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User:Votership/sandbox

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भरत गांधी
Bharat Gandhi
समकालीन राजनीती सुधारक
Born12 फरवरी 1969
Occupationदार्शनिक व राजनीतिज्ञ
Spouseअविवाहित

भरत गांधी (12 फरवरी 1969) श्री भरत गांधी एक समकालीन दार्शनिक है, जिनका यह शोध है कि आज की मानव जीवन की ज्यादातर समस्याओं की वजह है आज की राजनीतिक व्यवस्था और कानून। श्री गांधी ने आज की राजनीतिक व्यवस्था का नया ब्लू प्रिंट तैयार करके दुनिया भर के सभी देशों के राष्ट्राध्यक्षों के समक्ष रखा है। उनके प्रस्ताव को भारत के 137 सांसदों ने भारतीय संसद में विचार करने के लिए सन 2005 में रखा था। संसद की विशेषज्ञ समिति ने सन् 2011 में इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया था, किंतु पार्टियों के अध्यक्षों ने संयुक्त साजिश करके इसे अब तक रोक रखा है। उन्होंने दर्जनों पुस्तकें लिखी हैं। लोकतंत्र का नया ढांचा तैयार किया है, जिसमें गरीबी, गुलामी, भ्रष्टाचार, असुरक्षा, हिंसा, सांस्कृतिक पतन जैसी तमाम राजनीतिक समस्याओं का का स्थाई रूप से समाधान हो जाएगा। [1]

जीवनवृत्त

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जन्म - 12 फरवरी 1969

विवाह

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अविवाहित

प्रारंभिक शिक्षा

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जौनपुर में पैत्रिक गाँव के प्राइमरी स्कूल से।‍ बचपन से ही मेधावी.

उच्च शिक्षा

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इलाहाबाद विश्वविद्यालय से।‍ श्री भरत गांधी ने अपने शैक्षिक जीवन में उ. प्र. की सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा सहित कई प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता अर्जित की।‍ स्वयं के सरकारी नौकरी करने से किसी दूसरे की नौकरी न छिन जाये, यह सोचकर उन्होंने स्वयं को 23 साल की उम्र में सरकारी नौकरी की दौड़ से अलग कर लिया और सिविल सेवा परीक्षा के प्रारंभिक चरण में सफलता प्राप्त करने के बावजूद सिविल सेवा परीक्षाyका बहिष्कार करके समय का सदुपयोग समाज सेवा के लिए करने का निश्चय किया. खुद को बेरोजगार रखकर बेरोजगारी का स्थायी समाधान खोजने का निश्चय किया।‍ उनका मानना है कि सरकारी डिग्रियां 'किसी एक योग्यता' का प्रमाण भले ही हों, किन्तू सज्जनता का प्रमाण नहीं हैं।‍ इसलिए उन्होंने विधि स्नातक कोर्स को दुसरे साल में छोड़ दिया।‍ इस प्रकार 24 साल की उम्र में सन 1993 में अपने शैक्षिक जीवन का अंत कर लिया।‍

राजनीतिक दर्शन

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भरत गांधी जी का यह शोध है कि आज की मानव जीवन की ज्यादातर समस्याओं की वजह है आज की राजनीतिक व्यवस्था और कानून। श्री गांधी ने आज की राजनीतिक व्यवस्था का नया ब्लू प्रिंट तैयार करके दुनिया भर के सभी देशों के राष्ट्राध्यक्षों के समक्ष रखा है। उनके प्रस्ताव को भारत के 137 सांसदों ने भारत की संसद में विचार करने के लिए सन 2005 में रखा था। संसद की विशेषज्ञ समिति ने सन् 2011 में इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया था, किंतु पार्टियों के अध्यक्षों ने संयुक्त साजिश करके इसे अब तक रोक रखा है। उन्होंने दर्जनों पुस्तकें लिखी हैं। लोकतंत्र का नया ढांचा तैयार किया है, जिसमें गरीबी, गुलामी, भ्रष्टाचार, असुरक्षा, हिंसा, सांस्कृतिक पतन जैसी तमाम राजनीतिक समस्याओं का का स्थाई रूप से समाधान हो जाएगा।

लेखन

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श्री भरत गांधी ने 1993 में शिक्षा का बहिष्कार करने के बाद सबसे पहले शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए 'नेशनल फाउंडेशन ऑफ़ एजुकेशन एंड रिसर्च' (नेफर) नामक स्वैच्छिक संगठन बनाकर 1995 में शिक्षा व्यवस्था का एक नया मॉडल विकसित किया।‍ उन्होंने 30 साल की उम्र तक राजनीति , दर्शन, अध्यात्म और अर्थशास्त्र पर दर्जनों पुस्तकें लिख ली थीं जिनमें से मुख्य निम्न हैं -[2]

1. लोकतंत्र की पुनर्खोज

2. संसद में वोटरशिप

3. जनोपनिषद

4. वोटरशिप लाओ, गरीबी हटाओ

5. नकली समाजवाद

6. भ्रष्टाचार रोको

7. वीसा तोड़ो, दुनिया जोड़ो

8. गाँव का संविधान

9. दस उंगली दस पेट के दस सवाल

गरीबों की सेवा

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सन 1997 में मेरठ के मजदूर बाज़ार में वोटरों को गुलामी से आज़ाद करने के उपाय के तौर पर लेखक ने वोटरशिप (मतकर्ता वृत्ति) की खोज की।‍ इस खोज के लाभों को लोगों तक पहुँचाने के लिए व वोटरशिप के लोगों का विश्वास पैदा करने के लिए लेखक ने 28 साल की उम्र में प्रतिज्ञा की कि संसद द्वारा जनता की गुलामी ख़त्म करने के लिए प्रस्तावित वोटरशिप अधिकार सम्बन्धी कानून बनाये जाने तक वे न तो विवाह करेंगे, न अपनी व्यक्तिगत आमदनी पैदा करेंगे, न अपना मकान बनायेंगे और न अपनी निजी संपत्ति रखेंगे।‍ एक सन्यासी की तरह जीवन बिताएंगे।‍ इसी प्रतिज्ञावश भरत गांधी 50 साल की उम्र में भी अविवाहित हैं ।‍ अपना मकान न बनाने की प्रतिज्ञा के कारण भरत गांधी को 20 सालों तक ऐसे परिवारों ने अपने पास रखकर उनके सेवाकार्य में सहयोग किया, जो उनके रक्त सम्बन्धी भी नहीं थे।‍

1998 में एक परिवार ने गरीबी से तंग आकर आत्महत्या कर ली।‍ उस परिवार में जीवित बची एकमात्र बच्ची के सुरक्षित व गरिमामय जीवनयापन के लिए उन्होंने वोटरशिप की नियमित रकम की मांग की।‍ जब उनकी मांग पूरी नहीं हुई तो उस बच्ची के लिए उन्होंने 1 जुलाई से 14 दिवसीय प्राणघातक अनशन किया।‍ तब तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने बच्ची के नाम चेक भेजकर अनशन ख़त्म कराया।‍

भरत गांधी ने सन 1999 में वोटरों की आर्थिक आजादी की लड़ाई लड़ने के लिए एक संगठन बनाया, जिसका नाम रखा गया आर्थिक आजादी आन्दोलन परिसंघ।‍

सन 2001 में मेरठ के कताई मिल मजदूरों पर शासन-प्रशासन ने जुल्म किया तो उस जुल्म का विरोध करने की प्रतिक्रिया में उन पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून में झूठा मुकदमा दर्ज करके जेल भेज दिया गया, जिसे स्थानीय अदालत व हाईकोर्ट ने झूठा पाया और जिला कलेक्टर के अभियोग को केवल रद्द ही नहीं किया, अपितु झूठा मुकदमा करने वालों के खिलाफ स्वतः संज्ञान लेकर मुकदमा भी दर्ज कर लिया।‍ इस प्रकरण में भरत गांधी ने स्वयं अपना मुकदमा लड़ा और 83 दिन बाद स्वयं को व अन्य 32 लोगों को जेल से रिहा करा लिया।‍ [3]

राजनीती सुधार कार्य

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15 अगस्त 2000 को संविधान समीक्षा पर भारत सरकार द्वारा गठित संविधान समीक्षा आयोग के सामानांतर गन्दी राजनीती व राजव्यवस्था सुधारने के लिए भारत के संविधान सुधार पर अपनी रिपोर्ट तैयार की और रिपोर्ट को तत्कालीन राष्ट्रपति श्री के. आर. नारायणन को सौंपते हुए संविधान सुधारों को स्वीकार करने की मांग की।‍

References/Notes and references

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  1. ^ "Bharat Gandhi". Voters Party. Retrieved 2018-10-26.
  2. ^ विशासमदर्शी भरत गाँधी , २०११
  3. ^ लोकतंत्र की पुनर्खोज. मुंबई. p. 202. ISBN 978-81-935151-1-2.