Jump to content

User:Rkupadhyay

From Wikipedia, the free encyclopedia

“माँ” वो एक लफ्ज़ जिसमें तीनों लोक समाए हैं,

ब्रह्मा विष्णु महेश भी जिसने गोद में खिलाए हैं।

नतमस्तक रहना सदा अपनी जननी के आगे तुम,

तुम्हें पाने को ना जाने कितने कष्ट उसने उठाए हैं।

देवता भी तरसते रहते हैं माँ की ममता पाने को,

माँ के चरणों की धूल अपने माथे पर सजाने को।

बड़े ही खुशनसीब हो तुम कि तुम्हारे पास माँ है,

सबसे बड़ा कवच है माँ हर विपदा से बचाने को।

तैंतीस कोटि देवी देवताओं का वास माँ के चरणों में,

ता-उम्र बैठे रहना सदा बनकर दास माँ के चरणों में।

वेदों में लिखा है माँ से बड़ा कोई नहीं तीन लोकों में,

उस बैंकुठ धाम सा होता है अहसास माँ के चरणों में।

माँ के दिल से निकली दुआ खुदा से भी टाली नहीं जाती,

मत दुखाना दिल माँ का उसकी बद्दुआ खाली नहीं जाती।

“रोहित” अपनी माँ की सेवा में हर पल तैयार रहता है,

बड़े बदनसीब हैं वो जिनसे ये जन्नत को संभाले नहीं जाता ।

रोहित कुमार उपाध्याय