और एक अशोक वृक्ष के नीचे बैठकर गीत गाने लगा। जब रानी पद्मावती ने गाना सुना, उसे आवाज पहचानी हुई सी प्रतीत हुई| जिज्ञासा से जब उसने चारों ओर देखा तब राजा उग्रसेन को एक पेड़ नीचे बैठकर गीत गाते हुए पाया तो वह हैरान रह गई तभी गोभिल ने स्वयं उसे बुलाया और कहा आओ प्रिये, मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता। तुम्हारी याद मुझे यहाँ खींच लाई है|
पद्मावती प्रसन्न महसूस कर रही थी और उसके करीब चली गई ।और वह दोनों प्रेम में डूब गये| तभी पद्मावती ने ध्यान दिया कि महाराज उग्रसेन के सीने पर जन्म के समय का एक विशेष खास चिह्न था जो उसे उस समय दिखाई नहीं दिया| उसे संदेह हुआ और बाद में गुस्से में बोली तुम राजा उग्रसेन नहीं हो "मुझे बताओ दुष्ट तुम कौन हो?और दानव की तरह हो तुम मेरे पति के भेस में आए हो, तुमने मेरा शरीर अपवित्र कर दिया है और मेरे पतिव्रत को नष्ट कर दिया है, यह कह कर वो रोने लगी और उसे शाप देने के लिए तैयार हो गई तब गोभिल ने कहा - हे पतिव्रता महिला, सबसे पहले आप मुझे मेरी गलती बताईये, जिसके लिए आप मुझे दोष दे रही हैं? में तो राक्षस हूँ और हमारे यहाँ छल को पाप नहीं माना जाता है | और आप पतिव्रता भी नहीं हो .
पद्मावती ने कहा - "मैं एक पतिव्रता स्त्री हूं। मैं पतिव्रता धर्म का पालन करती हूँ I लेकिन आपने मेरे धर्म को अपनी माया से नष्ट कर दिया है, गोभिल ने कहा - मेरी बात सुनो, मैं आपको बताता हू की आपका एकमात्र धर्म क्या है। जो भी महिला अपने पति को मन, वचन और कर्म के द्वारा प्रसन्न करती है और अपने पति को अपने सभी प्रयासों में सहयोग देती है तभी उसी महिला को पतिव्रता कहा जाता है। जो अपने पति की अनुपस्थिति में भी आनंद लेती हैं, वह एक पतिव्रता महिला नहीं है। आप अपने पति और गृहस्थ धर्म को छोड़कर यहाँ आई और आप दावा करती हैं कि आप एक पतिव्रता महिला हैं?
पद्मावती ने रोते हुये कहा - "हे असुर, मेरे पिता ने मुझे प्रेम से बुलाया है, और पिता के घर जाना गलत नहीं है | तब गोभिल ने हंसकर कहा कि आपको एक पुत्र होगा जो तीन लोकों का अनिष्ट करेगा।" और यह कहकर वह चला गया। पद्मावती आँसुओं में डूब गईं और मथुरा लौट गई | मथुरा उग्रसेन पद्मावती को देख कर बहुत प्रसन्न हुए और कहा, "मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता। तुम मुझे बहुत प्रिय हो। वहीं पद्मावती के मन में अत्यंत ग्लानि और दुःख था | इस ग्लानि को मिटाने के लिए वो मथुरा से 20 कोस दूर यमुना के किनारे से एक निर्जन वन में जाकर भगवान् विष्णु की तपस्या करने लगी और बार बार अपनी इस पाप मुक्ति की याचना करने लगी| विष्णु भगवान उसकी तपस्या से खुश हुए और वरदान मांगने को कहा| पद्मावती ने विष्णु भगवान से इस गर्भ और कलंक से मुक्ति को कहा लेकिन विष्णु भगवान बोले यह एक निर्दोष की जीव हत्या होगी और तुम्हे पाप लगेगा इसलिए मैं तुम्हे रोकता हूँ परन्तु मैं तुम्हे ये वरदान दे सकता हूँ कि तुम अपना गर्भ असीमित समय तक रोक सकती हो | ताकि तुम्हे इस कलंक से मुक्ति मिले| यह बालक बहुत क्रूर होगा जिसका अंत मेरे ही हाथों द्वारा होगा| उसके विनाश के लिए में धरती पर कृष्ण के रूप में जन्म लूंगा और उसका वध करुँगा |
तब पद्मावती ने अपनी लाज बचाने हेतु अपने गर्भ को 10 साल तक रोके रखा और तत्पश्चात एक पुत्र को जन्म दिया जिसे बाद में कंस के नाम से जाना गया | वह इतना क्रूर था कि मृत्यु से बचने हेतु अपनी ही सगी बहन देवकी के नवजात शिशुओं की हत्या करता गया और साथ ही पूरे मथुरा के नवजात शिशुओं की भी हत्या करा दी | जानते हैं कि ये काम कोई मनुष्य नहीं कर सकता है और कंस एक मनुष्य नहीं बल्कि राक्षस का पुत्र था | कंस महाराज उग्रसेन का नहीं बल्कि राक्षस गोभिल की संतान था|
बृहद भागवत के सृष्टि खंड में इस बात की पुष्टि की गयी है |
समय आने पर विष्णु भगवान ने कृष्ण के रूप में अवतार लिया और उचित समय पर कंस का वध किया| जिस वन में भगवान विष्णु ने रानी पद्मावती को दर्शन देकर अपने आने वाले अवतार कृष्ण यानि श्याम के बारे में बताया | वही उसे घटना के पश्चात श्याम वन और कालांतर में श्यामगढ़ और बाद में सामूगढ़ के नाम से प्रसिद्ध हुई | जिसे हम आज फतेहाबाद के नाम से जानते है |
लेखक: मनीष कुमार गुप्ता 9810771477, के मतानुसार सम्भवत: कंस के मेले और उसके पुतला दहन का फतेहाबाद से यही संबंधहै | एक दूसरी दन्त कथानुसार जब भगवन कृष्ण ने कंस को मार दिया और उसके शव को यमुना में बहा दिया तब वह शव फतेहाबाद में यमुना नदी के किनारे अटक गया और लोगो की भीड उसे देखने के लिए जमा हो गयी सम्भवत: यह भी कंस के मेले लगने की प्रथा का कारण हो (संदर्भ- पदम पुराण)
***ऐतिहासिक तथ्य***
लेखक मनीष कुमार गुप्ता के द्वारा पुराने रिकॉर्ड को खंगालने से पता चला है कि, फतेहाबाद का पुराना नाम सामूगढ़ था और औरंगज़ेब ने अपने भाई दारा शिकोह पर फतह दर्ज करने पर सामूगढ़ का नाम फतेहाबाद रख दिया और बादशाह के नाम पर मुग़ल शैली में बादशाही मस्जिद और बादशाही बाग़ भी बनवाया जो आज भी मौजूद है | दारा शिकोह मुगल बादशाह शाहजहा का सबसे बड़ा बेटा और मुगल वंश का उत्तराधिकारी था | दारा शिकोह का जन्म 1615 को अजमेर के तारागढ़ किले में हुआ था | ऐसा कहा जाता है कि दारा के पिता शाहजहां ने मोइउद्दीन चिश्ती की दरबार में घुटनों पर बैठकर पुत्र की मन्नत माँगी थी | दारा शिकोह हिन्दू और इस्लाम धर्म से समानता का व्यवहार करता था | लेखक: मनीष कुमार गुप्ता, का मानना था कि अगर वो राजा बनता तो शायद हिन्दू-मुस्लिम में इतना मतभेद नही होता तो देश का भविष्य दुसरे मुगल संतानों की तरह दारा शिकोह को भी कम उम्र में ही मुगल सेना का सेनापति बना दिया गया था|
बादशाह शाहजह स्वास्थ्य बिगड़ने पर मुगल संतानों में सत्ता के लिए संघर्ष शुरू हो गया | इन सभी में से असली मुकाबला दारा शिकोह और औरंगजेब के बीच था | शाहजहा के दुसरे पुत्र शाह शुजा ने अपनी पहली चाल चली और अपने आप को बंगाल का बादशाह घोषित कर दिया और आगरा की तरफ अपनी सेना बढाई | शाहजहा का सबसे छोटा बेटा मुराद बक्श अपने बड़े भाई औरंगजेब के साथ मिल गया | तब तक दारा शिकोह बिहार प्रान्त का सूबेदार बन गया था और उसकी सेना बढकर 60,000 पैदल सेना और 40,000 अश्व सेना तक पहुच चुकी थी |
दारा शिकोह सामूगढ़ की लड़ाई में औरंगजेब से हार गया और औरंगजेब की जीत हुयी| औरंगजेब ने आगरा के किले को अपने कब्जे में लेकर दारा शिकोह को बंदी बना लिया और उसको वहीं पर फांसी दे दी | यही सामूगढ़ नाम का स्थल आज का फतेहाबाद है |
इतिहासविद राजकिशोर राजे की पुस्तक 'तवारीख-ए-आगरा' में जिक्र मिलता है कि औरंगजेब ने फतह हासिल करने पर सामूगढ़ का नाम बदलकर फतेहाबाद कर दिया। यहां 40 बीघा जमीन में उसने विशाल बाग लगवाया। इसका नाम बादशाही बाग रखा गया। इसके चारों कोनों पर चार छतरियां बनवाईं। बाग के बीचोंबीच महल बनवाया, जो अब नष्ट हो चुका है। उत्तरी चहारदीवारी के बीचोंबीच एक भव्य द्वार का निर्माण करवाया। यही द्वार आज फतेहाबाद तहसील का मुख्य द्वार है। दक्षिणी चहारदीवारी में भी द्वार बनवाया गया था, जो नष्ट हो चुका है। यहां के भवन की निर्माण शैली लाल किले के रंगमहल से मिलती जुलती है। वर्तमान में बादशाही बाग के अंदर तहसील कार्यालय, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, वन क्षेत्राधिकारी कार्यालय, उपजिलाधिकारी कार्यालय, सब रजिस्ट्रार कार्यालय, मुंसिफ मजिस्ट्रेट न्यायालय, कस्तूरबा गांधी बालिका आवासीय विद्यालय संचालित हैं। कस्बे के बीचोंबीच एक घुड़साल का निर्माण औरंगजेब ने कराया था। अंग्रेजी हुकुमत में इसे तहसील मुख्यालय बनाया गया। वर्तमान में इसमें राजस्व विभाग और तहसीलदार आवास है। इसके बगल में जामा मस्जिद और कस्बे के बाहर शाही तालाब का निर्माण कराया गया था।
समय बाद तक यह फतेहाबाद मुगलों के अधिकार में रहा उसके बाद इस पर ग्वालियर के राजा दौलत राव सिंधिया (माधव राव सिंधिया के दादा जी) ने अधिकार कर लिया था |
लेखक मनीष कुमार गुप्ता को पता चला है कि फतेहाबाद का सामरिक दृष्टि से भी बड़ा महत्व था फतेहाबाद की महत्व को देखते हुए, अंग्रेजों ने फतेहाबाद रेल चलाई और शानदार रेलवे स्टेशन बनवाया जिसके खंडहर आज भी फतेहाबाद में देखे जा सकते है | किन्तु आर्थिक रूप से लाभ न होने के कारण कुछ समय बाद इसे बंद कर दिया गया और रेल का इंजन व् पटरिया नीलामी के द्वारा वहाँ के लोगो में बेच दिया|
फतेहाबाद में एक सती माता का मंदिर भी है लेखक मनीष कुमार गुप्ता को वहां के बुजुर्गों ने बताया है यहाँ पर सती माता का मेला लगता है | फतेहाबाद में सती माता का मंदिर भारतीय परपराओं का जीता जागता उदाहरण है, जो कहता है की भारत की नारियों ने म्लेच्छों से अपवित्र होने से बचने के लिए अग्नि की चिंताओं में समा जाना उचित समझा और इस सती के मेले में आने वाले हर व्यक्ति के मन में यही भावना जागृत होती होगी की धर्म की रक्षा प्राणों की रक्षा से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं | आज़ादी के बाद काफी समय तक चंबल के डाकूओं का आतंक भी फतेहाबाद नगर तक रहा किन्तु वर्तमान में यह पूर्णतः समाप्त हो चूका है |
फतेहाबाद भारत देश के उत्तर प्रदेश राज्य के आगरा जिले का एक नगर है। यह आगरा से लगभग 35 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में स्थित है। कानपूर से 280 किलोमीटर और ग्वालियर से 131 किलोमीटर दूर है और यमुना नदी से यह दूरी मात्र 6 किलोमीटर है और यमुना के उस पार 10 किलोमीटर की दुरी पर फिरोज़ाबाद है इसी यमुना तट पर फिरोज़ाबाद शहर का मूल शहर चँदवार स्थित है | जिसका इतिहास भी लेखक मनीष कुमार गुप्ता के द्वारा लिखा गया है | 108 शिव मंदिर के समूह के लिए विख्यात बटेश्वर भी यहाँ से लगभग 30 किलोमीटर कि दुरी पर है | इसकी कुल जनसख्या लगभग 18000 है| जिसमे से माथुर वैश्य / वैश्य समाज की जनसंख्या लगभग 2500 हैं |
लेखक: मनीष कुमार गुप्ता
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