User talk:Subodh dixit
श्रीस्थाणोर्चरित्रम् ----- शिव दयाल कृत शिव पुराण परिपाटी ----
शिव चरित्र महात्म
। ऊँ ।
श्री गणेशाय नमः
श्री गिरिजापति चरण कमलेभ्यो नमः
श्री स्थाणोर्चरित्रम्
प्रथम पाद
प्रथमोअध्याय
दोहा
वंदि प्रथम गणनायक , मंगल मूरति रूप ।
तत्व रूप शिव को , जिमिलखि परै अनूप ।।
सारद मातु बन्दि पुनि , वाणी निर्मल होय ।
वरणौ शिव चरित महात्म को , विघ्न परै नहि कोय ।।
विधि हरि सुरगुन सकल , वन्दि धरणि धरि शीश ।
पुरवहु मोर मनोरथ , कृपा करहु बागीश ।।
तत्व रूप मय शक्ति शिव , वन्दौं शीश नवाय ।
सुमिरत नाम रूप को , अज्ञान तम् बिनसाय ।।
वन्दौं सकल धरणि धरि माथा । करब छुटायन शिव कै गाथा ।।
नमि नव नाथ सिद्द चौरासी । नवहुं सूर सामंत नवासी ।।
चौदह भुवन समेंत निवासी । सुरग नरक जेतिक सब रासी ।।
दोहा -1
नव जलचर दस व्योमचर , कृमि ग्यारह खग बीस ।
चतुराशी लक्ष जोनि मह , मनुज चारि पशु तीस ।।
वन्दौ सकल युगल कर जोरी । पूरण करौ लालसा मोरी ।।
सब जग जोनि लाख चौरासी । चारि षानि जल थल नभ वासी ।।
शम्भु शक्ति मय सब जग जानी । विनय प्रणाम करौ सुख मानी ।।
वन्दहु तीरथ लागि प्रयागा । क्षेत्र चारि दश भेद विभागा ।।
चारि धाम गिरि वन जे पावन । गंगादिक नद नदी सुहावन ।।
विन्दु नरायन मान पम्प सर । उत्तम चारि सुआन सरोवर ।।
सात पुरी रमनीक सुहावनि । विदित मुक्ति देनी जग पावनि ।।
द्वादश ज्योर्ति लिंग उप लिंगा । वन्दौ सकल रचित गिरि श्रंगा ।।
सोरठा - 2 क
विनवौ सबै कवीस वाला चौसठ योगिनी ।
वाउन वीर नदीस सात दीप नव देवता ।।
दोहा - 2ख
वन्दउ संत असंत जन शीश नाय कर जोरि ।
पर स्वारथ लगि संत जन दुष्ट अकारण खोरि ।।
विनवौ जामवन्त हनुमन्ता । राम दूत शिव सेवक संता ।।
वन्दौ षटमुख कीरति रंजन । वीर भद्र भ्रंगी नंदी गन।।
नमि नरसिहं पवन उनचासा । छप्पन भैरव ऋषि दुरवासा ।।
सात ऋषिय वसु आठ विशाला । नवग्रह आन दशौ दिगपाला ।।
अष्ट सिद्धि नव निधि रिधि मानी । रमा गवरि काली वृह्मानी ।।
ग्यारह रुद्र स्व बारह भानू । तेरह विश्व देव त्रि कृशानू ।।
कात्यायनि नव कोटिक उरगा । दसहु महा विद्या नव दुर्गा ।।
चौदह विद्या जम दस चारी । वंदहु सकल अवनि सिर धारी ।।
दोहा - 3
सोरह तिथिन के ईश लगि , अष्टादस पौरान ।
सकल वंदि विरचै कथा , भाषा निज अनुमान ।।
सात करण सत्ताइस योगा । अष्टविश नक्षत्र प्रयोगा ।।
संवत साठि नरक चौरासी । वंदौ सब रिषि सहस अठासी ।।
वालखिल्य दस सहस सुभागे । उलटे वहय वड़ै रवि आगे ।।
कर्दम कपिल अंगिरा अरुणा । पुलह पुलस्ति मित्र अरु वरुणा ।।
चलत चक्र क क क्र सकल मुनि पाछे । फिरे भुवन भरि भूतल आछे ।।
जहां निमिष ठहरो वन माही । कहत नैमिषारण तिहि पाही ।।
परत पताल गयो अहि धामा । भयेसि चक्र तीरथ तिहि नामा ।।
तेहि देखन विरंचि तह आये । तनय लाम हर्षन बुलवाये ।।
व्यास शिष्य लखि सूत सुजाना । बकता करि विधि गये सुथाना ।।
विनय शौनकादिक अस भाषा । पुरवौ सूत सकल अभिलाषा ।।
सुनत सूत कथा वहु बरणी । जिमि गंगा कलि पातक हरणी ।।
वहुरि शौनकादिक मुनि बोले । सूत सनौ मम् वचन अडोले ।।
दोहा - 5 सूत सकल वरणौ कथा करौ मोहि परिपोष ।
श्रवण रध्र पीयूष सम पिवत नही सन्तोष ।।
सूत कठिन कलि काल अरम्भा । शिव की कथा श्रवन अवलम्वा ।।
शिव रहस्य यदि भांति अनेका । सुगम विशेष समेत विवेका ।।
चारि सहस नव सै सत्ताउन । गये वर्ष कलि पृजा नसाउन ।।
आनि वर्ष पृति अध अधिकारी । बहु व्यभिचार करै नरनारी ।।
मृषा वचन निशि वासर भाषै । छल अरु कपट दंभ उर राषै ।
धर्म रहित पातक अनुसारा । दुराचार अनहित अपकारा ।।
पर पवाद पर धन अभिलाषी । पर पतनी रस पय मन भाषी ।।
दोहा-6 जनपद वेंचै अन्न रस द्विज गण वेचैं वेद ।
केश पृसारनि कामिनी नष्ट सकल वस षेद ।।
द्विज वैश्यारत मदिरा पाना । बरण भृष्ट सब पशू समाना ।
बहु विस्वासधात जन करिहै । निज निज मत पाखंड पसरिहै ।।
पति वंचक पर पति रत नारी । सास ससुर वर वैर विचारी ।।
कुटिल कुतंत्र कुमारग गामी । मात पितहि दूसहि षल कामी ।।
पापी पतित अधम अपराधी । होय सकल जन गरसित व्याधी ।।
विप्र करै सूद्रन कर करमा । साधहि सूद्र दुजन के धरमा ।।
वधहि विप्र गुरु वेदउ गाई । क्षेत्र हरै नृप करि कुटिलाई ।।
नारि स्वतंत्र पुरुष परतंत्रा । वरधि पाप सब चहै निमंत्रा ।। दोहा-7 क
धोर पाप कलिकाल के , कोटिन कठिन कराल ।
करै सकल नर ना तरै , विनआसै भ्म जाल ।। दोहा-7ख
कलि षल पावे सवै सुख , संत सुजन संताप ।
सूत प्रबोधउ ग्यान गुण , किमि वरजै सो पाप ।।
नर त्रिय वैर रमै पर दारा । सो त्रिय विलसै पर भरतारा ।।
काम विवस निज नारि दुलारै । हुय स्वतंत्र त्रिय जार सिधारै ।। होय वरण शंकर दुय प्रेरे । परै नरक लै पितर घनेरे ।।
एहि विधि होय अनेकन दोषा । केहि विधि मनुज लहै संतोषा ।।
सूत कहेउ शिव कथा विशाला । छूटहिं पाप दूषन भ्रम जाला ।।
तुम सब जानत व्यास प्रशादा । भाषहु सुगम शंभु मरजादा ।। तब मुख कथा अमी रस धारा । पिवै श्रवण पुट वनै विचारा ।।
निर्गुण शंभु सगुण केहि भांती । कहौ सुगम शिव कथा सुहाती ।।
दोहा - 8क
किमि तिष्टहिं शिव सृष्टि के आदि मध्य अरु अन्त ।
किमि सेवै शिवद्याल शिव सद प्रशीद चित संत ।।
सोरठा - 8 ख
हुय प्रशन्न कादेत त्रिकालज्ञ सर्वज्ञ शिव ।
सूत करौ चित चेत अहो लोम हर्षन तनय ।।
।। इति श्री शिव चरित महात्मे प्रथमोअध्याय ।। ।।। शिव दयाल कृत शिव पुराण परपाटी ।।। ।।।श्री स्थाणोर्चरित्रम् ।।।
।।।श्री स्थाणोर्चरित्रम् ।।।
।।। शिव दयाल कृत शिव पुराण परपाटी ।।।
।।। अथ श्री द्वितीयोअध्याय ।।।
दोहा - 1
जगत पिता शिवशंकर शिवा जगत की मात ।
तिनके तनय गणेश के वन्दौ पद जल जात ।।
कमला जिनके वछिसि वदन वसैं वागीस ।
सो प्रभु ह्रदि संविद सदा भजौं नृसिंह अधीस ।।
प्रथमै सूत सुमिरि शिव नन्दन । बोलेसि करि नृसिंह पद वंदन ।।
पारवती परमेश्वर चारौ । वंदि के वाणी अरथ सिधारौ ।।
सुनहु शौनकादि गुण जानै । भल शिव शक्ति पाद पहिचानै ।।
कहैं सुगम शिव शुभ संवादा । हरण दोष दुख शोक विषादा ।।
एक समय नारद मुनि योगी । गुण गण गावत ब्रह्म वियोगी ।।
विचरत धरणि करण उपदेशा । देखेउ अगनित लिंगं महेशा ।।
तव नारद विधि लोक सिधाये । करि विनती निज हेतु सुनाये ।।
सुनहु पितामह अस्तुति मोरी । पूछहि परमारथ कर जोरी ।।
दोहा
तव प्रसाद विधि विष्णु के सुने अमित आख्यान ।
तप तीरथ ब्रत नेम श्रुति भक्ति ज्ञान जप दान ।। अब हर पूजन भेद बतावौ । तत्व सहित शिव कथा सुनावौ ।। विविध चरित सो करै निवेदा । परम इष्ट गुन ज्ञान विभेदा ।। वरणौ सुगम महातम शिवकर । परम तत्व निर्गुण परमेश्वर ।।
शिव की महिमा भेद अपारा । जग विख्यात लोक उपकारा ।।
जेहि विधि होय सो शिव संतोषा । देवहि वांछित फल परितोषा ।।
उमा जनम तप तेज विवाहा । वरणौ सकल कथा अवगाहा ।।
करे उमा शिव चरित अनेका । सुने प्रथम नहि तोष विवेका ।।
तृपित होय जे सुनि शिव गाथा । लहो न तिन विशेष रस नाथा ।।
सोरठा -2 क
सो शिव कथा विशाल कहौ सु विभु जग पावनी ।
विधि बोले शिवद्याल नारद सुनौ महेश गुण ।। दोहा - 2ख साधुबाद पूछेउ सुगम , सवै लोक हित जानि ।
वरणौं शिव गिरिजा कथा , सुनौ परम सुखमानि ।।
शंभु कथा सुख देनि सुहावनि । पाप ताप दुख दोष नसावनि ।।
भये मगन तन पुलक शरीरा । गद गद गिरा विरंचि अधीरा ।।
शिव सुमिरे तन दशा विसारी । पुनि धीरज धरि विनै उचारी ।।
जै महेश जै जय गंगाधर । सर्व लोक हित सर्व पापहर ।।
देखि सुदशा चकित मुनिवृन्दा । नारदादि मन मगन अनंदा ।।
विहंसि विरंचि कहा सुनु नारद । यथा विष्णु के चरित विसारद ।।
तथा सुनहु शिव कथा पुनीता । हरणि सवै अघ ओघ सभीता ।।
परब्रह्म शिव अदभुत रूपा । जस दरसौ तस कहौ अनूपा ।। दोहा - 3
जोति रूप व्यापक अलख , निर्गुण ब्रह्म अनूप ।
शिव अचिंत्य अब्यक्त नित , स्थूलन सूक्ष्म रूप ।।
ब्रह्म अनादि अनंत विरासी । आदि औ अन्त रहित अविनासी ।।
योगिन ह्रदय ध्यान मै भासत । सत्य अनन्तक ज्ञान प्रकाशत ।।
सो सब मय शिव रूप समाना । दायक सबहि ज्ञान विज्ञाना ।।
कबहु कि निज इच्छा निरमानी । नाम प्रकृति माया गुण खानी ।।
कारण मूल सहित मरजादा । तासु अष्ट भुज समन विषादा ।।
वसन विचित्र विभूषण भासै । सहस चन्द्र दुति बदन प्रकासै ।।
नाना अभरण अंग विराजत । नाना गति समेत छबि छाजत ।।
धरे कमल कर आयुध नाना । नयन नवल अंबोज समाना ।। दोहा - 4
विदित महालक्ष्मी कहै महाकाली गुण खानि ।
प्रघटै जिन के अंस बहु रमा गवरि बृह्मानि ।।
तेज अंचिल उदित सब योनी । एकाकिनी वहुत मिलि होनी ।।
यथा प्रकृति देवी तस पुरुषा । करै विचार उभौ मिलि हरषा ।।
युगल होत का करण प्रयोगा । करै परस्पर ध्यान संजोगा ।।
भये तिहि समय गुणादिक वानी । संसय हरण करौ तप जानी ।।
ते सुनि दारुण तप कारायण । कबहु ध्यान पथ ब्रह्म परायण ।।
प्रकृति पुरुष उर भयो प्रबोधा । जब अति ध्यान की मारग सोधा ।।
तिनके अंग प्रकट जल धारा । ब्रह्म रूप जल सकल अपारा ।।
सो अनंत परसत अघ नासै । मंजन पान से ज्ञान प्रकासै ।।
सोरठा - 5क
सोये जल बिसराम , परम प्रीति करि काल बहु ।
पुरुष नारायण नाम , प्रकृति नाम नारायणी ।।
सोरठा-5ख
अपर कहूं ना कोय , प्रकृति पुरुष दोनौं बिना ।
यह अंतर लगि दोय , ब्रह्म तत्व विकसित महा ।।
दोहा - 5ग
महा तत्व भये प्रकृति से , महा से तृगुण प्रधान ।
अहंकार भयो त्रिगुण से , तेहि मात्रिका परान ।।
तहि ते पंच भूत अविराशा । सहित ज्ञान विज्ञान प्रकाशा ।।
कहेसि तत्व संख्या ऋिषि सत्तम । प्रकृति पुरुष विनि सवै जढ़ातम ।।
तत्वन संख्या उभौ प्रधाना । एकीकरि चौबीस प्रमाना ।।
तद संग्रेह उभौ जल सोये । ब्रह्म रूप वहु काल विगोये ।।
सोवत नारायण कर नाभी । प्रघटो उत्तम कमल कलाभी ।।
सहित करर्णिका पत्र अनन्ता । योजन अमित ऊंच नहि अन्ता ।।
अगनित योजन छांह पसारा । हेम गर्भ हम कमल कुमारा ।।
तेहि माया मोहत हम नारद । वेदन कंज विना श्रुति सारद ।।
दोहा - 6
को हम आये कहां ते , काज हमारो कौन ।
केहि के सुत जनमे कहां , मोहि रचो को तौन ।। इमि संसय करि अंत प्रबोधा । हम किमि माया मोहित सोधा ।।
कमल मूल थल मेरो करता । हुयहैं तहां स्व खोजै भरता ।। करि अस बोध कन्ज फुलनी ते । उतरत नाल वर्ष सत बीते ।।
तदपि न कमल मूल मै पावा । पुनि संसय करि फिरा सुभावा ।।
कमल नाल मारग अवरोहा । गये वर्ष सत भ्रमत विमोहा ।।
तेहि छण मात्र करै विसरामा । करत ईश्वरै विनय प़़णामा ।।
तव अस भई मनोहर वाणी । करहु परम तप निज हित मानी ।।
सो सुनि गुणि हम द्वादस वर्षा । करे कठिन तप मोह न मरषा ।।
दोहा - 7
चतुर वाहु प्रघटे तवै , तहां विष्णु भगवान ।
मो पर दया करन हित , तन घनश्याम सुजान ।।
शंख चक्र अरु गदा पदम कर । क्रीट मुकुट मणि पीताम्बर धर ।।
तरुण अरुण पंकज सम लोचन । नव अम्बुज मुख दुति भय मोचन ।।
सुभग कोटि कन्दर्प समाना । प्रकृति जनित सो श्री भगवाना ।।
रूप परम सुन्दर अस देखा । हम विसमय वस भये विशेषा ।।
काल आत्मा कणक प्रभाकर । शुक्ल कृष्ण सो निर्गुण सुन्दर ।।
सोपि असत सत मैं सर्वोतम । सर्व भूत मय नारयण सम ।।
महाबाहू विभु परम सुहावन । कहन लागि सो मो मन भावन ।।
प्रभु कौ लखि हम हर्ष समेता । तिहि निकेत मैं अस चित चेता ।। सोरठा - 8क
को तुम कहौ सुभाग , पूछत मोहिं सनातन ।
जानि प्रेम अनुराग , लगे उठावन हांथ गहि ।।
दोहा - 8 ख माया मोहित मर्षि हम , तिन संग कहा बुझाय ।
कहौ कौन तुम हाँथ गहि , हमकौ रहे उठाय ।।
क्रोध गिरा सुनि हरि भगवाना । कहसि कि सनौ विरंचि सुजाना ।।
परम विष्णु हम तत्व प्रधाना । सदा तुमहि कारक निरमाना ।।
अब ते वत्स सु निज सुभ जानौ । सत्य हमार वचन विधि मानौ ।।
नारद हम सो सुनि मुसकाने । माया मोहित मरषि रिसाने ।।
पुनि मैं कहा कि हरि किहि काजा । वत्स वत्स किमि कहत न लाजा ।।
गुरू शिष्य पितु सतै भिलासत । तैसे महा अल्प मुहि भाषत ।।
मुनि सो सब संसार को पालक । सकल विश्व करता खल शालक ।।
प्रकृति प़़वर्तन विष्णु सनातन । अजय विरंचि विश्व संजातन ।।
दोहा - 9
कमल नयन जगदातमा , विधातार धातार ।
तिहि से मै कहा मोह बस , भाषत कौन प्रकार ।।
मोह विवश लधु भाषत मोही । कौन अर्थ कहु पूछौ तोही ।।
सो कह मोहि भये तुम करता । पालनीय हम प्रघटे भरता ।।
हर मम अब्यय अंश उदारा । लगि तव अंग रुद्र अवतारा ।।
बुद्धि मोरि प्रभु पुरुष परायण । जगन्नाथ जगधर नारायण ।।
परमातम आतमा प़़धाना । जगत प्रभू अच्युत ईशाना ।।
विश्व प्रभव उदभवा अधीशा । विष्णु अनामय विभु जगदीशा ।।
विधि न तुम्हार कछू अपराधा । यह सब मय माया कर वाधा ।।
सुनहु परे ब्रह्मन सद ज्ञाता । सत्य के परे सकल मम जाता ।। दोहा - 10
निरमी चौबीस तत्व मय , प्रकृति करी एक ठाम ।
तासो प्रधटो कमल यह , तासु पुत्र विधि नाम ।
यह सनि विधि वोले करि क्रोधा । को तुम हौ मम करौ प्रबोधा ।।
कहौ वेगि तुम किहि के करता । अस कहि मनि मै कोपा बरता ।।
माया मोहित प्रभु के संगा । करयो युद्ध दारुण रण रंगा ।।
तौ न विवाद समन सामरथा । दोनौ ह्रदय प्रबोधन अरथा ।।
सहस प्रघट तहाँ ज्वाला माला । काल अनल उष्मा विकराला ।।
सो छय वृद्धि से रहित अनंता । वरजित आदि मध्य अरु अन्ता ।।
अन उपमा अन द्रष्टि अनूपा । सकल विश्व सम्भव अनुरूपा ।।
लखि सो ज्वाला सहस प्रमाना । भये विमोहित हरि भगवाना ।।
दोहा - 11 क
विष्णु कहा किहि अर्थ लगि , हम तुम करै विषाद ।
इहँ तिसरे को आगमन , आतुर तजौ विवाद ।।
सोरठा - 11 ख
कहां से यह संजात , लिंग अगिनि संभव महा ।
करब परीछा तात , वायु वेग धरि हंस तन ।। हंस रूप धरि उपरि उड़ाई । लिंग शिखा विधि खोजहु जाई ।।
धरि हम रूप श्वेत बाराहा । अधर प्रवेसे जल अवगाहा ।।
जब असि बचन कहे जगदीशा । हंस रूप हम धरेउ मुनीशा ।।
तब ते हंस राज मुहि भाषा । हंस विराट नाम गुनि राखा ।।
हस- हस कहि जदि अस ध्यावै । होय सो हंस परम पद पावै ।।
श्वेत पवन सम पंकज पच्झा । पीत चरण मुख सुन्दर दक्झा ।।
वेग पवन मन ऊपर धाये । श्वेत बाराह विष्णु बनि आये ।।
मेरु श्रंग तीझ्ण नख दंता । प्रलय भानु सम तेज अनंता ।।
सोरठा - 12 क
सत योजन आकार , दस योजन विस्तार तन ।
घोर घुरघुरा कार । अंग विचित्र सुपाद लघु ।।
दोहा - 12 ख
धरि के विष्णु वाराहतन , अध गत नीर निवाह ।
शिव दयाल तव से विदित , कल्प श्वेत वाराह ।।
।। इति श्री शिवचरित्र महात्मे द्धितीयोध्याय ।।
।।। स्थाणोर्चरित्रम ।।। ।। अथ श्री शिवचरित्र महात्मे त्रतीयोध्याय ।। ।।। शिवदयाल कृत शिव पुराण परिपाटी ।।। शौनक सुनौ जु भा तिहि अंदर । विष्णु भ्रमें बहु काल निरंतर ।।
मिली न लिंग मूल लघु सूकर । वर्ष सहस लगि आये ऊपर ।।
लिंग अंत जनिवो करि इच्छा । मिलो न मूल अनेक परीछा ।।
सर्व जतन करि मूल न पाये । तब लगि तंह विरंचि फिरि आये ।।
उभय थकित भये मीलित लोचन । लहेउ न कहुं विसराम विरोचन ।।
श्रमित शरीर स्वमन संविगना । शिव माया मोहित चित भगना ।।
करन लगे बहु विनय प्रणामा । सुमिरै कहा कि यह पर रामा ।।
नाम रहित अन दर्शित रूपा । नित विकसित आकार अनूपा ।।
सोरठा - 1 क
रूप लिंग सम जात , सदा अलिंग अरूप शिव ।
स्वस्थ चित्त करि ज्ञात , ध्यान पंथ गोचर ह्रदय ।।
दोहा - 1 ख
बोले शिवै प्रणाम करि , विधि अरु विष्णु सुजान ।
जोशि शोशि विनवौ तुमहि , रूप न जानत ध्यान ।।
अस्तुति करत वर्ष शत वीते । तव आनन्द शव्द भयो तिहि ते ।।
विदित ब्रह्म स्वर वर्ण ओंकारा । पूरि रहो भरि सकल अधारा ।।
महा शब्द सुनि विष्णु विधाता । करै चिंतमत कुत यह जाता ।।
कहै जहां ते शब्द निरामा । सो शिव तुमको नमो प्रणामा ।।
प्रगट लिंग के दक्झिण भागा । देखि सनातन रूप विराजा ।।
आदि अ कार वरण सत संता । उत्तर वरण उ कार अनंता ।।
मध्य म कार वरण सो अंता । नारद येहि क्रम त्रिगुण रमंता ।।
प्रथम अ कार उ कार म कारा । येहि विधि से अक्झर अनुसारा ।।
सोरठा 2क
सूर्य मंडलाकार , अक्झर प्रथम अ कार शत ।
पावक मंडल सार , उत्तर अंक उ कार अज ।।
दोहा - 2 ख
शशि मंडल आकार सम , तम गुण मध्य म कार ।
शिव धाल दिखावै मध्य मा , अंत होत अनुसार ।।
तिहि पर दर्शित फटिक प्रकाशा । तुरिय अतीत अमृत अविराशा ।।
निष्कल निरूपद्रव निरद्वन्दा । केवल तत्व सुसत्य अनन्दा ।
वर्जित अंतर वहिर अनन्ता । रहित सु आदि मध्य अरु अन्ता ।।
सोपि सदा अनन्द कर कारण । परे ब्रह्म पारायण तारण ।।
मधि ओंकार मकार प्रधाना । सोपि नील लोहित भगवाना ।।
विदित उ कार विस्व करतारा । जग पालक सुप्रसिद्धि अ कारा ।।
उदित म कार अनुग्रह कारक । नित्य अभव सो भव हम धारक ।
सुनि विरंचि हरि विसमै मानी । येहि अंतर प्रधटो गुण खानी ।।
सोरठा - 3 क
सो शिव सोभित रूप , सुन्दर गौर कपूर सम ।
अदभुत अंग अनूप , पंच वक्र दशभुज सुभग ।।
दोहा - 3 ख
भूषण अंग अनेक विधि , कांति अनेक प्रकार ।।
क्रंदु इंदु अरु फटिक सम , भासत अंग अपार ।।
महा पराक्रम परम उदारा । महा पुरुष लच्छन अनुसारा ।।
देखि परम सुन्दर शिव रूपा । निज इच्छा निरमान अनूपा ।।
विधि हरि तिन्है जानि शिव धामा । श्रुति संमत करि विनय प्रणामा ।।
विधि हरि मंत्रन शिव संतोषे । सद तिहि लिंग निरंजन पोषे ।।
दिव्य सबद मय रूप दिखाये । वेद वरण मैं तन दरसाये ।।
मूर्ध अकार सिरसि आकारा । अक्झर अंग वदन स्वर सारा ।।
दहिने नैन इ कार विराजत । वाम विलोचन ई छवि राजत ।।
लधु उ कार स्वर दहिने काना । श्रवन वाम ऊ कार प्रधाना ।।
दोहा - 4
त्रृ दहिने कपोल पर , ऋ वाये पर भास ।
लृ त्वृ नासा पुटन पर , दुय दिशि क्रम संकास ।।
ऊपर ओठ विदित ए कारा । विम्ब अधर एै कार अधारा ।।
ओ औ दंत पंक्ति क्रम सो है । अं अः उभय तालुनी सो है ।।
कादिक पंच कर कमल न दायें । चादिषु पंच कमल कर वायें ।।
अंक दहिन पद टादिषु पांचा । तादिषु पंच वाम पद राचा ।।
उदर उदित सो पदम प कारा । दहिनो पाश्र्व फ कार अधारा ।।
पारस वाम ब कार विराजत । कांधेन पर भ कार सो भ्राजत ।।
ह्रिदय म कार मनोहर सोहै । महादेव योगेश्वर जो हैं ।।
य कारादि लगि अत श कारा । वरण सात धातुन कर सारा ।।
दोहा - 5
रूप ह कार सुनाभि पर , मुख पर अंक छ कार ।
वरण शव्द मय रूप गुण , शिव के अंग अधार ।।
शिवा सहित भगवंत महेशा । प्रधटे हेतु सकल उपदेशा ।।
तिनहि देख विधि विष्णु विदामा । करेसि प्रार्थना विनय प्रणामा ।।
सद प्रशन्न बोले शिव शंकर । हम प्रसीद मांगौ वांछित वर ।।
सो सुनि मुनि हरि हमै समेता । कहैं कि यदि प्रसीद शिव चेता ।।
हमहि विधातै वदहु विचारी । किहि किहि कारज को अधिकारी ।।
कारण कारज करि उपदेशा । यदि इछसि तद करौ महेशा ।।
सो सुनि शिव अनुशासन सारा । भये विरचि जगत करतारा ।।
होउ भुवन पालक भगवाना । विश्व भरण दुख हरण प्रधाना ।।
दोहा - 6
विधि भृकुटी से अंस मम , होय शम्भु अवतार ।
विदित रुद्र शंकर हरे , कारक सृष्टि संघार ।।
यह जो देवी प्रकृति भवानी । नारायण आशय गुण खानी ।।
तासु अंश प्रधटै ब्रह्मानी । होय विरंचि शक्ति सो जानी ।।
आन शक्ति जो प्रकृति से होई । लछ्मी नाम विष्णु प्रिय सोई ।।
बहुर शक्ति यदि प्रधटै काली । शंकर आशय विदित कपाली ।।
जोति रूप गुण कारज अरथा । होय त्रिशक्ति परम सामरथा ।।
तीन देव त्रय शक्ति समेता । करब सृष्टि कारज पर हेता ।।
हरि वहु समरथ वहु अधिकारा । खल वध जग हित बहु अवतारा ।।
तिहि विधि काली सब समरथा । खल शालन जग पालन अरथा ।।
सोरठा - 7 क
विचरन विधि अधिकार , विस्व प्राण वरदान शुभ ।।
विष्णु अखिल आधार , सकल भुवन पालन करण ।।
दोहा - 7ख
शिव कर विधा मंत्र वर , सृष्टि संघारन काल ।
ताल निरत ढक पंच नव , सूत्र व्याकरण जाल ।।
सुनि कह विष्णु सुनौ शिवधरमा । करौ तुम्हार कहे सब करमा ।।
पुनि कछु बोध ह्रदय मम आवा । करण योग शिव तुमहि सुभावा ।।
सुनि सो गिरा कहो शिव शंकर । दयसु तब हित काम अछै वर ।।
तव हम अरु हरि बोले वानी । प्रनत सदा शिव देव स्व जानी ।।
कहव स्व पूजन सेवन ध्याना । जो करि समरथ होय सुजाना ।।
सुनि शिव मंत्र दये निज रूपा । त्रिगुण आतमा विदित अनूपा ।।
मंत्र प्रथम ओंकार सुनाए । परम तत्व विज्ञान बताये ।।
बीज प्रणव स्वर ब्रह्म कहावै । लहै ज्ञान गुण जपहि कि गावै ।।
दोहा - 8
सो हरि परम तत्व गुण , ज्ञान रूप मय देखि ।
पूछेसि भेद उपाय पुनि , मंत्र तत्व तिहि लेखि ।।
पुनि ऊपर लखि मंत्र प्रधाना । करेसि प्रनाम विष्णु भगवाना ।।
वेद शिरोमणि शिव अनुसारा । सहित कला पंचक ओंकारा ।।
बहुरि तत्वमति मंत्र उचारा । ईश्वर जीव ब्रह्म निरधारा ।।
सुद्ध फटिक संकाश अनूपा । मेधा कार परम शुभ रूपा ।।
महावाक्य शिव ययुर प्रधाना । वेद वदन वर वानि त्रिमाना ।।
मंत्र सकल कामारथ साधक । विविघ यती योगिन आराधक ।।
पुनि गायत्री मंत्र उचारा । तासु महा लछण गुण सारा ।।
सोभित चौबिस बरण विधायक । सेवत चारि वर्ग फल दायक ।।
सोरठा - 9
पुनि पंचाक्छर देय , मंत्र स्व मृत्युंजय कहेसि ।
चिंता मणि दरसाय , वहुरि दछिणा मूर्ति दय ।।
छंद -
उरध मुख ओंकार सयुक्त त्रिपद गायत्री कहा ।।
पूर्व मुख दय पंच अछर उत्तर मृत्युंजय महा ।।
शुभग पच्छिम वदन शिव के मंत्र चिन्तामणि बहा ।।
शिवधाल शिव दक्छिन मूरति मंत्र दक्छिन मुख अहा ।।
दोहा- 10
पंच मंत्र दय पंच मुख , शिव गत अंतर ध्यान ।
वाण मंत्र विधि हरि जपे , भये समर्थ सुजान ।।
।।इति श्री शिव चरित महात्मे तृतीयोअध्याय ।।
।।। स्थाणोर्चरित्रम ।।।
।।। शिवदयाल कृत शिव पुराण परिपाटी ।।।
।। अथ श्री स्थाणोर्चरितृम चतुर्थो अध्याय ।।
पांच मंत्र हरि जपे निरंतर । लिंग ते पुनि प्रधटे शिव शंकर ।।
भये प्रसीद अगम दरसाये । स्वास रूप शिव निगम सुनाये ।।
मंत्र जंत्र बहु तंत्र विवेका । कर्म भेद लगि कहे अनेका ।।
मंत्र तंत्र कारजन विभेदा । कहे विपुल साधकन अषेदा ।।
अगम सकल विद्यानिधि शंकर । चारि पांच षट त्रषट त्रयंतर ।।
सब विधन ईशान विशेषा । नारद सनातनी श्रुति रेषा ।।
शिव सब विद्या हरि सन भाषी । प्रभु सव हमै दई शिव साषी ।।
शिव श्वासन मैं निगम वषाने । ज्ञान रहस्य अखिल हरिजाने ।।
दोहा - 1
सो सब हरि हमकौ दये , निगमागम अध्याय ।
पुनि पूंछे प्रभु शंभु सन , शिव संतोष उपाय ।
शिव कस तोषै हम किमि धेवैं । कहा ध्यान धरि किमि शिव सेवैं ।।
शिव सो आगम जतन बतावौ । दया सिंधु करि कृपा सुनावौ ।।
सुलभ कौन विधि शिव संयोगा । पाप हरण शिव दायक भोगा ।।
जतन सहित शिव कहिवे लायक । सुनत पाप हारक फल दायक ।।
सुनि प्रसन्न मन कह यह बाता । लिंग रूप पूजै जो ताता ।
पूजत लिंग दुसह दुख जोई । पावै मम धाम न संसंय कोई ।।
विधि करि मम भक्ति अनंतर । सृष्टि काज सब करहि निरंतर ।।
परम भक्ति हरि करहु हमारी । तुम विशेष कर हुइ संसारी ।।
सब पूजा विधि दै अब शेषा । शिव पूजे फल देहुं विशेषा ।।
तुरीआतीत रूप यह जानी । निष्कल ब्रह्म रूप पहिचानी ।।
ऋग्य यस्याम रूप त्रे तर्ता । पुनि कर्ता पालन संधर्ता ।।
शंकर अगुण त्रिगुण लवलीना । हुइ संतोष वरद वर दीना ।।
सोरठा-2
शम्भु वचन सुनि कान , हरि लागे अस्तुति करन ।
जै जै शम्भु सुजान , शिव शंकर संकट हरण ।।
एकादश तब प्रणव प्रणमामी । आदि अकार अंक सु नमामी ।।
अंत शरीर रजो गुण रूपं । विद्या रूप मकार मनूपं ।।
ब्रह्मदादि नारद मुनि जोगी । जपत निरंतर शिव शिव योगी ।।
गंगाधर सर्पादि विभूषणम् । शरीर भस्म जटाधरम् ।।
भस्म अंग गले मुंण्डन माला । गगन व्यापिने शिव शशि भाला ।।
शिव शंकर पशुपति जगदीशा । तेजस तामस भर्ता ईशा ।।
लिंगेश्वर सर्वज्ञ निरंतर । विश्व गर्भ योगेश्वर शंकर ।।
विधिन व्रह्म वर्चसा कारी । चिता भूमि बासी अविकारी ।।
आत्म रूप विधि हरि हर स्वामी । शिव सर्वज्ञ तुमहि प्रणमामी ।।
नौमि शम्भु शंकर अभिरामम् । विधि हरि अस्तुति करि विररामम् ।।
यह अस्तुति वर दायक चीता । नासय पाप पुन्य बरधीता ।।
दोहा-3
यह अस्तुति शिव की पठै , सुनै सुनावै कोय । ब्रह्म लोक सो जायहै , पावै जो मन होय ।। बढे शुकुल शशि सम कल्याना । भयउ विष्णु ताप अवसाना ।।
अब यह कहेउ सूत संवादा । सुनत सवन के मिटइ विषादा ।।
तव शिव कहेउ सुनौ विधाता । उभय होउ मम गिरा अधाता ।।
मम इच्छा तुम सुनहु खरारी । प्रकृति याति दोनौ बल भारी ।।
त्रिधा मिलन सोई रूप अनूपा । निर्गुण ब्रह्म सगुण अनुरूपा ।।
भगवान पारसु मैं धाता । विष्णु वाय पारसु सुर त्राता ।।
हरि मम उर अन्तर शंकर । मांगउ पुनि निज निज इच्छा वर ।।
यह कहि करि पद धरि शीसा । होउ सकल समरथ जगदीशा ।।
विष्णु मनहि मन वहु आनंदेउ । पुनि पुनि शिव शंकर पद वन्देउ ।।
बोले हरि यदि हम पर नेहू । अविरल भक्ति अपनि अव देहू ।।
तव शिव प्रसन्न मुख वचन उचारी । सुनहु सकल ऋषिगण भयहारी ।।
जो पूजै मम लिंग अपारा । सो पावै इच्छा वर धारा ।।
हरि निन्दक मम सेवक कहिए । रौरव नरक कल्प सत परिये ।।
शिव निन्दक हरि भक्त कहावै । कुंभी पाक नर्क सम पावै ।।
मेरे ह्रदय विष्णु करुणाकर । विष्णु हिरदय शिव रहै निरंतर ।।
सेवत मोहि विष्णु को पावै । विष्णु भक्त मम लोक सिधावै ।।
शिव औ विष्णु की कछु कहिमा नाही । उभय बीच कछु अन्तर नाही ।
सोम मकर कंकण अति प्रिया । तिहि कारण विध यह करणीया ।।
सर्व भूत मय मम सम देखी । पालहु सकल पितामह लेखी ।।
दोहा-4
यही प्रकृति के अंस ते , प्रधटै लछ्मी आय ।
ब्रह्मानी तिहि अंस ते , तिहि ते काली माय ।।
होय त्रिशक्ति प्रकृति गति एका । कारज अरथ सु होय अनेका ।।
केशव कमला संग उपासन । विधि बृह्मानी हर काली तन ।।
वरण चारि अरु आश्रम चारी । सकल जीव सब भांति उघारी ।।
विविध काम सब जीव सचेता । रचव ज्ञान विज्ञान के हेता ।।
मुक्ति छेत्र हरि सदा लोक मम् । तब दर्शन फल मो दर्शन सम् ।।
मोर ह्रदय हरि हम हरि अंगा । अस कहि अंतर हित शिव लिंगा ।।
तब से विदित लिंग शिव पूजा । लिंग देव महदेव न दूजा ।।
लिंग समीप करैं शुभ काजा । तिहि फल संख्या अमित विराजा ।।
दोहा-5
शिव समीप षट मास यह , पढै लिंग सम्वाद ।
शिवधाल लहै सुख अंत गति , नासै दोष विषाद ।।
।।।। इति श्री शिव चरित महात्मे चतुर्थोअध्याय ।।।।
।।। स्थाणोर्चरित्रम ।।।
।।। शिवदयाल कृत शिव पुराण परिपाटी ।।।
।।।अथ श्री स्थाणोर्चरितृम पंचमोअध्याय ।।। पुनि बोले शौनक गुण माना । महा भाग तुम सूत सुजाना ।।
लिंग की उतपति कथा सुनाई । छुटो मर्म उर सुख अधिकाई ।।
जासु प्रभाव सकल दुख नासा । संशय विगत विचार प्रकाशा ।।
शम्भु महातम सृष्टि प्रकारा । कहौ विशेष अखिल विस्तारा ।।
तब कह सूत ह्रदय हरषाई । मुनि गण हमकौ देत बड़ाई ।।
जो द्वयपायन मुख सुनि पाई । सो संछेप कहब समुझाई ।।
जव अन्तर हित भये महेशा । रहे तहां विधि हरि भुवनेशा ।।
हंस वराह रूप तिन त्यागे । शिव अनुशासन मन अनुरागे ।।
दोहा-1
शौनकादि कह सूत पुनि , संशय हरौ अथाह ।
विधि हरि किहि कारन भये , रूप हंस वाराह ।।
पुनि कह सूत सुनौ चतुराई । हंस गगन गति वेदि उड़ाई ।।
तासु विवेक एक गुण घोरा । करै विभाग नीर औ छीरा ।।
यथा ग्यान विज्ञान विवेका । हंस विशद गुण सुन्दर एका ।।
सृष्टि काज हित चहियत ज्ञाना । तिहि ते विधि भये हंस प्रधाना ।।
शौनक सुनौ वराह को कारण । कल्प हेत कल्पित जग तारण ।।
तिहि विशेष गुण नीर निवाहा । अधर गमन गति वेग वाराहा ।।
अब प्रति वर्ष विशेष विरामा । श्वेत वराह कल्प अस नामा ।।
निज इच्छा हरि काज विचारी । तब तस रूप धरै हितकारी ।।
दोहा-2
निर्गुन ब्रह्म अनंत शिव , सगुण रूप चित संत ।
तिहि वर दै हरि सन कहा , सुनौ विष्णु भगवंत ।।
त्रिगुण मॉहि उत्तम गुण धारी । गगन मध्य मुखिया अधिकारी ।।
विदित सतो गुण आदिक येते । तुम लगि सवै विमोहित तेते ।।
तिहि ते तुम लगाय सब लोका । हुयिहौ पूजन मानन योगा ।।
विधि विरचित जग जेतिक लोका । यदि कवहु पावै दुख शोका ।।
तव तुम सो दुख नासन काजा । धरौ विविध अवतार विराजा ।।
होय सुयस कीरति विस्तारा । तारण हेत सकल संसारा ।।
हम गुण रूप रुद्र तन धारी । करि अनेक जपु जग हितकारी ।।
करौ मोर तुम सेवन ध्याना । तुमकौ धेवै हम गुण माना ।।
दोहा-3
हम तुम एक सरूप सम , अणु भर अंतर नांहि ।
वस्तु एक गुण रूप धरि , चरित करन जग मांहि ।।
यदि मम भक्त करै तब निन्दा । तासु पुन्य दहि लहै जम फंदा।।
तुम सन मानहि वैर कि दोषा । हम तिहि डारहि नर्क सरोषा ।।
सेवै मनुज उभै सम देखी । भक्ति मुक्ति हम दई विशेषी ।।
येहि विधि नारद करि उपदेशा । कर परसा हरि माथ महेशा ।।
पुनि मोरे सिर शिव धरि हांथा । कहसि कि सुनौ विष्णु जगनाथा ।।
बहुरि होब उत्तम गुणधारी । सकल काम साधक अधिकारी ।।
मम आज्ञा लगि सब जग पाही । प्रविसौ प्राण रूप सब माही ।।
जो तुम आसय सो मम आसय । अन्तर जानय नरक निवासय ।।
दोहा-4
तब लगि हरि विधि रूप की , रच्छा करौ निदान ।
जब लग वीतै वर्ष शत , विधि की आयु प्रमान ।।
सहस चर्तुयुग विधि दिन एका । इतनी विधि की निशा विशेषा ।।
तब लग पुरुषोत्तम गुणधारी । सृष्टि काज तुम करहु विचारी ।।
सुनत गिरा अस विष्णु उदारा । शिव आसन करि अंगीकारा ।।
पुनि हरि कहा कि सुनौ महेशा । हम सब करिहै तब आदेशा ।।
शिव सब भांति सकल सामर्था । मोरि सदा सुधि राखन अर्था ।।
हम तुम कह धेवैं भरि पूरी । पल भर ह्रदय से होव न दूरी ।।
छण भर हम ध्यावैं तुम आवौ । कबहुक मन से दूर न जावौ ।।
यदि मम भक्त करै शिव निंदा । नरक निवास परै जम फंदा ।।
दोहा-5
जो शिव सेवक नित्य सो , मम प्रिय भक्तन मांहि ।
यह विधि जदि जानत रहैं , मुक्ति न दुरलभ ताहि ।।
शिवहि लागि महिमा अति मोरी । वरधै अपर अनुग्रह तोरी ।।
कबहू अगुन होय मम लागी । छमहु सदा शिव दोषन त्यागी ।।
सुन शिव हरि के वचन विचारी । छमहुं सदा हरि चूक तुम्हारी ।।
अस कहि अन्तर ध्यान निरंतर । सव मंगल कारक शिव शंकर ।।
शिव गमने पर विधि नारायण । बचन ते समाधान पारायण ।।
शिव हरि कौ विरेचि सिर नावा । ज्ञान पाय परमानन्द पावा ।।
मुनि हम सृष्टि करन मन आना । तुरत भये हरि अन्तर ध्याना ।।
हरि हर कौ विधि विनै प्रणामा । पूरव दिशि पदमासन धामा ।।
दोहा-6
विधि गायत्री प्रणव पढ़ि , ईश्वर ध्यान लगाय ।
ब्रह्म विशद जल अन्जली , आतुर दई चढ़ाय ।।
प्रधटो सद विराट ब्रह्माण्डा । चोविस तत्व रचित जढ़ अण्डा ।।
लखि संशय बस भये विधाता । गगन गिरा भई पौरुष वाता ।।
सोलह एक बीस मिल अंका । सेवन करौ छुटय भ्रम शंका ।।
सुनि विधि तपे जपे नारायण । बारह वर्ष विष्णु पारायण ।।
तिहि अन्तर प्रधटे भगवाना । कहेसि कि सुनौ विरंचि सुजाना ।।
हम प्रसीद मांगहु मनमाना । मोहि न कछु अदेय वरदाना ।।
हर्षि विरंचि कहेसि तिहि काला । सुनहु विष्णु भगवंत कृपाला ।।
तुमहि योग यह दया निधाना । शिव शासन लगि प्राण समाना ।।
दोहा-7
देखि परत जढ़ अण्ड जह , निर्मित अंश महेश ।
प्राण रूप हुय हरि तुम , तिहि मह करब प्रवेश ।।
विष्णु कहा अज सुरन समेता । अंसन प्रविसहु अण्ड सचेता ।।
अस कहि अन्तर हित भगवाना । सब सुर प्रविसे अण्ड प्रधाना ।।
ह्रदय विरंचि सारदा रसना । वरुण तालु प्रविसे जम दसना ।।
उदर मन्द नभि कमल कृशानू । इन्द्र वाहु लोचन कुज भानू ।।
मित्रा बरुण ब्रषण हर लिंगा । जिहि से प्रधटे सब जग अंगा ।।
पमन स्वास भृगु मदन प्रवेशा । सात धातु ऋषि जलधर केशा ।।
नाशिक पुटन अस्वनी कुमारा । बुध बुधि मैं गुरु उरसि अधारा ।।
मित्र पायु वायुर नभ काना । वच्छसि विस्वे त्वष्ट जंघाना ।।
छंद-
सिंधु कर सुत सोम दुजवर अत्रि अंगज चन्द्रमा ।।
जासु अंस स्वचन्द्र भगवन नित अनादि अनंतमा ।।
अदित के सुत विदित आदित सौपि सूरज अंसमा ।।
वैराट बेशक अभव संम्भव सवै देव अनादि मा ।।
दोहा-8क
इन्द्रिन विशद अनेक सुर प्रविसे रुद्र ललाट ।
मन हुय प्रविसो चन्द्र सो तदपि न उठो विराट ।।
सोरठा-8ख
प्राण प्रभाव स्वराट पंच भूत परमात्मा ।।
आतुर उठो विराट शिवधाल प्रवेसे विष्णु के ।।
दोहा-8ग
सहस्त्र शीरषा पुरुषा सहसत्राक्क्षा सहस्त्रपात ।
सभूमिं सर्वता स्पष्टत व्यापित सब स्वरि तात ।।
।।। इति श्री शिव चरित महात्मे पंचमोअध्याय ।।।
।।। स्थाणोर्चरित्रम ।।।
।।।अथ श्री स्थाणोर्चरितृम षष्टमोअध्याय ।।।
हरषि सूत वोले मृदुवानी । सुनु शौनक शिव कथा पुरानी ।।
विधि विनती सुनि शिव आदेसे । प्राण रूप हरि अण्ड प्रवेसे ।।
चौविस सहित सचेतन काजा । सब तिहि नाम पुरुष वै राजा ।।
चरण आदि लगि अंत ललाटा । बिरचे चौदह भुवन विराटा ।।
तल पताल पद उपरि रसातल । गुल्फ महातल जानु तलातल ।।
परिअन वितल सुतल दुय जंघा । कटि तट अतल विश्व तन संघा ।।
धरणि संधि वंधन भभ नाभी । ह्रदि सरलोक महर ग्रीवामी ।।
मुख मै जन ललाट तप लोका । महारंघ्र शिर सत्य विशोका ।।
दोहा-1
सो विरंचि के धाम लगि , चौदह भुवन प्रकाश ।
अपर लोक जिहि योग जो , सो तह करै निवास ।।
भुजबल इन्द्र भाल ते शंकर । भृकुटी करकस काल भयंकर ।।
नासिक पुटन अस्वनी कुमारा । जमु जंबुकर दंत गण तारा ।।
श्रवण ते गण शारदा रसना । आनन अनल तालु ते बरुणा ।।
युगल नैन सो सूरज सोमा । अस्थि पहाड़ विटप गण रोमा ।।
अधर लोभ परि ओठ सुलाजा । नसा जाल नद नदी विराजा ।।
धरम उदर से पीठि अधरमा । माया हसन मोहि जग भरमा ।।
मित्रा वरुण ब्रषन विधि लिंगा । वीरज धर उपजावन अंगा ।।
कुच्छि समुद्र नाभि लगि मंदा । जासु तनय सो मदन अनंदा ।।
दोहा-2
तुष्टा प्रधटो गुह्य थल शुक्र शुकृत अनुसार ।
बुधि से बुध गुरु ह्रदय मगर नैन आधार ।।
स्वास पमन मेघा बलि केशा । छंद धातु मुनि मन राकेशा ।।
पलकै पाख विपल दिन राती । स्वैदिज तासु अखिल पशु जाती ।।
अस वैराट रूप अविराशा । जो जिहि लायक सो तिहि वाशा ।।
तिह छण ह्रदय विरंचि विचारा । अवहि न वरधै सृष्टि अपारा ।।
विधि तव चारि पुत्र उपजाये । मानस उरध रेत मन भाये ।।
सनक सनन्दन सनत कुमारा । सहित सनातन चारि उदारा ।।
महा भागवत पारम हंसा । निपुन ज्ञान विज्ञान वतंसा ।।
विधि कह तिनहि प्रजा निर्माबन । कह तिन हमहि ज्ञान मन भावन ।।
दोहा-3
लखि विराग युत चारि सुत , मन विरंचि कर क्रोध ।
साप देन उमगे बहुरि , रिसि रोकेसि करि वोध ।।
शाप देन कह मति अनुसारी । पुनि रोकेसि रिसि तनय विचारी ।।
रुकै न समरथ रोष भयंकर । विधि भृकुटी से प्रघटे शंकर ।।
रोदत रुद्र रजत निर्माना । रुद्र सुनाम विरंचि बखाना ।।
पूछेसि रुद्र तुम्है दुख काहा । कहव कि सो हम करै निबाहा ।।
बोले बिहसि विरंचि निरंतर । साधु वचन भाये तुम शंकर ।।
अब तुम होव सृष्टि संघारक । अनव्यापिनी सृष्टि निरधारक ।।
विरचौ प्रजा अनेक विधाना । सुनि अज गिरा शम्भु भगवाना ।।
बोले वचन लोक दुख हारक । करै तुम्हार उचित निरधारक ।।
दोहा-4
विरचै सृष्टि सनसनाती , तब आयुस अनुसार ।
येहि विधि अंगीकार करि , प्रजा हेत मन धार ।।
सृष्टि करन शंकर मन लाये । निज गुण रूप प्रजा निरमाये ।।
विरचे बहुत भूत गण नाना । प्रेत पिशाच उरग गज छाना ।।
भक्झण करण सकल सो धाये । विश्व सहित विधि हर पर आये ।।
हंसि बृह्मा तब सवहि निवारी । कहेसि रुद्र तुम जग भय हारी ।।
मन थिरता करि धीरज लावौ । तामस प्रजा न हर निरमावौ ।।
करव जाय तप प्रजा विराशा । हर लै प्रजा गये कैलाशा ।।
शंकर करन कठिन तप लागे । काली सहित ह्रदय अनुरागे ।।
विधि तव सात पुत्र उपजाये । गृह मेधी रिषि सकल कहाये ।।
सोरठा-5क
विरचे अंग विभाग , आठ अपर अरु सात जे ।
तीन सहित वैराग , पन्द्रह मैं मुनि वर दसौ ।।
दोहा-5ख
नारद मित्रा वरुण भृगु , अंगिर पुलह पुलस्ति ।
करदम अत्रि मरीच क्रतु , दझ्झ वशिष्ट अगस्ति ।।
विधि तव तीन शक्ति उपजाई । करन हेत प्रय नारि सुहाई ।।
सावित्री सरसुति गायत्री । परम सुन्दरी अति पावित्री ।।
नारि भाव विधि तनहि निहारे । सबै रिषिन जे वचन उचारे ।।
तात सुता संगम अनुरागे । अस केहु करी न करिहै आगे ।।
तुम ईश्वर हुय करत अधर्मा । तद जग को नहि करहि कुकरमा ।।
विधि मुख फेरो सो करि सरमा । तब पीठी से प्रघट अधरमा ।।
विधि सो अंग तजो छण माहीं । अपर देह धर तीनहु व्याहीं ।।
एक शक्ति अंशन त्रै वामा । तव से पतनी कर त्रिय नामा ।।
दोहा-6
विधि के वांये भौंह लगि , पघटी ग्यारह वाम ।
रुदऩ सब संग्रह करी , प्रथम सु काली नाम ।।
रुद्र अंग सब नील विलोहित । काली तन श्यामल जग मोहित ।।
प्रथम रुद्र भव शंकर नामा । सो शिव गौर वरण अभिरामा ।।
र ल उ ड ब व श ष स वरण बाची । सवद भेद अक्झर गुण राची ।।
काली कारी तन घन शौरी । तासु अंश प्रघटी सो गौरी ।।
उभय अंश मिलि अरुण सुहाई । सती दझ् गृह जनमी जाई ।।
पुनि विरचे विधि सुर सब जाती । देव पितर मुनि जन वहु भांती ।।
विधि सुत सैव सकल वैरागी । चारि उरध रेता त्रय त्यागी ।।
आन प्रजापति गृही सुहावन । तिनको वंश सुनौ अति पावन ।।
दोहा-7
नारद मन उतसंग से , कर्दम छाया पाय ।
दझ भये अंगुष्ठ से , यहि क्रम दस उपजाय ।।
विधि सुत प्रघट उदर से धरमा । विरचन हेत सकल सत करमा ।।
वहुरि विरंचि विचार सुभावै । अब मैथुनी सृष्टि निरमावै ।।
अस विचार निज देह प्रभावा । सुत स्वायंभुव मनु उपजावा ।।
तासु अंग अज करेसि द्वय भागा । दाहिन पुरुष वाम त्रिय लागा ।।
तिन कर मैथुन भाव रमन्या । उपजाये दुय सुत त्रै कन्या ।।
प्रथम सुपुत्र प्रयव्रत नामा । सुतन हेत जिन द्वीप निरामा ।।
सात दिवस जिन चक्र चलाये । रथ पारिखा समुद्र निरमाये ।।
सुत उत्थान पाद लधु तासू । घ्रुव हरि भक्त भये सुत तासू ।।
दोहा-8
स्वायंभुव की त्रै सुता , सकल सुलझन धाम ।
देवहुती आकूति पुनि , अपर प्रसूती नाम ।।
देव हुती स्वायंभुव कन्या । पर्म सुन्दरी लोक लवन्या ।।
उभय पछ विधि आयुस माही । दवहुती कर्दमहि विवाही ।।
तिनकै सात सुता सुत एका । कपिल नाम सिद्धेस विवेका ।।
सात सुता विधि सुतन बिबाही । अनसुयआ लगि सब सुख माही ।।
मित्र तनय मैत्रेय सुहाये । जिन विदुरै भागवत सुनाये ।।
मित्रा वरुण सुविधि मख धामा । लखि उरबसी भये वस कामा ।।
खसो मदन डारेसि घट मांही । युगल पुत्र प्रघटे तिहि पांही ।। पुनि अपसरै दये यह शापा । तुम नर लोक वसौ वस तापा ।।
स्थाणोर्चरितृम एक दोहा-9
कुंभज मित्रा वरुण के तनय अगस्त वषिष्ठ ।
जे प्रथमै मिमि साप वस नास भये लग इष्ट ।।
अत्रि रिषय अनुसुअया संगा । दंपति मिलि तप करै अभंगा ।।
अस्तुति करैं धरणि धर शीशा । दरशे देव जो प्रभु जगदीशा ।।
सती धर्म लगि मुनि तप सारा । विधि हरि हर आये इक वारा ।।
कहा कि मुनि वर मांग प्रवीनो । कहसि अत्रि सुत होव सु तीनो ।।
तथाअस्तु कहि तव त्रय देवा । अन्तर हित गमने अनभेवा ।।
मुनि मन भाव गर्भ लगि माता । समय पाय त्रे देव सुजाता ।।
विधि कर अंश चन्द्र प्रकाशा । हरि दत्तात्रय हर दुर्वासा ।।
उभय सुज्ञान कला अवतंशा । दच्झ शाप लगि शशि निरवंशा ।।
दोहा-10
विस्वश्रवा पुलस्त सुत जिनके प्रिय दुय वाम ।
देव सुता प्रिय इडं विडा अपर कैकसो नाम ।।
नाम कुवेर इडंविडा जाये । जच्झ राज सो धनद कहाये ।।
मालवन्त दानव की कन्या । नाम केकसी पर्म लवन्या ।।
विस्वश्रवा की सो प्रिय नारी । तिहिके तीन पुत्र बलधारी ।।
रावण कुम्भकरण अभिमानी । आन विभीषण हरि जन ज्ञानी ।।
अगिर तनय बृहसपति आदी । देवन गुरु परमारथ वादी ।।
भृगु के सुत शुक्रादि सुजाना । असुर पुरोहित वेद निधाना ।।
सवा लच्झ बिधा अधिकाबी । संजीवनी आसुरी मायाबी ।।
आन सुनौ मुनि अधरम वंशा । पुत्र मदन मत्सर मद हिंसा ।।
दोहा-11
स्वायुंभुव कर सुता अकूती । परम सुंदरी लोक विभूती ।
सो विरंचि सुत रुचि कै नारी । पुत्र जग्य अवतार मुरारी ।।
करदम सुता कला गुण धामा । सो विधि सुत मरीच प्रिय वामा ।।
तासु तनय कश्यप गुण धारी । तिन कर वंश अखिल संसारी ।।
दच्झ प्रचेत प्रसूति सुपाई । सुत दुख छाढ़ि सुता उपजाई ।।
तिन मैं ते दश धर्म बिबाही । कश्यप तिय तेरह तिन मांही ।।
दुइ भूतप दुइ अंगिर नारी । दुइ कृशास्व तारच्छ त्रिय चारी ।।
त्रि नव शेष चन्द्रमहि बिबाही । दछ्छ शाप तिनके सुत नाही ।।
दोहा-12
भानुरलंबा कुकुभ जमि विस्व साध्य मरुत्यानि ।
वसु मुहूर्ति संकल्प दश धर्म पतनि एतानि ।।
भानु के वेद ऋषभ सुत ग्याता । तिनके इन्द्रसेन नृप जाता ।।
लम्बा सुत विध्दोत दमंका । तनजित नवा तासु सुत वंका ।।
कुकुभा के सुत संकट नामा । तासु तनय कीकट अभिरामा ।।
जामि तनय भुवो दरगानि । तिनके स्वरग अनंद विधानि ।।
विस्वा के सुत विस्वे देवा । सो निरवंश त्रियोदश भेवा ।।
साध्या तनय साध्य परमारथ । तिनके अरथ सिद्धि लगि स्वारथ ।।
मरुतो तनय मरुत जै नंता । सो हरि अंश उपेन्द्र जयंता ।।
मुहुर्ति पुत्र मुहूर्त देवगन । सोपि काल फल दायक भूतन ।।
दोहा-13 क
संकल्पा संकलपि सुत सकल काम सुत तासु ।
वसु के पुत्र सुआठ वसु जिनकी लोक सुबासु ।।
13-ख
द्रोण प्राण ध्रुव अर्क वसु अग्नि विभावसु दोष ।
अखिल वंश तिनको सुनौ शिव दयाल संतोष ।।
द्रोण त्रिया अभिमत सुत नामा । हरष शोक भय आदिक तामा ।।
ऊरज स्वति स्वप्राण प्रिय बामा । जेहि सुत आयु परो जब नामा ।।
ध्रुव की नारि धरणि सुख नामा । तिहि के पुत्र बिबिध पुर ग्रामा ।।
अरक वासुना त्रिय शुभ पाई । जने तरब लगि सुत समुदाई ।।
आगिन भार जापिय वसु धारा । पुत्र द्रविण कादय गुण सारा ।।
सुत असकंध सुकृतिका जाता । विदित विपाषा लगि षट माता ।।
वसु अंगिरसी सुत विसु करमा । तासु पुत्र चाझुष मनु षडमा ।।
चाझसु मनु कर साध्या वामा । जनमें विस्व साध्य सुत नामा ।।
दोहा-14
विभा वसुर उषा त्रिया दिवस भये सुत तासु ।
तिन त्रिय निशि प्रत्यूष सुत जाग्रत कर्मणि जासु ।।
दोष सरवरो त्रिय लगि वंशा । सुत शिशु मार चक्र हरि अंशा ।।
भूत भारजा प्रथम सुरूपा । जनमें कोटिक रुद्र अनूपा ।।
भबहु भीम रेवतो बृषाकपि । वामदेव अज उग्र नाम अपि ।।
त्रिय महनि सुत अजैकपादा । अहिर वुध्न वहु रूपज गादा ।।
जे प्रधान अरु भूत विनायक । ग्यारह रुद्र सवै गण पायक ।।
जो कृसास्वकर अर्चिषि भारज । धूम्रकेश सुत जनेउदारज ।।
धिषणा त्रिय लगि पुत्र वेदसिर । देवल वपुना मनु अनुसंधिर ।।
तनय अंगिरस नारि विभेदा । स्वधा के पितर सतो सुत वेदा ।।
दोहा-15 क
तनय अंगिरस के पितर सुधा लगि वाम ।
दुसरे अथरव अंश वेद सतो सुत नाम ।।
15 ख
कद्ववाड़ अनलादया अंत सुअग्नि स्वात ।
वर्धि्ष दाजम अर्जमा वरुन सोमया सात ।।
दशारशय भये प्रथम जो व्याधा । पुनि कालिंजर मृग तन साधा ।।
बहुरि द्वीप सर चक बक वंशा । पुनि भये मान सरोवर हंसा ।।
वहुरि विप्र कुरुझेत्र मझारी । वेद पारगानव गुण धारी ।।
तपसे दिव्य पितर गति पाई । प्रथम श्राद्ध से सुमिरे जाई ।।
दक्झ सुता युग तारच्छ भामिनि । विनिता कहु पतंगी जामिन ।।
जामिन सुत सलभा दल टी डी । पतंगी तनय पतंगा कीडी ।।
कन्दू तनय ब्याल विष धरुणा । विनिता पुत्र गरुण लधु अरुणा ।।
अरुण सूर्यसारथि कर हीना । गरुण विष्णु वाहन लवलीना ।।
दोहा-16
त्रिदस कन्यका दक्ष लगि कश्यप की प्रिय नारि ।
जासु वंश ते सकल जग भये चराचर झार ।।
तिमि के सुत जादौ गण जूहा । सुरमा के सुत सुपद समूहा ।।
सुरमी सुत पशु महिषा गावा । एक सफा दुसफा अनुभावा ।।
इला के पुत्र विटप सव जाती । सकल मरूहा तरु बहु भांती ।।
ताम्रा तनय अमित खग राचा । सेन ग्रध उलूक नष पांचा ।।
क्रोधावसा के सुत सब सरपा । दंद सूक आदिक वस दरपा ।।
मुना के पुत्र अपय रस सर्वा । तनय अरिष्टा गण गंधर्वा ।।
काष्टा तनय सकल पशु जाती । गज लगि पचःनषा बहुभाती ।।
अज मृग सिंह श्वान सव राशी । खेट ग्रामचर घर वन वासी ।।
दोहा-17 अ
सुरसा के सुत खल सकल जातुधान बलवान ।
दनु के इकसठ दानव दस अरु आठ प्रधान ।।
छन्द -
अरुणो विभावसु संवरासुर हय ग्रीव दुमूर्धना ।।
अयोमुख अरु शंकु शिर सुरभानु कपिल अरिष्टना ।।
धूमकेशन विरूपा क्ष्णा विप्रचिक दुरज परुना ।।
शिवदयाल वृष पर्वा पुलोभा एक चक्रोनुतापना ।।
दोहा-17ब
नमुचि वरी सुरभानु की सुता सुप्रभा नाम ।
सरमिष्टा वृष पर्व को सुता जजाति की मात ।।
वैश्वानर युग सुता कुमारी । कश्यप ऋषि कौ बरी विचारी ।।
उप दानवी हयशिश नामा । लगि कालिका पुलोमा वामा ।।
हिरसयाक्ष उपदानवी जाता । क्रतु हयसिरसि हयसिरा ष्याता ।।
सुत पौलोम पुलोमा अंशा । कालिकेय कालिका वतंशा ।।
उभय ने साठि सहस सुत जाये । स्वर्ण निवात कवच सुवसाये ।।
विप्र चित्त सिहिका विवाही । सत सुत राहु केतु ग्रह माही ।।
आदित के बारह सुत अधिकारी । तिनमै हरि वामन सुत धारी ।।
तेज सुद्वादश आदित भाषत । यश कीरत सुनि पातक नाषत ।।
दोहा-18 क
विवस्वाम अरजम पुषा तुष्ट भगा सविस्तार ।
मित्र सक्र वामन वरुण धातु विधातो दार ।।
18 ख
विवस्वान संज्ञा त्रिया ऋद्ध देव सुत जात ।
जा सो वैवस्वत कहे वरतमान जो सात ।।
पुनि मैथुन ते सुत जम जाये । जमुना सुता जु हरि वर पाये ।।
मैथुन दुसह देह धरि अश्वनी । त्रिया छाया तजि तह वन गमनी ।।
दुय छाया मैथुन करणी । जेढे शनि लधु मनु सा वरणी ।।
विवस्वान वन खोजि विचारी । अस्व रूप वडवा रतिकारी ।।
वीरज दुसह नाक फुरकाये । नाशति नाम युगल सुत जाये ।।
वीज दुभाग नाक पुट धारा । विदित वैद अश्वनी कुमारा ।।
अरजम सुत मातृका नामा । जासु तनय चरषण गुण धामा ।।
जिनके सुत मानुष सव जाती । उप कलपे विरंचि वहु भांती ।।
दोहा-19
पूषा वंश न भाग मख परपोषण हवि खात ।
जासु रदन क्रत दक्ष के वीरभद्र करि धात ।।
दानव सुता रोचना नामा । सोत्वष्टा कै कोमल वामा ।।
तिहिके तनय व्रत विश्रुरूपा । जो देवन उपरोहित निरूपा ।।
जबहि बृहस्पति गये रिसाई । भये ते विमुख निरादर पाई ।।
जवसे सुरपति इन्द्र कहाये । सुरग विशद इन्द्रासन पाये ।।
अहमित इन्द्र पाय बड़ सासन । आये सुर गुरु दिये न आसन ।।
केहि न होत मद प्रभुता पाई । धन विधा मद तन तरुणाई ।।
काहि न मत्सर अनल जराये । शोक समीर न काहि सुखाये ।।
को न भयस प्रभुता मद अंधा । को नहि भृमसि अगम ग्रह धंधा ।।
छंद-
मोह के वश जग को न भयो । अरु माया जाल न काहि फसायो ।।
लोभ कहो किहि को न किये वश । क्रोध औ काम न काहि सतायो ।।
सोंच कलेश चिंता तृश्ना । शंका सापिन काहि न खायो ।।
शिवदयाल बचो इनते विरलो । जिन हरि हर हेतु सुजन्म गवायो ।।
दोहा-20
सुर गुरु के अपमान ते छूटो इन्द्र समाज ।
पुनि वसुरूपै गुरु करो तव पायो निज राज ।।
चौपाई -
देय प्रतीक्ष सुरण मख भागा । दनुज परोक्ष मातु अनुरागा ।।
दानव सबल इन्द्र तव देखी । विस्वरूपा सिर काटि विशेषी ।।
तीनि शिरशि इक भागर गैया । दुसरो तीतर तैति तिरैया ।।
अमी पिवन मुख भा कलविंका । जेहि गवरै आ कहत अलिंका ।।
सुरापान मुख भयो कपिंजल । जो तोतुर सित धूम्र गिरा षल ।।
अन्न अधार तितरी नामा । जासु बचन शुभ तीतर स्यामा ।।
जो दुजालि कुल वध अनुरागे । ताहि विप्र वध सम अध लागै ।।
खग पालै लधु पिंजर जाला । सो मानुष समान चण्डाला ।।
दोहा-21
विस्वरूपा हत्या त्रिविध लगेसि इन्द्र पर धाय ।
गुरु हा दुज हा बंधु हत् एकै मह त्रिगुणाय ।।
चौपाई -
करि सुरेश तीन हय मेधा । जप त्रिकोटि गायत्री वेधा ।।
मुचहि न हत्या बिकल सुरेशा । विनयेसि विधिकौ पाय कलेशा ।।
विधि सो हत्या करि युग भागा । देय भूमि जल त्रिय तरु लागा ।।
धरी धरणि हत्या तद ऊसर । पूरण षात पाय वर दूसर ।।
जल मैं हत्या उद्वबुद्द फेना । धरेसि पाय वर मल हरि लेना ।।
लही विटप हत्या सोइ वादा । कटि अनरोहै विधि परसादा ।।
त्रिय कौ हत्या रितु प्रतिमासा । लयेसि पाप वर संतति आशा ।।
प्रथम दिवस त्रिय सम चांण्डाली । दूसर सम दुज धात कुचाली ।।
दोहा-22
रजोवती दिन तीसरे त्रिय रज को अनुमान ।
चौथे दिन जगयोग सुचि करि भंजन असनान ।।
तव लग मुख न विलोकन योगा । रमि द्विज दोष परै तहि भोगा ।।
संतति होय मलेक्ष निरासै । घर उजरै पितु मातु विनासै ।।
तीन उपरि षट दिन परजंता । जदि दम्पति वस काम रमंता ।।
तद संतान होय खल कोही । मातहि पितहि कलेशन द्रोही ।।
सुता विषम सम दिन सुत आसै । सोरह दिन लौ गरभ निवासै ।।
सविता पतनी प्रंश्रि रमन्या । सपूत पांच पुत्र जुग कन्या ।।
चारि सुता सो जग पावित्री । त्रय व्याहुती अपर सावित्री ।।
जनमें पर्म सुभग सुत पांचा । लोक विदित पावन गुण रांचा ।।
दोहा-23
सोम जजन चन्द्रायन अगिनहोत्र पशु मेध ।
चतुर मास्य सर माह मख शिवदयाल फल एध ।।
चौपाई -
सिद्धिर नाम भगा कर नारी । अंग महिम विभु प्रभु सुत चारी ।।
आशिष वरारोह दुय कन्या । सुव्रत सुन्दरी लोक लवन्या ।।
कहू नाम धातुर की नारी । जननी चारि सुता सुत चारी ।।
बाली सिनो अनुमती राका । चारि सुता ये पर्व पताका ।।
पुरण मास अरु सायं प्राता । दर्श समेत चारि सुत जाता ।।
क्रिया विधाना त्रिय सुत जाता । तपहित पंच अगिनि विष्याता ।।
वरुण की नारि चरखनी नामा । तिहि के सुत भृगु बलमीक विदामा ।।
भृगु के सुत भार्गव सुख भोगी । वालमीक बलमिक सुत योगी ।।
दोहा-24
मित्र नारि रेवती सुत पिप्पल आन अरिष्ट ।
उरवसि मित्रा वरुण के तनय अगस्त वशिष्ट ।।
सुरपति नारि पुलोमा सौभगि । त्रिसुत जयंत रिषभ मीडुक लगि ।।
वामन त्रिय कीरति गति शोका । जनमे पुत्र व्रहत अस लोका ।।
भये सो भगादया सुत जासू । सदा सकल हिय हर्ष हुलासू ।।
दिति सुत हिरएयाक्ष हिरणकुस । अपर पवन उनचास इन्द्र सुस ।।
हिरणाकुस युग सुत समवादा । यह भागवत जेठ प्रहलादा ।।
तिनके पुत्र विरोचन वलधर । तासु पुत्र बलि सुत वानासुर ।।
पर्म भागवत दिति के वंशा । वलि प्रहलाद जासु अवतंसा ।।
स्वायुंभुव सव सुता प्रसूती । विधि सुत दझ वरी अबभूती ।।
सोरठा-
दक्ष प्रजापति नाम जनमी सोरह सुभ सुता ।
देय सुलक्षण धाम तिनमें तेरह धर्म कह ।।
दोहा-25 क
एक स्वधा पितरण दई स्वाहा अगिनि कि वाम ।
सुता सती शिव को वरी सुनौ धर्म को नाम ।।
25 ख
श्रद्धा मैत्री दया वुधि सांति तितिझा तुष्टि ।।
पुष्टि क्रिया ह्री उन्नति मेधा मूरति श्रष्टि ।।
श्रद्धा सुत शुभ मैत्रि प्रसादा । दया अभै बुधि अरथ उपादा ।।
शांति तनय सुख तितिझ क्षेमा । अस्मय पुष्टि तुष्टि मुद प्रेमा ।।
उन्नत दरप योग क्रय एधा । ह्री के प्रश्रय अ स्मृति मेधा ।।
एति धर्म त्रिय वंश धरायण । मूरति सुत दुय नर नारायण ।।
जासु जनम वहै त्रिविध बयारी । शीतल मंद सुगंध पियारी ।।
ग्रह सुपंथ नभ निर्मल तारा । गिरि प्रशेद सरिता शुभ धारा ।।
देव सकल बाजने बजावै । नृत अपसरा गंधरव गावै ।।
जै जै करै सुमन सुर वरसे । नभ दुंदुभी बजै सुर हर्षे ।।
दोहा-26
जिनको तप लखि इन्द्र डरि रंभा मदन वुलाय ।
चाहत डिगावन सखालय करे अनेक उपाय ।।
डरपे इन्द्र डिगे हरि नाही । तिन विरची बहु त्रिय तन पाही ।।
दै सब इन्द्र कह लै जावौ । हमैं न रचि माया दरसावौ ।।
इन्द्र न एकौ लेत लजाई । चलो भवन मन मैं पछिताई ।।
तब हरि देख इन्द्र मन छोभा । दै उरवसी सुरग कर शोभा ।।
अपर सु अंतरध्यान परायण । करण लगे तप नर नारायण ।।
अगिनि त्रिया स्वाहा त्रि सुतासन । सुचि पावक पवमान हुतासन ।।
स्वधा पितर पतनी गुण धामा । तनय सोम पा लगि अभिरामा ।।
दक्ष की सुता सती गुण खानी । शिवै समरपी जानि भवानी ।।
दोहा- 27 क
निर्गुण ब्रह्म सगुण मय विधि हरि शंकर नाम ।
रजगुण विधि हरि सतोगुण शम्भु तमोगुण धाम ।।
27 ख
तथा गुण मयी देवि त्रय सतगुण कमला नाम ।
ब्रह्माणी गुण राजसी तमगुण काली श्याम ।।
विदित महा काली गुण धामा । दक्ष की सुता सती अस नामा ।।
तहां सती शंकरहि विवाही । निज गुण रूप सती सुत नाही ।।
पति पितु खेद तजी तह देहा । पारवती भइ हिमगिर ग्रेहा ।।
तब तह गिरिजा शिवै विवाही । नाम रूप बहु गिने न जाही ।।
भद्रा गवरि चण्डिका विजया । दुर्गा उमा भगवती जया ।।
कामाख्या कामदा क्रमंति । भद्र कालि कालिका जयंति ।।
चामुण्डा सति शिवा भवानी । नाम अनेक सकल गुण खानी ।।
धरे विविध तन मिलि गुण रूपा । करै सुकारज सकल अनूपा ।।
दोहा-28
सृष्टि वंश उतपति सुने सवके मन आनन्द ।
शिवदयाल बोले बहुर । शोनकादि मुनि बृन्द ।।
सूत सकल जानत इतिहासा । तब मुखँ अम्बुज कथा प्रथा प्रकाशा ।।
पिये करण पुट चरित पियूषा । उर संतोष न निवरै भुषा ।।
सुनि पुराण पोषे मन माही । तिन विशेष रस पाएसि नाही ।।
सुचि सुन्दर शिव कथा सुनावौ । चरित पुराण मनोहर गावौ ।।
प्रधटी प्रथम दक्ष ग्रह माही । सती नाम तह शिवहि विवाही ।।
पारवती भई हिमगिर धामा । शिवहि वरी तह गिरजा नामा ।।
शिव केहि भांति एक तन माही । सनी उमा दुय जनम विवाही ।।
भयो न सती पुत्र केहि कारण । केहि विधि पारवती तन धारण ।।
दोहा-29
रुचिर चरित जे अपर पुनि कहौ सूत समुझाय ।
शिवदयाल कहि मौन भये रहे कथा मन लाय ।।
इति श्री शिव चरित्र महात्म षष्टोअध्याय
।।। स्थाणोर्चरितृम ।।।
।।। शिवदयाल कृत शिव पुराण परिपाटी ।।।
।। अथ श्री सप्तमोअध्याय ।।
बोले सूत सुनौ मुनि बृन्दा । शिव की कथा देनि आनन्दा ।।
जो सुनि सफल जनम हुय जावै । लोक सुजस परलोक बनावै ।।
सुनहु भार्गव कथा पुरानी । जीवन जन्म सफल अध हानी ।।
शक्ति स्वरूप सती तन पाई । जनमी प्रथम दक्ष ग्रह जाई ।।
तहॉ सती शंकरहि बिबाही । लोकहु वेद विदित जग मॉही ।।
वैर दच्क्ष शिव दोउ दिसि रोषा । तजी सती शिव दक्ष् के दोषा ।।
दक्ष सती दय फिर न बुलाई । सती बहुरि पिता ग्रह आई ।।
वैर जमातर ससुर की कोई । नारि अनादर दोउ दिसि होई ।।
दोहा-1 क
विधि हरि हर ई श्वर अहे जे न कामबस बास ।
इनके गरभ न मैथुनी पुत्र न पतनी आस ।।
1ख
काली कमला ब्रह्म त्रिय सती गवरि गुण खानि ।
इनके पुत्र न गरभ ते सुत इच्छा अनुमानि ।।
सूत सती केहि विधि केहि कारण । पितु ग्रह जायसु देह निवारण ।।
सूत सुमिर शिव हर्ष समेता । कहा कि शौनक सुनौ सचेता ।।
एक समय विधि के मख माही । सुर मुनि सव आये हरि नाही ।।
दक्ष तहां सो अवसर पायउ । अहमित ब्रम्ह सभासद आयेउ ।।
मिले सकल उठि शीश नवाये । उठे न विधि शिव ना सिर नाये ।।
शम्भु न उठे ससुर मन मानी । दक्ष मरषि बोलेसि कटु बानी ।।
शिव तै दयसि न आदर मोही । करेसि स्व शिष्य सुता दै तोही ।।
बैठि सभा सद मद गत ज्ञाना । मोहि न पितु समान मन जाना ।।
सोरठा-2क
तोहि न शर्म अकाम करो तो सेवक सुता दय ।
तदपि न विनय प्रणाम दयो अनादर सभा मय ।।
दोहा-2ख
दक्ष तरेरे नयन कर वक्र भौह मुख वाम ।
बोले मरषि महेश पर उठो न करो प्रणाम ।।
शिव अपमान करेसि तै मोरा । रूप अमंगल होवहि तोरा ।।
शिव तौ साधु नहि कछु कहेउ । पलटि साप नंदी गण दयेउ ।।
सब दुज बर तुम होउ भिखारी । विप्र धरम तजि पर अपकारी ।।
घर घर भोजन जाचहु दाना । तदपि होत गृह प्रति अपमाना ।।
तब भृगु मुनि करि नयन तरेरे । तिरछी भृकुटि बचन करेरे ।।
फरकत अधर थरथरत देहा । दयेउ शाप उठि तजि कुल नेहा ।।
शिव सेवक होवहि धनहीना । भेष अमंगल पर आधीना ।।
दोहा- 3
होय जटिल खल भसम धर कारक पर अपकार ।
दुरभच्छी दूषित अमल विष मदिरा आधार ।।
बहुरि दयेसि नंदी गण शापा । करहु परस्पर दुज परितापा ।।
होउ परस्पर सकल विरोधी । सहि न सकौ पर सम्पति क्रोधी ।।
उठे विप्र सब करत कलापा । दक्ष दयसि पुनि शिव कौ शापा ।।
अव ते शिव न लखै मख भागा । वसहि मसान विभूति विरागा ।।
प्रथम रुद्र मख भाखन आवै । सुरण संग निज भाग न पावै ।।
तब शिव उठे सहित संदेहा । सगण गये विमुख गिरि गेहा ।।
संभृम उठे सकल तजि कामा । सुर मुनि गये सवै निज धामा ।।
ससुर वैर तजि सती निरंतर । करि समाधि वैठे गिरि शंकर ।।
दोहा- 4
कछु दिन वीते विधि कृपा भये ते दक्ष प्रजेस ।
तदपि न भावी वस तजे अनुचित वैर महेश ।।
होनहार दुखः जिनहि अपारा । नासै सुमति कुमति अनुसारा ।।
वैर ससुर सारेन लगि कोई । पति पतनी विरोध अति होई ।।
दंपति कपट कलह जदि होई । तह दुय मै सुख लहै न कोई ।।
दझ प्रजापति सासन पाई । अहंकार करि मख निर्माई ।।
वैर सुमिर शिव सती विहाई । सबहि निमंत्रण दये पठाई ।।
आये विधि हरि मुनि सुर सर्वा । मनु फणि जक्ष पितर गंधर्वा ।।
सुत वनिता समेत सब आवै । नभ मारग विमान चठ़ि गावै ।।
छुटी समाधि तुरत शिव जागे । ब्रम्ह निरंतर सुमिरन लागे ।।
दोहा-5
सती सुअवसर जानि के गमनी शिव के तीर ।
आगे आसन दये शिव करि आदर धरि धीर ।।
सुनि सुर बधुन केर कल गाना । पूछति सती शिवहि विधि नाना ।।
देवन वधू मधूर धुनि गावै । चठ़ि विमान किहि के कह जावै ।।
कहै सती सन शिव हरषाई । तव पितु दछ जज्ञ निरमाई ।।
हमरे वैर न तुम्हहि वुलावा । सो कछु मोर न दोष अ भावा ।।
छोटेन कौ यह उचित सुकामा । करै बड़िन कौ प्रथम प्रणामा ।।
जदि जेठे सब गुरुण प्रधाना । गौरव कुल सब गुरू समाना ।।
जेठिन पाटा छोटेन पानी । पान प्रणाम बड़े कौ जानी ।।
सवकौ आसन असन समाना । जथा योग आसन गुणवाना ।।
दोहा-6क
जेठे हम सन्यास पुनि ईश्वर पुनि जामात ।
पद प्रछालि कन्या दई आदि न प्रणत सुहात ।।
दोहा-6 ख
यह जमातर धरम सुचि पितु सम नेह विदाम् ।
उठिके लिये न ससुर प्रथम न करहि प्रणाम ।।
बड़ेन प्रथम प्रणाम बखाने । तद छोटेन कर कुशल न जाने ।।
तदपि जमातर गुरु ब प्रधाना । प्रणवत् ससुरै पाप समाना ।।
हम अस जानि न करे प्रणामा । दछ साप दय करि अरि कामा ।।
सो सुनि सती गमन मन भावा । कह कर जोरि शिवै सिर नावा ।।
आयसु देउ समय शुभ पाई । पितु कृत उत्सव देखहि जाई ।।
शिव शंकर वर जो सनमानी । बिन बोले जनि जाहु भवानी ।।
सोचि सती मन करेसि विचारा । पिता समान भवन भरतारा ।।
हमकौ उभय पछ दुखदाई । अस कछु काल वितावहि जाई ।।
दोहा-7
संसय करि संकेत मन शिवहि कहा समुझाय ।
होत न मंगलकाज नित मिलै मातु मैं जाय ।।
शिव कह जाउ जो विना बुलाये । सादर सुख सनमान घटाये ।।
रहै न जस कीरत कुल षानी । सुख सनेह सद जीवन हानी ।।
हठ करि कहा सती हम जावैं । शिव सद कहा करौ मन भावै ।।
बहुत भांति शिव करो निषेदा । सती व माने वचन विभेदा ।।
मन अनखाय दये शिव शापा । तन मन भंग अंग परतापा ।।
सती चली सब आस विसारी । तब शिव संग दये गण चारी ।।
नारि स्वभाव विगत सन्देहा । मातु पिता कुल संग सनेहा ।।
सती दछ ग्रह पहुंची जाई । प्रेम से मिली मातु उर लाई ।।
दोहा-8 क
हंसत मिली भगिनी सकल उर अपमान उछाह ।
करै परस्पर तरकना सती ह्रदय अति दाह ।।
दोहा-8ख
दछ विमुख धर नगर लगि लई न केउ सनमानि ।
पूछत कुसल न छेम कोउ मन भूपति भय मानि ।।
सोचत सती द्वार पुनि आई । मान भंग अपकीरत पाई ।।
पुनि गवनी मखशाला माही । शंम्भु भाग देखेसि कहुं नाही ।।
सती अनादर वैर विलोकी । सकै न काहू विधि रिसि रोकी ।।
फरकत अधर अंग रिस व्यापी । तब निज रसन दसन से चापी ।।
तन थरहरत अरुण दोउ नैना । कर कंपत कठोर मुख वैना ।।
वोलेसि बचन दछ मख माही । सुनौ सकल मिलि संसय नाही ।।
जनक जग्य जितने सब आये । सुनि शिव को विरोध मनभाये ।।
तिहिको फल पावहु सब कोई । शंकर विमुख उचित जस होई ।।
दोहा-9
जद्धपि जग दारुण दुखः होत अनेक विधान ।
शिवदयाल सबसे कठिन दुसह होत अपिमान ।।
सो अपिमान कीन्ह पितु मोरा । मख मुख भंग होय खल तोरा ।।
तात कुमति उपजी उर तोरे । शंकर विमुख सुजन तव कोरे ।।
पिता सुक्रत सम्भव यह देहा । तजै जतन सत विगत सनेहा ।।
अस कहि तजि पितु मायापूरी । पच्छिम दिशा जान कछु दूरी ।।
करि जलपानि दुकूल सुधारी । वैठसि पद्मासन मन मारी ।।
तजि संसय सनेह सुख संगा । शिव पद सुमिरि ध्यान मन रंगा ।।
करि सत प्राणायाम संजीवन । करखत प्राण नैन उन्मीलन ।।
सती अंग योगानल जारा । उठी ज्वाल भयो हा हाकारा ।।
दोहा-10
ज्योति प्रकाश सती सिर कश्मीर गिरि धाम ।
तवते ज्वालामुखी शुभ लोक विदित अस नाम ।।
रही ज्योति पर्वत पर छाई । तवते ज्वलामुखी कहाई ।।
जो सुत आसय करि तहां जावै । दर्शन करै पुत्र फल पावै ।।
दरसहि पूजहि पाठ सुनावै । सो जन सकल मनोरथ पावै ।।
सती अंश हिमगिरि ग्रह जाई । जनमी पारवती तन पाई ।।
जदि शिव संग दये गण चारी । सती जरत तिन सभा विदारी ।।
मख विध्वंस करन गण लागे । भृगु मुनि ताड़े शिवगण भागे ।।
नारद जाय शम्भु यह कहेउ । यथा चरित मखशाला भयेउ ।।
सती मरण अनहित अपमाना । गण त्रासन मखमाष बखाना ।।
दोहा-11 क
सती मरण सुनि शंकर कहा स्ववैर विचार ।
दछ ह्रदय मद अंकुरा सो अब लेव उखारि ।।
दोहा-11 ख
अस विचार उर कोप करि कारक श्रष्टि संघार ।
आतुर शिव पटकी जटा प्रधटो नीलकुमार ।।
अरुण नयन शिर कुंचित केशा । कर त्रिशूल अ लोहित वेशा ।।
कहै करजोरि शंम्भु यह सोई । अब हम करैं जो आयसु होई ।।
तद वोले महेश मन मरषी । सुनौ पुत्र मम गिरा अधरषी ।।
वीरण बिषद भद्र अधिकारा । वीरभद्र तब नाम उदारा ।।
अब तुम सेनपति सो कहावौ । हरद्वार कनखल चलि जावो ।।
दछहि दलौ करौ मखभंगा । कृतुकारण विदीरण अंगा ।।
भृंगी आदि सकल गण टेरे । आये पमन सम शिव के प्रेरे ।।
चलेउ शम्भु गण अनो अपारा । गरजै तरजै करहि चिघारा ।।
दोहा-12
चलत चमू टूटे बिटप, फूटहि गिर पाषान ।।
सिन्धु थर हरे बन हलै, डोलति भूमि निदान ।।
शंकति शेष बिरद आकुलाने । उठी रेनु तम तरणि छिपाने ।।
घोर सबद सुनि मुनि मखशाला । कहै परस्पर सकल विहाला ।।
ना जग प्रलय न समर सुवरणी । नतु नव खण्ड अराजक धरणी ।।
जनु लूटत जग चोर समूहा । निडर कुटिल खल बल करि हूहा ।।
भृगु मुनि कहा कि सुनौ प्रजेशा । उत्तर दिशि आचरज विशेशा ।।
धूरि पूरि दश दिशि अंधियारा । प्रलय मेघ सम घोर अपारा ।।
कोउ कहै सती मरण भल नाही । शंकर विमुख न सुख जग माही ।।
कोउ कहै दक्ष उचित नहि कीन्हा । जगदम्विकहि अनादर दीना ।।
दोहा-13
बोलि उठे तह अपर सब कुशल न शम्भु बिरोध ।।
सजग होउ सुर मुनि मनुज दक्ष कहत करि क्रोध ।।
संभृम संकल भये उठि ठाडे़ । रक्षक दक्ष सुभट करि गाढे़ ।।
तब लगि सवै रद्र गण आये । मख रच्छक सब मार गिराये ।।
जेहि पावै तेहि मार गिरावै । सनमुख लरै सुभट जो आवै ।।
भैरव नचहि जोगिनी गावै । भूत प्रेत सब ताल वजावै ।।
चहुं दिशि घायल वीर विराजै । नाचहि शम्भुगणज गहि वाजै ।।
मोहित वीर विमोहित गाजै । समर मोहिनी वाजने वाजै ।।
वीरभद्र धुनि करि गति नाचा । जहं तहां धावहि विकट पिशाचा ।।
दोहा-14
भृगु मुनि मख रक्षा करत भुज करि बचन उचारि ।
तासु केश गण चिवुकमय लैअ समश्रु उखार ।।
पूषन हंसत गहेसि चंडी सी । तोरे वदन ते रद नख वत्तीसी ।।
भगा करे तव नयन तरेरे । नयन काढ़ि होय तिन केरे ।।
दच्छहि वीर भद्र गहि लयेउ । शीश तोर पूरण हुति दयउ ।।
काहु के कर पद भुज अंगा । काहुय करउ सकल तन भंगा ।।
येहिविधि सकल विकल करिडारे । सुरमुनि सब शिवशरण पुकारे ।।
भये विकल सव देव मुनिन्दा । मन सोचहि ब्रंदारक ब्रंदा ।।
गये अखिल सुर मुनि कैलाशा । शिवहि देखि वट छौह निवासा ।।
तरक मुदया हरि चर्माशन । जटा जूट शशि भाल प्रकाशन ।।
दोहा-15
सुर मुनि विनवत वेद विधि होव प्रशीद महेश ।
सब कर तन पूरण करौ माथो दच्छ प्रजेष ।।
तब शिव कहा दझ मख आये । शंकर विमुख उचित फल पाये ।।
शम्भु अनादर मख निरमावै । होय विधन फल पूर न पावै ।।
तुम सब विनय करी जेहि लागे । लहो भाग मख हमसे आगे ।।
पुरवा अदंत खाय पर पेखो । भोजहि भगा परायो देखो ।।
भृग अस मश्रु अरो है फेरी । पूरहि देह अपर सव केरी ।।
अब जो रहो दच्छ तन रुण्डा । जरो लागि पूरण हुति मुण्डा ।।
जग्य योग जदि बलि पशु आये । छाग तनय शिर काटि भगाये ।।
अजसुता लागि अजासुत शीशा । धरिक वंध पुनि करे अधीशा ।।
दोहा-16 क
वीरभद्र जो प्रथम तह करो दछ शिर भंग ।
अज मुख धरि संजीवनी करि परिपूरण अंग ।।
दोहा-16 ख
दच्छ प्रजापति उठे तव मगन मेख मुख पाय ।
वक वकाय वकुरे ववकि वं वं विनय वनाय ।।
दोला छंद
वं वं व्रषवध्वज विश्व विभो । व्रष वाहन वेद विनोदप्रभो ।।
वरभाल विशालसुवाल विदो । वाघंवरधर वरदानप्रदो ।।
वहुव्याल विभूषणपाति वने । विषधारणकंठ विभूतिसने ।।
वरवारणचर्म विछावनको । विनवौ वुधिवास वसावनको ।।
विदु विश्व विमोहितकांतिरते । विधनेश विनायकभूतपते ।।
विनवौविभुवानि विलाशप्रभो । विश्वाधर वेदविकाशविभो ।।
विनवै वसु विष्णु विरंचिदिवो । वंदित व्रंदारक व्रंदशिवो ।।
विलोल विलोचनकंजअरुणा । विदुवन्हि विभावसुत्रैतरुणा ।।
दोहा-17क
यह अष्टक मंगल करण भाषो दछ प्रजेष ।
शिवदयाल वाचैं सुनै नासै विघन कलेष ।।
दोहा-17 ख
वं वं विगत विनाश है अवम् कहावत नाश ।
शिवदयाल वं वं वदत उभै लोक परकाश ।।
दछ्छ विनय करि वुकर वदनवर । हंसे सकल सुनि विहंसे शंकर ।।
कह शिव हम प्रसीद वर मांगौ । दच्छ कहा शिव यह अनुरागौ ।।
हम तब करे दोष वहुतेरे । बरबस वैर विषाद घनेरे ।।
दये शाप मख भाग न पावौ । छमहु शंभु सो दोष नसावौ ।।
जग्य जोग देवन संग भावौ । मख उच्छिष्ट भाग अब पावौ ।।
तवते सब जन गाल वजावै । वं वं वं वं कहि शिवहि रिझावै ।।
अब सो चरित सुनहु अति पावन । पारवती कर जनम सुहावन ।।
पितरण सुता मानसी मैना । शैल राज पतनी सुख एैना ।।
दोहा-18
तासु गरभ आगम उमा सती अंश अनुसार ।
गवरि नाम जनमी सुता पारवती अवतार ।।
गिरिजा नाम हिमाचल कन्या । सती शिरोमणि परम लवन्या ।।
तब अवराधि शंभु पति पाये । लोकन विदित वेद जस गाये ।।
जेहि सेवत फल मिलैं अनेका । सुख सम्पति सुत नेक विवेका ।।
शिव गिरिजा सेवन अनुभावै । सो शुभ सकल मनोरथ पावै ।।
जेहि जानत शिव लोक सिधावै । शंभु सपथ सेवक सुख पावै ।।
अति उदार सुनि वैन अमोले । सहस अठासी रिषि हंसि वोले ।।
धन्य सूत शुभ चरित उचारा । शंभु कथा अमिरत रस धारा ।।
तव मुख चुअत पिवत पुट काना । होन त्रपित करत हम पाना ।।
दोहा-19
शिव संतोषत कौन विधि हुय प्रसीद कह देत ।
जप तप सेवन क्रम कहौ पूजन मंत्र समेत ।।
शिव आराधन कर्म बतावौ । सेवन पूजन फल दरसावौ ।।
केहि विधि गिरिजा जन्म उछाहू । नाम कर्म तप लागि विवाहू ।।
सब मंगल षटमुख अवतारा । तारक वधन त्रिपुर संहारा ।।
जोति लिंग संख्या अधिकारा । उतपति विधि समेत विस्तारा ।।
अपर जो महालिंग शुभ चारी । परम लिंग उपलिंगन धारी ।।
प्रधट प्रभाव दरश फल भावौ । सबके सब संवाद सुनावौ ।।
दुजवर छत्रिय वैश्य सूद्र त्रिय । को किहि विधि पूजै शिव संप्रिय ।।
यथा व्यास मुनि मुख सुनिपाई । श्रुति समेत सब कहौ वुझाई ।।
दोहा- 20
शिवै सुमिर करि सूत कह सुनौ सकल मुनि बृंद ।।
सुनी यथारथ व्यास मुख कहैं सहित आनन्द ।।
शौनक पूछेसि कथा सुनीकी । भगतन सुखद अभक्तन फीकी ।।
शिव हरि कौ यह कथा सुनाई । हरि के मुख विरंचि सुनि पाई ।।
उपमनि कह व्यासै समुझाई । सत्यवती सुत हम सन गाई ।।
श्रोता वकता षट सम्वादी । शिव अनादि शिवकथा अनादी ।।
शिव पूजन यह वेदन गावा । लोक सुखद परलोक बनावा ।।
सो हम तुम सन कहैं वखानी । शिव पूजा विधान शुभ जानी ।।
शम्भु कथा शत वरष अधारा । कहि न सकहि संजुत विस्तारा ।।
दोहा-21
सो संछेप कहब हम यथा सुमति अनुसार ।
श्रुति सम्मति पौराण गति भाषा बिसद अपार ।।
भूतक देहक दैविक तापा । नासहि सकल करत शिव जापा ।।
नव कठोर शिव शिव अनुसरई । नाम नाव करि नर भवतरई ।।
मंत्र पंचअछर अति पावन । कष्ट शोक दुःख दोष नसावन ।।
कलिमल सहित सकल संतापा । हर हर करत हरत सब पापा ।।
परमभक्ति करि पूजै शंकर । रिद्धि सिद्धि सब लहैं अनंतर ।।
दुःख दारिद कुरोग अरि लम्पट । शिव सुमिरे नासहि षट संकट ।।
संतति संपति लगि शिव सेबै । अरथ कामना सब शिव देवै ।।
करहि मनोरथ जो जग मांहीं । शिव सेवत कछु दुरलभ नाही ।।
दोहा- 22
येहि विधि नित पूजन करै शिव सेवै करि प्रेम ।
चारि बरण कै विलग विधि शिवदयाल नित नेम ।।
ब्रह्म मुहूरत उठै प्रभाता । सुमिरै हर गुरु पद जलजाता ।।
तीरथ छेत्र धाम गिरि कानन । सुमिर पुनीत वेद अनुशासन ।।
श्रीपति जगहु करण जगमंगल । असकहि धेवै हरि नख शिख तल ।।
मेध श्याम युगभुजा विशाला । उर कौस्तुभ मणि उर वन माला ।।
भाल विशाल तिलक अतिरोचन । तरुण अरुण पंकज सम लोचन ।।
गोल कपोल अधर विम्वाफल । क्रीट मुकुट मकराकृत कुण्डल ।।
चिवुक चारु सुन्दर वर ग्रीवा । कम्बु कण्ठके हरि वल शीवा ।।
शुक चुंचकि सम शोभित नासा । रदन पांति तारका प्रकाशा ।।
दोहा-23क
अरुण कमल सम कर चरण त्रिवली उदर विशाल ।
अखिल कोटि सत मदन सम शुभग सुमिरि शिवधाल ।।
दोहा-23ख
दहिना वरती शंख शुभ चक्र सुदर्शन नाम ।
विसद गदा कौमोद की पदम सहस दल दाम ।।
सोरठा-23ग
धरे चारु कर चारि शंख चक्र पंकज गदा ।
या विधि ध्यान सुधारि शिवद्याल सुमिरै सदा ।।
सोरठा-23ख
दच्छिन दिशि को जाय मल मोचन क्रम आचरै ।
पावन मृदा मंगाय पंच वार मंजन करै ।।
छत्रिय चार वैश्य त्रै वारा । सूद्र वार दुय मंजन सारा ।।
येहि विधि से कर चरण प्रछालै । सूद्र समान त्रियन क्रय चालै ।।
रदन धोवनो अंगुल द्वादश । धोवहि द्विज भूभुज एकादश ।।
वैश्यन कौ दश त्रिय सूद्र नबांगुल । येहि प्रकार धोवै मुख से मल ।।
मंजन करि तीरथ अनुमाना ।। देश काल विधि करि अस्नाना ।।
कहि पुण्डरीकाच्छ आचमना । मंत्रि धौति धारण करि वसना ।।
एकांतर अस्थल मन धारी । संध्या वंदन विधि अनुसारी ।।
मन थिर पूजा सदन प्रवेशा । धरि सब सामा निकट महेशा ।।
दोहा-24
प्रथम पूजिये कलश धरि मूरति गवरि गणेश ।
द्वारपाल दिगपाल हरि कीरति सगण दिनेश ।।
पुनि तह पीठ कलपना कारी । अथवा कमल अष्ट दल धारी ।।
तापर शिव मूरति कर थापन । त्रै आचमन करै हरि जापन ।।
प्राणायाम करै त्रै वारा । ध्यान त्र्ययंवक येहि आकारा ।।
पंचवक्र दशभुज शशिभाला । व्याघचर्म अम्बर गजछाला ।।
जटाजूट उर फटिक प्रकाशा । अहि आभरण विभूत अवराशा ।।
सैव रूप थापै परमेश्वर । पूजि मनोरथ पावै सब नर ।।
प्रथम आचमन कर धट थापी । विलग दर्भ युत धट अस नापी ।।
प्रणव मंत्र जपि कुश कर लीजै । सकल वस्तु परिमार्जन कीजै ।।
दोहा-25
मूल मंत्र से न्यास करि पावन करि सब देह ।
करै न्यास षटअंग पुनि प्रणव सहित शिव नेह ।।
चंदन लय कर नीर उरीशा । शंभु चरण पर अरपै धीरा ।।
पुनि कपूर जल मूल तमाला । जाती तज कंकोल विशाला ।।
सब कर चूरण करै सुधारी । कलश आचमन धट मैं डारी ।।
पंचगव्य शुभ रचहि विचारी । सुरभी मुद्रा करि कर धारी ।।
निज तन लेपहि सम अस्नाना । करहि आचमन रंचक पाना ।।
पुनि पंचामृत सुरुचि बनावै । सो शिव को अस्नान करावै ।।
गोपय धाय अछीन चढ़ावै । शिव शिव जपहि कि मंत्र सुनावै ।।
जपहि षडाछर सेवहि शंकर । दह्य पाप सारूप्य होय नर ।।
दोहा-26 क
कुरुक्षेत्र गंगा गया पुष्कर प्राग प्रभास ।
मंजन पूजन तर्पने शिवदयाल यह वास ।।
दोहा-26 ख
चंदन डारै घटन प्रति धेनु मुद्र कर धारि ।
शिवद्याल तेहि नीर से पूजै शिव त्रिपुरारि ।।
।।।इति श्री शिव पुराण परिपाटी सप्तमोअध्याय ।।।
शिव चरित्र महात्म
स्थाणोर्चरितृम
राम
अथ श्री शिव पुराण परिपाटी अष्टमोअध्याय
शिव चरित्र महात्म
स्थाणोर्चरितृम
छन्द -1
पूजि गणपति स्वामि कार्तिक कीर्ति नंदी भृंगही ।।
अष्ट दल कर पदम आसन प्रणव लेखे श्रंगही ।।
मलय चंदन सुमन अछत धूप दीप समर्पही ।।
शिवदयाल सर्वसु देत शंकर वेल दल अर्पही ।।
दोहा-1
पूरब दिसि अणिमा लिखै प्राकम्या अगनेव ।
दच्छिन दिसि लधिमा लिखै नैरित ई सितु सेव ।।
पश्चिम दिसि महिमा लिखि लीजै । वायव दिसि प्रणव लिख दीजै ।।
प्राप्ति कज उत्तर दल धरिये । सर बच्छा ईशान पसारिये ।।
सोम करणि कलिषि अधभानू । सूर्य अधोगत लिखै कृशानू ।।
धर्मोदय क्रम कलप अनंता । अव्यक्तादि चतुर्दिशि वंता ।।
त्रिगुण सोम कर अंतर चारी । ईश्वर अंतर बहिर निहारी ।।
वामदेव यह मंत्र उचारी । शिव पद्मासन पर विस्तारी ।।
सानिधि पढ़ै रुद्र गायत्री । मंत्र अघोर निवेदय तंत्री ।।
पढ़ि ईशान मंत्र दश अच्छर । वारि गंध सृग पूजै शंकर ।।
दोहा-2
अस षोडस उपचार कर नित पूजै शशि भाल ।
अछय मंत्र वं वं पढ़ै नास रहित शिव द्याल ।।
पाद्य आचमन अर्ध विधाना । पंचगव्य शिव कर स्नाना ।।
दधि मधु दूध ऊष रस धृत पल । पंचामृत मंजै शिव अविचल ।।
प्रणव षडंग उदक अस नापै । श्वेत वसन ऊपर से झांपै ।।
चंदन लेपि वसन करि दूरी । अरपहि तंदुल अछ्त पूरी ।।
अपामार्ग कुश दुरवा पाटल । युग कर सुजाती उतपल ।।
करण मल्लिका अरक मालती । मंजु वेलदल सुरण जालती ।।
पुनि शिव कौ अस्नाना करावै । सहस धार जल शीश चढावै ।।
करि समंत्र फल दायक पुजा । शिव सेवन सम हेत न दुजा ।।
दोहा-3
सहस धार अरपै शिवै। जल पढ़ि मंत्र विवेक ।।
सावकाश सामरथ विन। तदपि एक सै एक ।।
तिनके मंत्र उच्चारण करई । पंच प्रमान आन अनुसरई ।।
वाँग मीय होतारण शिरसा । दशअछर दुय ज्ञांति अविरसा ।।
देवव्रत ज्येष्ट साम्यावर । मृत्युंजय जपि अरु पंचाछर ।।
पुरुष सूक्त लगि पुष्प रथंतर । सहस धार कै शत मष्येतर ।।
पढ़ि शुभ मंत्र कि नाम उचारी । प्रणव आदि श्रुति सेत निहारी ।।
चन्दन सुमन शंभु सिर अरपी । प्रणव सहित नव वसन समर्पी ।।
निष्फल अछर शिव शशि भाषा । राजत फटिक सुतेज प्रकाशा ।।
पुनि मुनि जे सब मंत्र उचारी । पूजहि प्रेम सहित मद नारी ।।
दोहा-4
नील रुद्र लगि रुद्र निशा सूल शुभ जानि ।
अरुण भयउ अथवर्ण श्री सूल वषानि ।।
सर्व लोक मय कारक कारण । सकल विश्वमय सदा अराधक ।।
विधि हरि हर सुर इंद्र अगोचर । विदित वेद वेदांत लिंग धर ।।
आदि मध्य अवशान रहित हर । शंभु तत्व भेषन भव रुज पर ।।
लिंग विशद शिव तत्व अनूपा । पूजि लिंग शिर प्रणव सरूपा ।।
ताम्बूल दय आरति कारी । नमस्कार अस्तव अनुसारी ।।
दय शुभ अर्ध अरध परिकरमा । शिव पद सुमन समर्पि सधरमा ।।
माथ नाय मन शिव अवराधै । हाथ पुष्प धरि अंजलि वांधै ।।
मंत्रन सहित प्रार्थना करये । करि प्रणाम शिव आगे धरिये ।।
दोहा-5
जदि पूजा जपनेम लगि करे जु जान अजान ।
करौ सफल सो सवै देउ अछै वरदान ।।
सुमन समर्पि शिवै अनुरागी । मंगल करण शरण वर मांगी ।।
लै कुश उदक सु आशिष लीजै । शिवै सुमाथ मारजन कीजै ।।
शांति पाठ करि करै प्रणामा । शिव सेवत परिपूरण कामा ।।
बहुर पढ़ै शिव मंत्र अघोरा । पुनर आगमन हित शिव भोरा ।।
भाव समेत भक्ति वर मागै । अस कहि शंभु चरण अनुरागे ।।
सकल आश तजि शिव तव सरणा । देउ सुचरण भक्ति रति करणा ।।
शिव प्रार्थना करै फल दायक । गण परिवार समेत विनायक ।।
हरष समेत सदा शिव धामा । छेवहि सेवहि करै प्रणामा ।।
दोहा-6
नहि आवाहन जानत नही विसरजन वेश ।
पूजा रचा न विदित उर होउ प्रसीद महेश ।।
पावहि परम भक्ति हर हेरे । पग पग सवहि सिद्धि तिन केरे ।।
सब फल हित सेवै षट मासा । सब दुख रोग नसै अनयासा ।।
संकट सकल कठिनता जेती । हर हर करत हरै हर तेती ।।
वरधै सब शुभ फल सुख नाना । शुक्ल पक्छ के चन्द्र समाना ।।
करै सोम बृत अरचन एहा । पावहि तनय सुहाग सनेहा ।।
पूजि अकोला तरु तर भावै । अमर होय कि मृतक जिआवै ।।
येहि विधि शिव पूजै ध्यावै । शंभु सपथ वांछित फल पावै ।।
शिव शिव जपै दोष दुख नासै । अंत समय शिव लोक निवासै ।।
दोहा-7
शौनक सुनि मैं व्यास मुख कही यथारथ जानि ।
शंभु कथा अति पावनी कह शिवदयाल बखानि ।।
पंचाक्छर महिमा बलवाना । सुनहु तासु इतिहास पुराना ।।
पावन एक दनुज मधु नामा । लगि निज नाम वसायसु दामा ।।
सो मधुवन मधुपुरी कहावै । दरसे मनुज मनोरथ पावै ।।
मधु विधि हरि प्रिय धाम बसाये । मधुसूदन तब नाम कहाये ।।
सो मथुरा हरि कौ अति प्यारी । तज तन सौ वैकुन्ठ विचारी ।।
धरे स्वतंत्र कृष्ण अवतारा । माधव नाम तहां अनुसारा ।।
तह दशार्ह नाम भयो राजा । जदु के वंश विशद शुभ काजा ।।
विधावंत तरुण गुण वाना । सूर वीर मति धीर सुजाना ।।
दोहा- 8
काशि राज तनया तरुण रूप शील गुण धाम ।
तेहि विवाहि दशार्ह नृप कलावती शुभ नाम ।।
एक समय रति हित निशि काला । नारि निकट नृप गयेउ विहाला ।।
त्रियबृत मै शिव तेज प्रतापा । करति पंचअछर शिव जापा ।।
भूपति कहत सेज प्रिय आवौ । करौ काम रति अति सुख पावौ ।।
कह त्रिय हम शंकर बृत माही । अवहि काल रति पति को नाहीं ।।
तब नृप कहा सुनौ प्रिय रानी । पतिबृत धर्म करौ मम बानी ।।
तब त्रिय कहै सुनौ मम स्वामी । सुख न लहै एतिन संग कामी ।।
रितु मैं गुरु बिन काम विहीनी । रोगिन बृति अप्रीति अलीनी ।।
इतनी त्रियन संग करि भोगा । सुख न लहै जन मदन वियोगा ।।
दोहा- 9
भूपति कही रिषाय प्रिय करौ कौन सत कर्म ।
नेम न त्रिय कौ उचित कछु त्याग पतिबृत धर्म ।।
अस कहि भूप काम अतुराई । बल से कर गहि त्रिय पौढ़ाई ।।
गमन समय परसत उर अंगा । दहत देह नृप तजेउ प्रसंगा ।।
चकित चौंकि भूपति कर शंका । विलग ठाड़ि भये तजि परयंका ।।
विहसि भूप भाखेसि मृदुवानी । सुनौ आचरज सुमुख सयानी ।।
तब तन कोमल कमल समाना । दहत अनल सम लगि उर आना ।।
सो सब प्रिया कहौ समुझाई । शंका समाधान हुय जाई ।।
हंसि नृप नारि कही मृदुवानी । तुम राजन यह बात न जानी ।।
करति पंच अच्छर हम जापा । सो मम तन तेज प्रतापा ।।
दोहा-10
पातक पुंज शरीर तब दासी रत मद पान ।
सो प्रसंग किमि करि सकौ मोरे तेज समान ।।
तब नृप कह सो मंत्र सुनावौ । सकल पाप त्रय ताप नशावौ ।
रानी कहेसि कि हम तब दासी । गुरुण करय ओछे कुल वासी ।।
जदि तुमकौ यह मंत्र बतावै । तौ हम गुरू समान हुय जावै ।।
रहय न पुरुष नारि के नाते । हम कस मंत्र वतावहि ताते ।।
हमकौ मंत्र दयसि दुरवाशा । सो गुरु करे न तुमहि सुपासा ।।
जदि तिनकौ गुरु करो सुजाना । हम तुम भगनी बंधु समाना ।।
जदपि करै दम्पति गुरु एका । प्रथम पुरुष गृह बंधि विवेका ।।
उत्तम कुल गुण धर्म सचेता । शील सुभाय सनेह समेता ।।
दोहा-11
अस पावन दुज गुरु करै शंभु समान विचारि ।
सेवै छल अरु कपट तजि तव पावै फल चारि ।।
तुम राजन मुनि गर्ग बुलाई । गुरु मुख होउ सकल सुख पाई ।।
तब राजा मुनि गरग बुलाये । आदिहु अंत सब चरित सुनाये ।।
गर्ग संग लै परब सुहाये । नारि सहित जमुना तक आये ।।
तब मुनि अंग न्यास कराये । करण शरण मुख मंत्र सुनाये ।।
नृप तन पुलक रोम पथ छोटी । निकरे वाय सकल शत कोटी ।।
जरे पच्छ उढ़ि मरत अधर पर । नृप कह यह अचरज का मुनिवर ।।
मुनि कह तव तन पातक पुंजा । करे अमित अध अधरम वंजा ।।
सो सब निकरे मंत्र प्रभावा । काग कुरूप दहे दुख दावा ।।
दोहा-12
मंत्र पंचअच्छर जपत चारि पदारथ देत ।
शिवदयाल दरिद्र दुख पाप ताप हरि लेत ।।
विनि आशन पूजन विनि प्रेमा । जाय दान विनि ब्रत तप नेमा ।।
जदपि अशुचि अनपावन अंगा । कैसेउ जपै सकल दुख भंगा ।।
भाव अभाव अनरित अलसाई । जपै कहूं कवहूंक मनलाई ।।
सो नर सकल मनोरथ पावै । पंचाक्छर जप करहि करावै ।।
जपहि पुत्र हित संतति पावै । हरै सकल दुख शिवपुर जावै ।।
अस कहि गरग भूप समुझाये । गुरु दच्छिना लयसि घर आये ।।
भूपति जपत गये निज धामा । करे नारि संग निशि विसरामा ।।
भयेसि ह्रदय शीतल सम चंदन । रमन लगे नित हित जदुनंदन ।।
दोहा-13
पंचाछर महिमा अगम भाषत वेद पुराण ।
शारद शेष न कहि सकै किमि शिवधाल वषान ।।
।।।इति श्री शिव पुराण परिपाटी अष्टमोअध्याय ।।।
।।।अथ श्री शिव पुराण परिपाटी नवमोअध्याय ।।।
शौनक कहेसि सूत बड़ भागी । शंभु कथा कह मम हित लागी ।।
कहत त्रिपुर कै विजै विशाला । विदित रूप तप तेज प्रकाशा ।।
केतिक सन असुर सब जाती । त्रिपुर वधो शंकर केहि भांती ।।
सो सब कथा कहौ वुधिवंता । अहो सूत कोमल चित संता ।।
सूत कहत शौनक अनुरागी । साधु बचन पूछेसि मोहि लागी ।।
सो सब कहब सुनौ हित मानी । श्र वण सुने संसय भृम हानी ।।
तार पुत्र महा माया कारी । तारक माया मोहित सारी ।।
सकल देव जितवे के कारण । मधुवन जाय करो तप दारुण ।।
दोहा-1
गुरु आज्ञा पालक असुर गुरु अनुशासन पाय ।
करे कठिन तप वर्ष सत सूरज द्रष्टि लगाय ।।
धरि शत वर्ष धरणि पद एका । ऊर्ध बाहु सूरज दिसि पेखा ।
पद पंजा बल धरि शत वर्षा । शत अं गूठा वल पद आ कर्षा ।।
करे वर्ष शत उदक अहारा । रहो वर्ष शत पवन अधारा ।।
शत जल थल शत वर्ष सहे दुख । सतपावक शत रहो अधोमुख ।।
कर तल धरणि वर्ष शत भयेउ । तरु शाखा लटकत शत गयेउ ।।
पुनि शत वर्ष उलटि तरु शाखा । रहो अधोमुख वर अभिलाषा ।।
सुनतै दुख दसह तप तासू । भयो सिरसि तप तेज प्रकाशू ।।
तिहिके तेज दहत दिविलोका । इन्द्र आदि सुर सकल सशोका ।।
दोहा-2
विवुध व्रंद विसमै विवस वोलत विनय विचार ।
जदपि न देंय विरंचि वर नासहि सकल संसार ।।
विनि वर दये लोक सब नासै । वर पावै तद सबको त्रासै ।।
तिहितै विधि कौ विनय सुनावौ । देंय असुर कौ वर मन भावौ ।।
यदि वर देंय सुकालहि पाई । शंभु कृपा नासहि दुख दाई ।।
अस विचार विधिलोक सिधाये । नमस्कार कर विनय सुनाये ।।
विधि असुरै वर देवहु जाई । पूनि मारन को करौ उपाई ।।
सूर कारज साधक सुर त्राता । हंश जान चढि चले विधाता ।।
देवन मुनि मनोरथ जाना । गए देन असुरहि वरदाना ।।
कंक्षि कमण्डल उदक जगाये । मागौ वर विधि वचन सुनाये ।।
दोहा-3
करे कठिन तप तारक मागौ निज अनुमान ।
हमे न कछू अदेय जग देय सकल वरदान ।।
सुनि बिरंचि की गिरा अडोला । चरण वंदि तारक हंसि बोला ।।
यदि प्रसीद जगदीश कृपाला । देउ युगल वरदान विशाला ।।
तब निर्मित जेतिक जग लोका । सबसे अधिक होय बल मोरा ।।
दूसर वरन मरन केहु भांती । शंकर वीरज सुत मम धाती ।।
शम्भु शुक्रत संभव सुत होई । देवन दल सेनापति सोई ।।
निज कर आयुध करै प्रहारा । होय तासु कर मरण हमारा ।।
तथाअस्तु कहि वचन विधाता । अंतरध्यान भये सुर त्राता ।।
हर्ष शोक देवन मन माही । दाह सांति शंशय गति नाही ।।
दोहा-4
पायसु वर तारकासुर सो तप करे विराम ।
गमनो मन आनंद मगन श्रोणितपुर निज धाम।।
मिलो जाय निज कुल परिवारा । सब असुरन मिलि मंत्र उचारा ।।
तिहकौ दय सुराज अभिषेका । करै सकल आयसु अविवेका ।।
करि त्रैलोक विजय छन एका । जीते सुर नर असुर अनेका ।।
देव दनुज आयसु अभिलाषे । निशि दिन रहैं सकल रुख राखे ।।
सभै सकल मुख रहे निहारे । शासन मानहि विनहि विचारे ।।
एरापति सुरपति पर लयउ । मृत्यु पाश मुगदर यम दयउ ।।
क्षेत्र कणक दायक अरुपाशा । दये वरुण मन भये निराशा ।।
रथ अरु शक्ति प्रजापति दयऊ । उच्चै श्रवा सूरज सन लयेऊ ।।
दोहा-5
लये अनल से वसन वर अछै तूण धनुवाण ।
लैकर गदा कुवेर से सुन्दर सुमन विमान ।।
पारिजात सुर विटप मंगायऊ । रिषिन से कामधेनु धरि लायेऊ ।।
लयो कराल काल को दण्डा । चन्द्रहास असि इन्द्र अखण्डा ।।
रतनहार पयोनिधि शेषा । श्याम करण हय दयो जलेशा ।।
जो जेहि जतन रतन जहं पाये । करि उपाय सो सकल मंगाये ।।
नागन दये रतन मणिमाला । रतन दइदयो धर्म विशाला ।।
तर्प सदा सुख दायक भानू । शीतल तेज अधूम कृशानू ।।
उदय चन्द्र मेटत सब सूला । त्रिविध समीर सदा अनुकूला ।।
पितरण कव्य हव्य देवन को । लयेसि भाग सबके जेवन को ।।
दोहा-6
यच्छ पितर गंधरव गण सुर नर नाग अपार ।
मुनि किन्नर किंपुरष लगि पीड़ित सब संसार ।।
तीन भुवन सब आयसु कारी । सुर नर मुनि आज्ञा अनुसारी ।।
जाति अनेक सरासुर सर्वा । किन्नर गुह्य पितर गंधरवा ।।
सेवहि सब अनुशासन मानी । तासु राज्य को सकहि बखानी ।।
विपिन पुरी गिरि धाम सुहावनि । तीरथ क्षेत्र जंहा लगि पावन ।।
सुवस करे सब पातक मंडित । करि सुर मंदिर मूरति खण्डित ।।
जज्ञ दान कृत जप तप धरमा । बर्जित करे सकल शुभ करमा ।।
वरण संत सुर आश्रम चारी । विकल सकल दुरदशा निहारी ।।
राज करे अस वरस अनेका । छिपे कंदरण मुनि सविवेका ।।
दोहा-7
सब सुर पीड़ित सोचवस गये विधाता तीर ।
जोरि पानि विनती करैं शिवदयाल तजि धीर ।।
।।। इति श्री शिव पुराण परिपाटी नवमोअध्याय ।।।
।।।शिव चरित्र महात्म ।।।
।।।स्थाणोर्चरितृम ।।।
अथ श्री शिव पुराण परिपाटी दसयोअध्याय शिव चरित्र महात्म स्थाणोर्चरितृम
तब कह सूत सुनौ मुनि गाथा । सुर नर मुनि सब भये अनाथा ।।
श्री हत सभै सकल हिय हारे । त्राहि त्राहि विधि शरण पुकारे ।।
नमित शीश वहु विनै वषानी । करहु कृपा सुठि सेवक जानी ।।
सोभा रहित सुसंकित गाता । देवन वेमन देखि विधाता ।।
कही कि सुनौ देव मुनि धारण । वेगि वदौ निज संकट कारण ।।
विपदा हम सब हरै तुम्हारी । जदपि असाध्य होय अधिकारी ।।
बोले सुर मुनि विनय प्रणामी । तुम सब जानत अंतरजामी ।।
तारक त्रसित अखिल दुख पाये । सब मुनि देव शरण तब आये ।।
दोहा-1
गिरि वन विचरै देव मुनि छिपे कंदरन जाय ।
हरौ सकल दुख विधि करौ तारक वघन उपाय ।।
विहंसि वचन बोले चतुरानन । सुनौ देव मुनि जाउ न कानन ।।
तजउ सुसंसय सोच विषादा । रखिहै शिव सबकै मरजादा ।।
विधि नास कौ मैं असुरन भूपा । सुर मुनि सुनौ उपाय अनूपा ।।
शिव के वीरज लगि सुत होई । निज कर असुर संघारे सोई ।।
सो दुरलभ मन देखि अपारा । तासु उपाय करहु अनुसारा ।।
हिमगिरि शिखर शुभग रमनीका । तहनु तपत नित शिव शशि टीका ।।
तुद्र भद्र शुभ शिखर कहावै । तुंग नाथ तह शिव अनुभावै ।।
तासु दरस पूजन करि आवै । विनु भृम सुजन मनोरथ पावै ।।
दोहा-2
पितु अनुशासन मानिके नारद के उपदेश ।
सखिन्ह सहित गिरिजा तंह पूजत नित्य महेश ।।
शिव गिरिजा कर होय बिबाहू । तीन भुवन भरि रहे उछाहू ।।
शिव सुत होय गवरि संयोगा । तारक वध तब तजौ वियोगा ।।
करहु वेगि मकरध्वज सेवा । यह उपाय साधउ सब देवा ।।
सुनि सुर विधि को करे प्रनामा । चले सकल मन सुमिरत कामा ।।
कहैं परस्पर कीजिये सोई । शिव की रुचि गिरिजा रत होई ।।
करै सकल मुनि देव निवेदा । करव इन्द्र विधि गिरा न षेदा ।।
अस कहि दच्छ मनुज मुनि देवा । सब निज धाम गये लखि भेवा ।।
इन्द्रि मार सुमिरन मन लायेउ । ताछन मदन सहित रति आयेयेउ ।।
छंद-
करजोरि काम प्रणाम करि दिबिधाम सुरपति प्रति कहेउ ।।
कह काज सुरपति राज सहित समाज मम सुमिरण करेउ ।।
मन सोधि सुपथ प्रवोधि इन्द्रहि मौन मनमथ हुय रहेउ ।।
तब शक्र हंसि कन्दर्प सो कह उचित परहित कहेउ ।।
दोहा-3
परम साधु मकरध्वज तुम सब काज प्रवीन ।
प्रथमै तुम अरु वज्र दुय शस्त्र माहि विधि दीन्ह ।।
प्रथम विरंचि मोहि करि नायक । काम कुलिस दुय दये सहायक ।।
जब हय विषु रूपहि संसारा । तद हत्या विधि करि निरधारा ।।
सुत वधत्वष्ट भ्रात करि क्रोधा । मोहि मारण प्रयोग अवरोधा ।।
बृत्रासुर प्रघटे तेहि कारण । मोहि अनेक दये दुख दारुण ।।
हम विधि कौ वहु विनय सुनायो । यह उपाय विधि मोहि वतायो ।।
एकबार भृगु मुनि प्रिय नारी । भर्ता सन कहा विनय विचारी ।।
पुत्र हीन पति हम अरुमाता । देव दया करि सुत पुनि भ्राता ।।
तव मुनि दुय चरु पात्र चढ़ाये । कहि विभेद असनान सिधाये ।।
सोरठा-4क
मातहि भेद वताय भाग विप्र छत्री प्रजन ।
लयो बदलि के खाय पात सुपाय सपुंसवन ।।
दोहा-4ख
भेद जान मुनि कहा त्रियै हरि इच्छा वलवान ।
तब सुत घोर कुठार धर भ्रता रिषिन प्रधान ।।
विश्वामित्र मातु सुत नामा । गाधि सुनु सो ऋषि गुण धामा ।।
विनवै नारि धरण धरि माथा । पुत्र न प्रवल होय मुनि नाथा ।।
तब मुनि कही प्रिया धरु धीरा । रिषि वर पुत्र पौत्र अति वीरा ।।
रिषि जम दगिन भये सुत जासू । परशुराम सुत प्रधटे तासू ।।
सो हरि चार कला अवतारा । शिव गुरु करे वेद अनुसारा ।।
करी सु परषुराम अति सेवा । भये प्रशीद हरषि शिव देवा ।।
दये धनुष दुय निज निरमाये । धनुर्वेद सब मंत्र पढ़ाये ।।
तव ही सहसवाहु वन आये । नारि मंत्र जम दगिनि टिकाये ।।
दोहा-5 क
सहसवाहु कहा मुनि सुनौ हय संग सैन अपार ।
तुम तपसी वन मै वसौ किमि दीहौ जिव नारि ।।
दोहा-5 ख
कामधेनु से जम दगिनि कह मखशाला जाय ।
इच्छा भोजन दल सहित राजहि देहु जिमाय ।।
नारि नेह बस मनुज स्वभावै । सो कबहू न सदन सुख पावै ।।
त्रिया सिखावन वस नर जोई । कै लरि मरै कि निरधन होई ।।
होत प्रभात सकल उठि जागे । गमनत करण प्रशंशा लागे ।।
जस भोजन मुनि कालि जिमाये । तस राजा गृह कबहुं न पाये ।।
सहसवाहु सुनि मुनि से कहेउ । कामधेनु जो तब गृह रहेउ ।।
हयहि सुदेउ प्रजादल पाले । तुम कह करौ तासु नित कालै ।।
तब मुनि मौन रहे मन मांही । नृपहि दयेउ कछु उत्तर नाही ।।
सहसबाहु सेवकन बुलाई । चले भवन लै धेनु छुराई ।।
दोहा-6
मारग धेनु विचारि करि कर ते दाम तुराय ।
धाय ठाड़ मुनि तर भई पूछति वात वनाय ।।
तात मोहि कह आयसु तोरी । राजै दयसि कि लै वर जोरी ।।
ऋषि कहा कामधेनु हमए का । सहसवाहु संग अनी अनेका ।।
हम कह करै कछू बल नाही । सुनि धेनु कोपी मन मांही ।।
आयसु करौ सेन प्रधटावैं । भूपति दल सब मारि गिरावैं ।।
रिषि कह कोप यहै मन भाये । कामधेनु तब तन फुहराये ।।
प्रघटे उर बिन अरबी जाती । अच्छ के मल मलेच्छ पसु धाती ।।
रोमन रोम शाम निरमाना । यम करि यमन ताल जंघाना ।।
खुरन से खुरासान प्रधटाये । सृगन सृंगजान उपजाये ।।
दोहा-7
शिखा से प्रगटे शेख सब सैअद सेद प्रजान ।
मुहै मुगिल आगा अगर पीठी प्रघट पठान ।।
बाल जुउ खरे पूंछ के वल कबु खारव खान ।
इड्डरिणा से इरान भा टुड़िके तुरिक तुरान ।।
रक्त नयन सुख लुलि चिलि हाना । वसन विलोम भयानक वाना ।।
लैकर हास पटह असिवंका । सहसवाहु दल धसे असंका ।।
धरु-धरु मारु-मारु करि घोरा । खड्ग प्रहारे कठिन कठोरा ।।
करहि कठिन संग्राम अपारा । सहसवाहु दल सब संहारा ।।
तब है है अधिपति करि कोपा । धनुष पचशत वान अरोपा ।।
छण मैं अखिल जमन संहारे । बचे बारुणि देश पधारे ।।
सहसवाहु मुनि संग विरोधा । वहु कटुबचन कहे करि क्रोधा ।।
मुनिवर साधु कही कछु नाही । त्रिया सीख यह गति जग मांही ।।
दोहा-8क
क्रोधमुखी कलही कुटिल कपटि निकुट प्रतिवाद ।
विभिचारिणि भाखिनि भृषा नित शिवद्याल विषाद ।।
दोहा-8 ख
सहसवाहु भट त्रास दै भग करै मख संग ।
दुख मै रिषि सुमिरो तनय परस राम तिहि अंग ।।
आतुर परस राम तंह आये । लखि पितु दशा कोप उर छाये ।
फरस उठाय धाय नृप धामा । वहुरि भये दारुण संग्रामा ।।
परस राम शिव चाप चढ़ाये । सहसवाहु शिर काटि गिराये ।।
आतुर पलट पिता पह आये । करि प्रणाम सो चरित सुनाये ।।
मुनि आशिष दय कर शिरधारा । वहुरि कहा सुत सुनौ विचारा ।।
राजहि वधेसि पाप अस लागा । धेनु विप्र सम सहस विभागा ।।
करव जाय त्रै मख तजि रोषा । तब छूटै सुत यह नृप दोषा ।।
धनुषहि पाप दाप सर संगा । मुचहि राम कर गहे सुभंगा ।।
दोहा-9 क
पुनि त्रिय जम दगिन कह प्रिया लयावौ नीर ।
अभिषेकै मार्जन करैं पावन होय शरीर ।।
दोहा-9ख
कर उठाय घट रेनुका गयी सरोवर तीर ।
तह गंधरबन विषय लखि मन अभिचार अधीर ।।
मन विभिचार निवारि निदाना । लै जल पति पह करे पयाना ।।
तद वोले जमदगिनि रिषाई । प्रिया कहां तुम देर लगाई ।।
नारि भाव तेहि बृथा वषाना । हम प्रिय करत रही असनाना ।।
तब जमदगिनि ध्यान धरि देखा । बृथा वचन विभिचार विशेषा ।।
कोपि कहा सुत हति अब जाही । विभिचारिणी वध पातक नाही ।।
परसुराम पितु आयसु मानी । मारेसि मातु सकल जग जानी ।।
पितु कहा सुत मांगो वर पावौ । परसुराम कहा मातु जिआवौ ।।
जिहते छूटह मोर अपराधा । दै जिआय रिषि करि निरबाधा ।।
दोहा-10 क
मातु शत्रु विभिचारिणी पितु अराति रिणकार ।
वैरी कुपठ कुपुत्र सुत पतनी रूप अधार ।।
सहसवाहु सुत सत अरु एका । समय पाय पितु वैर विवेका ।।
छत्रिन वैरसु विसरत नाही । जव लगि सुधि सब साखिन माही ।।
प्रविसे आय विपिन मखसाला । काटि जमदगिनि सिर तिहि काला ।।
बिलिपित रेनुका विकल बिहाला । रोदति बिलख अनाथिन बाला ।।
कर उर मारि उपारति केशा । कहति आय सुत हरौ कलेशा ।।
सुनत मातु की आरति बानी । आये परसुराम धनु पानी ।।
करेसि मातु कै प्रथम प्रबोधा । धनुष चढ़ाये ह्रदय अति क्रोधा ।।
करेसि प्रतिज्ञा अस मन माहि । क्षत्रि बंश महि रखिहय नाही ।।
छंद-
सहस भुज के निहित सबसुत अखिल सैन संहारि कै ।।
तजि गरभ शिशु बालक एक क्षण सवै भूपन मारि कै ।।
करि निरबशु धरिणि इकयस वार जलधि निवारि कै ।।
शिव दयाल त्रै मख करि शिभतंक क्षेत्र पाप उघारि कै ।।
दोहा-11
धनुष जनक पुर धारि के । बहुरि तासु तजि आस ।।
रिषि दधिचि कह विशिष दय । गमने गिरि कैलाश ।।
सो सर विजया रस अनुमाना । दधि अग भंग संग करि याना ।।
तासु अस्थि जाचहु तुम दाना । बज्र बिरचि ब्रत्त वध जाना ।।
काम सुनौ तुम हम हरषाई । रिषि दधिचि कह जाचो जाइ ।।
देहु देह रिषि लगि परमारथ । रिषि कह देव सवै प्रिय स्वारथ ।।
सुर मुनि मानव हेत विरागी । करहि प्रीत सब स्वरथ लागी ।।
पर संकट न जानि जगमांहीं । यदि जानहि तन जाचहि नांही ।।
पुनि देवन कह विनय विचारी । रिषि दधीच तुम पर उपकारी ।।
प्रथमै देव असुर संग्रामा । तुम दै सिर भाहै सिर नामा ।।
दोहा-12
कह दधीच सुर मुनि सुनौ को जानै पर पीर ।
कै जानै शिवदयाल शिव कै दुख सहत सरीर ।।
तदपि देय हरि नाचक जानी । सव करि जतन लेउ हित मांनी ।।
मन यह रही एक अभिलाषा । सो तीरथ मंजन मन राषा ।।
सुनि तै हरि विरंचि शिव आये । सुभग दधीच कुन्ड निरमाये ।।
बालि सकल तीरथ निवसाये । विरचे पंच प्रभागन आये ।।
लोक वेद विधि समय समाना । करे सकल तीरथ असनाना ।।
शिवै सुमिरि के हरि धर ध्याना । मन आकरषि योग पथ आना ।।
तजे स्व तन करि प्राणायामा । परमानन्द गये हरि धामा ।।
रिषि दधीच मिसि पूर सो भावै । तिहि ते मिषिरिषि नाम कहावै ।।
दोहा-13
करे उपाय अनेक विधि माधुर वस्तु लगाय ।
मांस चटायसि धेनु पर केवल अस्थि वचाय ।।
तह दुज दोष धेनु कह लागा । दान करत पातक पर भागा ।।
तह वरचित गोदान विधाना । विप्रन देय अपर सब दाना ।।
विनवै सुरभी अध उपदेशा । धेनु विप्र गुरु सदा महेशा ।।
विधि हरि संभू त्रै योजन पर । विरचो हत्या हरण सरोवर ।।
तहां धेनु अस्नान कराये । सुरभी तन केम पाप छुटाये ।।
तंहां करै जो जन असनाना । छटहि बिप्र गोवध अधनाना ।।
पिनि कर गौ मांगौ वरदाना । धेनु कहेसि त्रै कृपानिधाना ।।
देउ अमर गति जग दरसावै । नाम न मिटय मुक्ति हुय जावै ।।
दोहा-14
सप्त कुण्ड वहु विधि रचो ब्रह्मअगिन गुण पाय ।
गौरि कुण्ड शिव ने थपो मंजन उमै करै ।।
केशव कह अमर तन लाई । रहो सदा सरित गति पाई ।।
जो जन मंजहि दरसन पावै । लहै लोक सुख शिवपुर जावै ।।
भई सो गाय नदी अनुभावै । धेनुमती सो नाम कहावै ।।
विसुकरमा विधि शासन पायेउ । असुथि दधीच कै कुलिस वनायेउ ।।
करणि हरिगिरि हीरा करणी । ह्य रोकह व्रत्त तत्पर धरणी ।।
कण परि परण देश कहावै । अमि तमोल रग मरणि उप पावै ।।
मिसि रिषि नैमिसार जग मांही । पुन्य पुंज सम दूसर नाही ।।
वज्र विरंचि हमै तब दयउ । तिहि ते व्रत्तासुर वध भयउ ।।
दोहा-15
कुलि शत जेउ हम चिमनि पर थमे संग भुज दोउ ।
तुमकौ मार अपार गति निश्फल कवहु न होय ।।
अहो मित्र तुम सम जग मांही । दुख हारक समरथ कोउ नाही ।।
आपद काल परखियै चारी । मित्रधरम धी रज अरुणारी ।।
परखिय सुर परे संग्रामा । निर्धन भये परखिये कामा ।।
विनय कुलीन सनेह पिछारे । सत्य परखियै संकट भारे ।।
सुर मुनि काजन केवल मोरा । सब कर हते सुजस जग तोरा ।।
सुनत सुरेश वचन ह्य मारा । दीन वचन किमि इन्द्र उचारा ।।
जदपि असंभव करहि उपाई । वदौ विहाइ कपट चतुराई ।।
यदपि विमुक्त मुक्त जगमांही । पावन करौ छणक मैं ताही ।।
दोहा-16
जो जग दारुण तप करै तब इन्द्रासन हेत ।
वेगि विदारण करै तप तासु न कछु संकेत ।।
मुनि अरु मनुज जती सन्यासी । देव दनुज गण जती उदासी ।।
जे सब पातहु रिषिन समेता । निज वस करौ सकल जड़ चेता ।।
कवन काज तब मित्र वतावौ । प्रण कर कहौ करौ अनभावौ ।।
आतुर आयसु करौ सुरेशा । का सुर मुनि मन हरौ महेशा ।।
सुनत सुरेश कहा बल तोरा । कहेसि पिछार सो कारज मोरा ।।
सुनौ मदन मम काज विचारी । मम सुमिरे अस आस निहारी ।।
तारक असुरै विधि वर दयउ । वहि त्रैलोक प्रभुता हरि लयउ ।।
पीड़ित लोक नष्ट सब धरमा । सुर संकेत नसे सुभ करमा ।।
दोहा-17
नाना आयुध सुरन्ह के निर्फल भये जग मांहि ।
शिव के वीरज प्रधट सुत सो मारहि ताहि ।।
सुरण काज अरु संमत मोरा । शिव समाधि गिरिजा तप धोरा ।।
तपसि उमा संकर वर लागी । जनक जननि अग्या अनुरागी ।।
जाउ काम अग ठास अधिकाई । शिव गिरिजा रुचि देउ वढ़ाई ।।
डिगहि दिगम्वर होय विवाहू । भरि लोचन देखियै उछाहू ।।
मुख प्रफुल्ल पंकज मृदुवानी । सक्र सप्रेम काम सनमानी ।।
इन्द्र वचन करि अंगीकारा । चलत मार मन करे विचारा ।।
शम्भु विरोध जदपि भल नांही । परिहित मरे स्वयश जगमांही ।।
मदन सहाय समेत सिधारा । शिव गिरि जाय वसंत पसारा ।।
छंद-
तिहि औसर कौतुक काम किये वन वागन छाय वसंत दिये ।।
सवही तरु पल्लव फूलि रहे तह गुंजन भृंगन जात कहे ।।
मधु अंवुक जंबु कदंब घने जनु सोहत काम वितान वने ।।
जुहि चंपक नाग पुनाग विली वकु पाटल माधवि फूल खिली ।।
अति शोभित फूलि पलास रहे सवही जत पावक पुंज दहे ।।
वन वासिन प्यासि वयारि लगै जन जन पर जंगम काम जगै ।।
जन योगी जती विरही तपसी सवके उर संगम आस वसी ।।
सुक सारिक कोकिल औ पपिहा मधुरी धुनिवाद कै अलिहा ।।
दोहा-18
काम कठिन कौतुक कियो रह्यो सकल जग छाय ।
शिवदयाल दशा तिहि समशिय की कहे वनाय ।।
छंद-
बस काम अकेत सचेत भये तरु मध्य लता लिपटाय गये ।।
पुनि ताल तलायन जाय मिले सरिता मिलि सिन्धु उमगि चले ।।
सबरे जग जीव उमंग भरै कवि को वरणो जो सचेत करै ।।
जग जीव चराचर जौन जहां वस काम उमंग चले सो तहां ।।
दिस मानव को अवला निरखैं अवलान के मान नरा करखैं ।।
दोहा-19
मनसिज सवके मन हरे काहू धरे ना धीर ।
भये काम वस सकल जग सर्वग यथा समीर ।।
पशु पंछी जल थल नभ चारी । काम विवस ऋतु काल विसारी ।।
दनुज देव किन्नर नर नागा । गंधर्व यछ् पिसाच विभागा ।।
भूत प्रेत वैताल घनेरे । एं सब सदा काम के चेरे ।।
योगी सिद्ध तपी वैरागी । मदन सल्प सवके उर लागी ।।
काम कीन्ह अस चरित अनेका । डिगे न शंकर सहित विवेका ।।
देखि शिवहि मन मदन डिराना । परिहत करन मरन पन ठाना ।।
शाखा सुभग देखि तरु आमा । तापर बैठि कोपि कर कामा ।।
सूत सुमन सरचाप सम्हारा । शिव के वाम पाश्व तकि मारा ।।
काम कमान सुमन सर लागे । छुटी समाधि शंभु तब जागे ।।
मन आनंद शिव लखि चहुं पासा । तंह रति काम वसंत प्रकाशा ।।
विन ऋतु लखि वसंत गति नाना । अति आश्चर्य शम्भु मन माना ।।
रति गति देख काम समुदाया । को नहि मोहत को जग जाया ।।
तेहि अवसर गिरजा तह आई । सोहत सखिन्ह संग अधिकाई ।।
तिहि सिंघार भानु आभूषण । करे पुष्प आमरण निर्दूषण ।।
जो सौंदर्य लोक त्रै माही । सो समूह सब गिरजा पाही ।।
रूप राशि अधि उमा अपारा । वर्णि वर्ष सत लहै न पारा ।।
पारवती कर पुष्प अनेका । पूजति शंकर सहित विवेका ।।
करि प्रनाम शिव ओर निहारी । नमित शीश लज्जा अधिकारी ।।
तव शंकर गिरिजा दिशि देखा । तन सुन्दर मन लाज विशेषा ।।
काम विवश शिव कींह प्रसंशा । कोटि रमा रति रूप बतंशा ।।
सरद चंद मुख पंकज नैना । भृकुटी धनुष काम सर मैना ।।
गोल कपोल रुचिर वर नासा । विंवाधर शुभ रदन प्रकाशा ।।
दोहा-20
युग कर कोमल कमला सम सोहै सुमन सुबास ।
चारु चरण अति ललित गति को गुण वरणो तासु ।।
जो गिरिजा सब जग कर माता । उतपति पालन प्रलै प्रजाता ।।
तासु रूप गुण तप यश वेशा । निज मुख वरणौ लाग महेशा ।।
को बरणै गति वि विरति अनूपा । को कर सुमन वसन गुण रूपा ।।
सो सब जग मैं सुन्दरताई । हुय एकत्र गवरि पह आई ।।
रूप राशि गुण तेज अपारा । जासु अंश त्रिय सबै उदारा ।।
येहि विधि वरणि रूप गुण वेशा । तप विराम निज करै महेशा ।।
वसन गहन कर शम्भु पसारा । तब लग उमा दूर पग धारा ।।
पुनि गिरिजा शिव ओर निहारी । मुख मुस्क्यानि लाज अधिकारी ।।
दोहा-21
मन्द मुसकि विहसति हंसति आगिल प्रीति विचारि ।
चलत मन्द मारुत तवहि फुहरत वसन सुधारि ।।
नारि सुभाव गवरि मुख मोरी । देखी शम्भु दशा बहोरी ।।
मुरि मुसक्यानि कछुक मुख कम्पित । हरलसि लाजति जिमि नव दम्पति ।।
येहि विधि देखि उमहि शिव शंकर । मदन मोह वस भयसि निरंतर ।।
कहेसि कि जो नर मे यह लागी । तद सुख मिलै कहा अनुरागी ।।
कै पर शक्ति यह पर माया । जासु मोह वस अस भृम पाया ।।
तेहि क्षण मैं शिव ज्ञान विचारा । मोहि भयेउ कस मोह विकारा ।।
हम ई श्वर किमि ज्ञान गवाये । पर प्रसंग हित चिन्त चलाये ।।
हम समरथ हुय जो अस करते । अपर सकल मरजाद विगरते ।।
दोहा-22
शिव अस ह्रदय विचार करि मन दिढ़ बन्धन बांधि ।
शिवदयाल कहस कि शिव कस मम चली समाधि ।।
इति श्री शिव पुराण परिपाटी दसयोअध्याय
शिव चरित्र महात्म
स्थाणोर्चरितृम
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