जन्म हुआ मानव तन मे
- कुछ कर्म करो ऐसा जीवन मे,
- हुंकार उठे धरती अंबर,
- कैसा सपूत मेरे आँगन मे,
- अपनी काया से जगती मे ,
- मानव जाति का नाम करो,
- उद्गम विचारो से हर मन मे,
- सुलभ भाव निर्माण करो,
- ताकि बैठ अकेले डेरे मे,
- अपने जीवन पर अभिमान करो,
- कुछ कर्म करो ऐसा जीवन मे,
- जन्म हुआ तेरा मानव तन मे
- हुंकार उठे धरती अंबर,
- कैसा सपूत मेरे आँगन मे,
- तेरे तप से धरती तप कर,
- पूजी जाए चंदन बनकर,
- तेरी गाथा सभी बखान करे,
- धरती से लेकर अंबर तक,
- सुनकर धरती भी लहर उठें,
- अंबर तुझ पर अभिमान करे,
- भगवान भी धरती पर आएँ,
- तेरे तप के चंदन का लेपन कर,
- कुछ कर्म करो ऐसा जीवन मे,
- जन्म हुआ तेरा मानव तन मे
- हुंकार उठे धरती अंबर,
- कैसा सपूत मेरे आँगन मे,
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- एक ब्रिक्ष जो छाया देता
- सुखद सनेह परोसा करता
- खड़ा रहे हर पथीत के रस्ते
- फिर भी कभी ना आहें भरता
- एक ब्रिक्ष जो छाया देता
- सुखद सनेह परोसा करता
- बिन स्वार्थ के सबकुछ देना
- उसके बदले कुछ ना लेना
- सहनशीलता उसकी ऐसी
- गिरकर भी चाहे जो देना
- उन ब्रिक्षो के सहज भाव से
- कोई सीख ना चाहा लेना
- अडिग रहे हर इक ऋतुओ मे
- लगे फल तो वो झुक जाता है
- ज्ञान फली झुककर रहना तुम
- सीख यही वो सिखलता है
- प्राणी जॅन मे सुख बिखेरता
- ऐसा उसका मरना जीना
- उन ब्रिक्षो के सहज भाव से
- कोई सीख ना चाहा लेना
- हरियाली जग मे बिखेरता
- कितना हरा-भरा जीवन है
- सारी सुख-सुविधा है उससे
- कितना सुखमय उसका तन है
- कैसा उसका त्याग समर्पण
- सुखमय सहज हुआ है जीना
- उन ब्रिक्षो के सहज भाव से
- कोई सीख ना चाहा लेना
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- ना कोई कथित विचार ना एकल तन के कर्मो से,
- ना कोई अवसाद पर्व ,ना अविरत मन और धर्मो से,
- देश निराला होता है, जन जन के हितकर्मो से,
- देश शांत वर्ध मान रहे ,ये हर मन की अभिलाषा है,
- मैं क्या करू अकेला हू ,जन जन की ये भाषा है,
- एक तार शृंगार करेगा , ऐसी सबकी आशा है,
- ना कोई अवसाद पर्व , ना कोई व्यथित विकल्पो से,
- देश निराला होता है, जन जन के हितकर्मो से,
- सब मे है भाव समर्पण ,सोच रहे कब करे हम अर्पण,
- भाव देश मे व्यक्त किया है हो जाएगा जीवन तर्पण,
- ना जन के उन्माद भाव ना नियेती बरन निबंधो से,
- देश निराला होता है, जन जन के हितकर्मो से,
- स्वर्णिम भारत की आज़ादी का सबने दीप जलाया था,
- दुर्ग और सम्रध्दि राष्ट्र का सबने महल सजाया था,
- उन सपनो को भूल गये क्यू , जन निज रास रचाने मे,
- मातृ-भूमि का कर्ज़ रह गया , अपने सपन भुनाने मे,
- नही बनेगा सजग राष्ट्र यू,मन के व्यथित विमर्शो से,
- देश निराला होता है, जन जन के हितकर्मो से,
- अखंड भारत होगा अपना आओ हम सब संकल्प करे,
- देवाशीशो की धरती मे मिलकर कायाकल्प करे,
- उन्नती हर्षाली जग मे ना हो प्राणी जन मे क्लेश,
- प्रीति सुसमिता बढ़े जगत मे, ऐसा हो अपना संदेश,
- ऐसा राष्ट्र नवनिर्मित होगा, हम सब के संघर्षो से,
- देश निराला होता है, जन जन के हितकर्मो से,
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