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User:JayTiwari001

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Jay Tiwari111111
Jay Tiwari
Born
Jay

(1989-05-27) May 27, 1989 (age 35)
Years active2006-present
Websitejaytiwari.blogspot.com

Jay Tiwari (IPA: [əmɪˈtaːbʱ ˈbəttʃən]; born 27 May 1989, Rewa(M.P.)) is a Hindi Poet. He is used to write Heroic,comic,soulful and Mystic poetry.

Top Poetry

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जन्म हुआ मानव तन एक ब्रिक्ष जो छाया देता देश निराला होता है

जन्म हुआ मानव तन मे

कुछ कर्म करो ऐसा जीवन मे,
हुंकार उठे धरती अंबर,
कैसा सपूत मेरे आँगन मे,
अपनी काया से जगती मे ,
मानव जाति का नाम करो,
उद्गम विचारो से हर मन मे,
सुलभ भाव निर्माण करो,
ताकि बैठ अकेले डेरे मे,
अपने जीवन पर अभिमान करो,
कुछ कर्म करो ऐसा जीवन मे,
जन्म हुआ तेरा मानव तन मे
हुंकार उठे धरती अंबर,
कैसा सपूत मेरे आँगन मे,
तेरे तप से धरती तप कर,
पूजी जाए चंदन बनकर,
तेरी गाथा सभी बखान करे,
धरती से लेकर अंबर तक,
सुनकर धरती भी लहर उठें,
अंबर तुझ पर अभिमान करे,
भगवान भी धरती पर आएँ,
तेरे तप के चंदन का लेपन कर,
कुछ कर्म करो ऐसा जीवन मे,
जन्म हुआ तेरा मानव तन मे
हुंकार उठे धरती अंबर,
कैसा सपूत मेरे आँगन मे,
एक ब्रिक्ष जो छाया देता
सुखद सनेह परोसा करता
खड़ा रहे हर पथीत के रस्ते
फिर भी कभी ना आहें भरता
एक ब्रिक्ष जो छाया देता
सुखद सनेह परोसा करता
बिन स्वार्थ के सबकुछ देना
उसके बदले कुछ ना लेना
सहनशीलता उसकी ऐसी
गिरकर भी चाहे जो देना
उन ब्रिक्षो के सहज भाव से
कोई सीख ना चाहा लेना
अडिग रहे हर इक ऋतुओ मे
लगे फल तो वो झुक जाता है
ज्ञान फली झुककर रहना तुम
सीख यही वो सिखलता है
प्राणी जॅन मे सुख बिखेरता
ऐसा उसका मरना जीना
उन ब्रिक्षो के सहज भाव से
कोई सीख ना चाहा लेना
हरियाली जग मे बिखेरता
कितना हरा-भरा जीवन है
सारी सुख-सुविधा है उससे
कितना सुखमय उसका तन है
कैसा उसका त्याग समर्पण
सुखमय सहज हुआ है जीना
उन ब्रिक्षो के सहज भाव से
कोई सीख ना चाहा लेना
    ***
ना कोई कथित विचार ना एकल तन के कर्मो से,
ना कोई अवसाद पर्व ,ना अविरत मन और धर्मो से,
देश निराला होता है, जन जन के हितकर्मो से,
देश शांत वर्ध मान रहे ,ये हर मन की अभिलाषा है,
मैं क्या करू अकेला हू ,जन जन की ये भाषा है,
एक तार शृंगार करेगा , ऐसी सबकी आशा है,
ना कोई अवसाद पर्व , ना कोई व्यथित विकल्पो से,
देश निराला होता है, जन जन के हितकर्मो से,
सब मे है भाव समर्पण ,सोच रहे कब करे हम अर्पण,
भाव देश मे व्यक्त किया है हो जाएगा जीवन तर्पण,
ना जन के उन्माद भाव ना नियेती बरन निबंधो से,
देश निराला होता है, जन जन के हितकर्मो से,
स्वर्णिम भारत की आज़ादी का सबने दीप जलाया था,
दुर्ग और सम्रध्दि राष्ट्र का सबने महल सजाया था,
उन सपनो को भूल गये क्यू , जन निज रास रचाने मे,
मातृ-भूमि का कर्ज़ रह गया , अपने सपन भुनाने मे,
नही बनेगा सजग राष्ट्र यू,मन के व्यथित विमर्शो से,
देश निराला होता है, जन जन के हितकर्मो से,
अखंड भारत होगा अपना आओ हम सब संकल्प करे,
देवाशीशो की धरती मे मिलकर कायाकल्प करे,
उन्नती हर्षाली जग मे ना हो प्राणी जन मे क्लेश,
प्रीति सुसमिता बढ़े जगत मे, ऐसा हो अपना संदेश,
ऐसा राष्ट्र नवनिर्मित होगा, हम सब के संघर्षो से,
देश निराला होता है, जन जन के हितकर्मो से,
***

Poetry  :

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Reference :

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http://jaytiwari.blogspot.in